शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. in which areas does the modi government need to focus in new budget?
Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 23 जुलाई 2024 (08:28 IST)

नए बजट में मोदी सरकार को किन क्षेत्रों में ध्यान देने की है जरूरत

budget 2024-25
निखिल इनामदार, बिजनेस संवाददाता, बीबीसी इंडिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गठबंधन सरकार तीसरी बार बहुमत के आंकड़े को छूने के बाद मंगलवार को अपना पहला बजट पेश करेगी। पहली बार नरेंद्र मोदी की सरकार गठबंधन के सहयोगियों पर निर्भर है। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार राजकोषीय विवेक के साथ खर्च करने की अपनी नीतियों में बदलाव कर सकती है।
 
विश्लेषकों का सुझाव है कि नई सरकार को ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोगों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इन्हें बढ़ती जीडीपी से अमीरों के समान लाभ नहीं मिला है।
 
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य रथिन रॉय का कहना है कि नरेंद्र मोदी का यह तीसरा कार्यकाल उन्हें पहले से चले आ रहे विचारों को छोड़कर, आम जनता की आर्थिक समृद्धि के बारे में कुछ करने के लिए प्रेरित कर सकता है। वो कहते हैं कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां उनकी सरकार अतीत में विफल रही है।
 
क्या है सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती?
नरेंद्र मोदी पिछले 10 साल से सत्ता में हैं। इस दौरान उन्होंने सरकारी खजाने से समुद्री पुलों और एक्सप्रेसवे के निर्माण जैसे बुनियादी ढांचों में अरबों रुपये खर्च किए हैं। उन्होंने बड़ी कंपनियों के लिए करों में कटौती भी की है। साथ ही निर्यात-केंद्रित उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी योजनाएं शुरू की हैं।
 
भारत की कमज़ोर वृहद अर्थव्यवस्था अब स्थिर हो गई है और इसके शेयर बाज़ारों में उछाल आया है। लेकिन इसके साथ ही असमानता और ग्रामीण संकट भी है। 60 फ़ीसदी से अधिक भारतीय कृषि और उससे जुड़े कामों में लगे हुए हैं।
 
इस वर्ष की पहली छमाही में बीएमडब्ल्यू कारों की बिक्री अब तक की सर्वाधिक रही है, जबकि कुल खपत वृद्धि में कमी आई है। यह दो दशकों में सबसे कम रही।
 
वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, घरेलू बचत कम हो गई है और अच्छे वेतन वाली नौकरियाँ भारत के अधिकतर लोगों की पहुंच से बाहर हैं। भारत में क्षेत्रीय असंतुलन भी गंभीर है।
 
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य रथिन रॉय के अनुसार, देश की अधिकांश जनसंख्या उत्तरी और पूर्वी हिस्सों में रहती है, जहां प्रति व्यक्ति आय नेपाल से भी कम है, तथा स्वास्थ्य, मृत्यु दर और जीवन-प्रत्याशा अफ़्रीकी देश बुर्किना फासो से भी ख़राब है।
 
10 में से नौ अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती बेरोज़गारी है। चुनाव के बाद हुए सर्वेक्षण से पता चलता है कि 10 में से सात भारतीय, अधिक अमीर लोगों पर कर लगाने के पक्ष में हैं । वहीं 10 में से आठ अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि भारत में विकास समावेशी नहीं रहा है।
 
budget 2024-25
किसानों की समस्या क्या है?
उत्तर भारत के कृषि क्षेत्रों में यात्रा करने पर, यहां रहने वाले अधिकतर ग्रामीणों की किस्मत, शहरों में रहने वालों से एकदम अलग दिखाई देती है।
 
उत्तर प्रदेश का मुज़फ्फरनगर ज़िला दिल्ली से कुछ ही घंटे की दूरी पर है। यहां खुले मैदानों से होकर गुजरने वाले अत्याधुनिक राजमार्ग को छोड़ दें, तो ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र को देश की अर्थव्यवस्था ने काफ़ी हद तक नज़रअंदाज किया है।
 
ग्रामीण परिवेश में रहने वाले सुशील पाल ने बीबीसी को बताया कि उनका परिवार पीढ़ियों से 'बेहरा आसा' गांव के मैदानों में खेती करता आ रहा है। इसमें बहुत ज़्यादा मेहनत लगती है, लेकिन कमाई बहुत कम होती है।
 
पाल ने हाल में हुए आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को वोट नहीं दिया था। हालांकि इसके पिछले दो चुनावों में उन्होंने मोदी का समर्थन किया था। वो कहते हैं कि प्रधानमंत्री का किसानों की आय दोगुना करने का वादा सिर्फ़ वादा रह गया है।
 
पाल ने कहा, “मेरी आय कम हो गई है। खेती की लागत बढ़ गई है, लेकिन मेरी फसल की कीमत नहीं बढ़ी, उन्होंने (प्रधानमंत्री मोदी) चुनाव से पहले गन्ने की खरीद क़ीमतों में केवल मामूली बढ़ोत्तर की थी।"
 
उन्होंने कहा, “मैं जो भी पैसे कमाता हूं, बेटों के स्कूल और कॉलेज की फीस देने में चला जाता है। मेरा एक बेटा इंजीनियर है लेकिन पिछले दो साल से बेरोज़गार है।”
 
भारत में नौजवान रोज़गार के अवसरों की कमी से जूझ रहे हैं। साल की शुरुआत में हज़ारों युवाओं ने इसराइल में नौकरी पाने के लिए आवेदन दिया था।
 
'गोल्डमैन सैक्स' के अर्थशास्त्रियों ने बजट पर क्या कहा?
सुशील के खेत के पास ही फ़र्नीचर की एक वर्कशॉप है। यहां निर्यात करने के लिए फ़र्नीचर बनाए जाते हैं। पिछले पांच साल में वर्कशॉप के टर्नओवर में 80 फ़ीसदी की गिरावट देखी गई है, क्योंकि कोविड के बाद विदेशों से ऑर्डर मिलने बंद हो गए थे।
 
दुकान के मालिक रजनीश त्यागी ने कहा कि वे विदेशों में मंदी की वजह से स्थानीय स्तर पर फ़र्नीचर बेचना चाहते हैं, लेकिन ग्रामीण संकट जारी रहने की वजह से उनके उत्पादों की कोई मांग नहीं है।
 
उन्होंने कहा कि कृषि अर्थव्यवस्था मंदी में है और स्थानीय मांग नहीं बढ़ने की सबसे बड़ी वजह किसानों पर भारी कर्ज और बेरोज़गारी है। उनके पास कुछ भी खरीदने की क्षमता नहीं है। त्यागी का व्यवसाय सूक्ष्म उद्यमों (माइक्रो इंटरप्राइजेज़) की श्रेणी में आता है, जो भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
 
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ‘इंडिया रेटिंग्स’ का अनुमान है कि साल 2015 से 2023 के बीच 63 लाख उद्यम बंद हो गए, जिससे 1.6 करोड़ नौकरियां चली गईं। इसके विपरीत, विवेक कौल के मुताबिक, साल 2018 से 2023 के बीच भारत की 5 हज़ार लिस्टेड कंपनियों के मुनाफ़े में 187 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। ये आंशिक रूप से, कर कटौती की वज़ह से बढ़ी है।
 
तीसरे कार्यकाल में अर्थव्यवस्था के औपचारिक और अनौपचारिक भागों के बीच इस तरह की खाई को पाटना और भारत के गांवों में समृद्धि लाना प्रधानमंत्री मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
 
गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्रियों ने एक नोट में कहा कि चुनाव के बाद के पहले बजट में कल्याणवाद की ओर "झुकाव" देखा जा सकता है, हालांकि ये ज़रूरी नहीं कि बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर अधिक पूंजी खर्च नहीं किया जाए।”
 
वॉल स्ट्रीट बैंक का कहना है कि केंद्रीय बैंक (रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया) से अपेक्षा से अधिक लाभांश लेना (जीडीपी का 0।3%) सरकार को कल्याणकारी खर्च बढ़ाने और पूंजीगत व्यय को बनाए रखने में सक्षम बनाएगा, साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करेगा। भारत के कुछ सबसे धनी लोगों के लिए, धन का प्रबंधन करने वाले लोग भी इससे सहमत हैं।
 
एएसके प्राइवेट वेल्थ के सीईओ और प्रबंध निदेशक राजेश सलूजा का कहना है, “गरीबी को कम करना सरकार के बजट एजेंडे में सबसे ऊपर होगा। मजबूत राजस्व और कर संग्रह को देखते हुए इसे राजकोषीय गणित को बिगाड़े बिना किया जा सकता है।”
 
भारत में खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं। लेकिन अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि अधिक नकद सहायता, वास्तविक सुधार-आधारित विकास के लिए एक खराब विकल्प है। लगभग 80 करोड़ भारतीय पहले से ही मुफ्त अनाज पर जी रहे हैं और कुछ राज्य अपने राजस्व का लगभग 10 फ़ीसदी, कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करते हैं।
 
बजट में यह दृष्टिकोण प्रस्तुत करना होगा कि सरकार किस प्रकार लाखों लोगों को वर्कफोर्स में शामिल करने तथा आय की संभावनाएं सृजित करने की योजना बना रही है।
 
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने क्या सुझाव दिए
इंडिया रेटिंग्स के प्रमुख अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं, "असंगठित क्षेत्र की मौजूदगी कम होने से रोज़गार सृजन पर असर पड़ता है। इसलिए, अंतरिम तौर पर नीति का विवेकपूर्ण मिश्रण अपनाने की ज़रूरत है, जिससे औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों की एक साथ मौजूदगी बनी रहे।"
 
रॉय का कहना है कि भारत को अपनी विशाल घरेलू मांग को पूरा करने के लिए कपड़ा और कृषि-खाद्य बनाने का काम जैसे क्षेत्रों में निम्न-स्तरीय, श्रम-आधारित विनिर्माण को भी प्रोत्साहित करना चाहिए।
 
भारत के सबसे बड़े बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (एसबीआई) के अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया है कि नरेंद्र मोदी, जो निर्यात संबंधी क्षेत्रों के उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन राशि दे रहे हैं, उसे छोटे उद्यमों तक भी बढ़ाया जाना चाहिए।
 
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य रथिन रॉय के अनुसार, "अभी तक, जब हम मैन्यूफैक्चरिंग के बारे में सोचते हैं, तो हम अमीर लोगों के बारे में सोचते हैं। हम सुपर कंप्यूटर के बारे में सोचते हैं। हम सोच रहे हैं कि एप्पल यहां आकर कुछ आईफोन बनाए।"
 
वो कहते हैं, "ये ऐसी चीजें नहीं हैं, जिनका उपभोग भारत की 70 फ़ीसदी आबादी करती है। हमें भारत में वही उत्पादन करना चाहिए जिसका उपभोग भारत की 70% आबादी करना चाहती है। अगर मैं इस देश में 200 रुपये की शर्ट बनाने में सक्षम हूं और आयात की मांग को बांग्लादेश और वियतनाम में नहीं जाने देता, तो इससे विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा।"
ये भी पढ़ें
जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घुसपैठ की कोशिश नाकाम, सेना का एक जवान घायल