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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 16 मार्च 2021 (07:52 IST)

5 राज्यों के इन विधानसभा चुनावों से बदल जाएगी राष्ट्रीय राजनीति

5 राज्यों के इन विधानसभा चुनावों से बदल जाएगी राष्ट्रीय राजनीति - impact of 5 states assembly election on national politics
विजयन मोहम्मद कवोसा, बीबीसी मॉनिटरिंग
चार राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश - भारत की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा - जहां अगले दो महीनों में चुनावों के ज़रिए नई सरकारें चुनी जाएंगी। राज्य विधानसभाओं के लिए सदस्यों के चुनाव और स्थानीय सरकारों के गठन के अलावा इन चुनावों का राष्ट्रीय राजनीति पर महत्वपूर्ण असर पड़ेगा, ख़ासकर भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के भविष्य और बड़े विपक्षी समूहों पर।
 
चार राज्यों - असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल और एक केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी के चुनाव 27 मार्च से शुरू होंगे और नतीजों की घोषणा दो मई को की जाएगी।
 
इन 5 क्षेत्रों से मिलाकर 116 सदस्य भारतीय संसद के नीचले सदन में भेजे जाते हैं, जो कुल संख्या का मोटे तौर पर पांचवां हिस्सा हैं। इन राज्यों से संसद के ऊपरी सदन में 51 सदस्य (21%) भी भेजे जाते हैं जिनके सदस्य राज्य विधानसभाओं के ज़रिए सीधे चुने जाते हैं। ये इन राज्यों को भारत की राष्ट्रीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण बनाता है।
 
बीजेपी की विस्तार की कोशिश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बीते क़रीब सात सालों से देश की सत्ता पर काबिज़ है। ये द्विसदनीय भारतीय संसद के दोनों सदनों में संख्या बल के साथ-साथ अपने शासन वाले राज्यों की संख्या के आधार पर भारत में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरी है।
 
पार्टी 2019 के आम चुनाव में भारतीय संसद के नीचले सदन में 56% सीटें जीतने में कामयाब रही, 35 सालों में किसी भी एक पार्टी की ये सबसे बड़ी सफलता थी।
 
हालांकि बीजेपी का ये उभार पूरे भारत में नहीं हुआ। 2019 के चुनाव में भले ही उसने 11 बड़े राज्यों में 75% से ज़्यादा सीटें जीतीं लेकिन वो तमिलनाडु और केरल जैसे कुछ राज्यों में एक भी सीट नहीं जीत पाई। इन्हीं राज्यों में आने वाले दिनों में चुनाव होने हैं।
 
पार्टी ने 2019 में पश्चिम बंगाल में 43% सीटें जीती थीं, इससे पहले तक उसे राज्य में कभी भी 5% से ज़्यादा सीटें नहीं मिलीं। और अब पहली बार है जब पार्टी इस पूर्वी राज्य में सरकार बनाने की कोशिशों में जुटी है।
 
बीजेपी ने कभी भी इन तीन राज्यों (तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल) में सीधे शासन नहीं किया, जिसने आगामी चुनाव को पार्टी के विस्तार के लिए अहम बना दिया है।
 
उत्तर-पूर्वी भारत में सबसे बड़ा राज्य असम भी बीजेपी के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। पार्टी फ़िलहाल वहाँ सत्ता में है और वक़्त के साथ उसने वहां अपनी स्थिति मज़बूत भी की है, लेकिन इस चुनाव से एक साल पहले ही उसे राज्य में व्यापक प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा है।
 
ये प्रदर्शन देश के नागरिकता क़ानून में केंद्र सरकार के संशोधनों के ख़िलाफ़ हुए, जिसके तहत तीन पड़ोसी देशों से आए सताए हुए ग़ैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाएगी और ऐसे लोग बड़ी संख्या में असम में बसे हुए हैं।
 
पुदुचेरी में चार साल से कांग्रेस की सरकार थी लेकिन बीते महीने ही वहाँ सरकार ने अधिकतर विधायकों का समर्थन खो दिया, कुछ ने सत्तारूढ़ पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था।
 
इन चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में कामयाबी ना सिर्फ़ बीजेपी को अगले दौर के राष्ट्रीय चुनावों के लिए और उससे पहले होने वाले राज्य चुनावों के लिए अपने पैर जमाने में मदद करेगी, बल्कि इससे उसे राज्यसभा में भी अपना संख्या बल बढ़ाने में मदद मिलेगी, जहां अभी वो 40% सीटों के साथ अल्पमत में है।
 
विपक्ष के लिए कड़ी चुनौती
इन तमाम राज्यों के चुनाव उन बड़ी राजनीतिक पार्टियों के लिए भी उतने ही अहम हैं, जो इस वक़्त भारतीय संसद में विपक्ष के तौर पर बैठी हैं - इसमें कांग्रेस भी शामिल है जिसने स्वतंत्र भारत पर 50 से ज़्यादा सालों तक शासन किया है।
 
चुनाव वाले राज्यों का भारतीय संसद के नीचले सदन में 21% सीट शेयर है। लेकिन इन राज्यों ने 2019 के चुनाव में विपक्ष (जो बीजेपी से या उसके राजनीतिक सहयोगियों से जुड़ा नहीं थे) के 45% सदस्यों को संसद भेजा था।
 
कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में 421 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ 52 सीट ही जीत पाई। उनकी आधी से ज़्यादा सीटें इन्हीं क्षेत्रों से आई थीं।
 
कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने जितनी भी सीटें जीतीं, उसकी 65% उन्हीं पांच क्षेत्रों से आई थीं। वहीं दूसरी ओर बीजेपी और इसके सहयोगियों ने जो सीटें जीतीं, उनमें से सिर्फ 8% इन क्षेत्रों से आई थीं।
 
संसद के नीचले सदन में सबसे ज़्यादा सदस्यों वाली दो पार्टियां (बीजेपी और कांग्रेस के अलावा) हैं डीएमके, जो तमिलनाडु की एक बड़ी क्षेत्रीय पार्टी है और कांग्रेस की सहयोगी है, और दूसरी है तृणमूल कांग्रेस, जो बीते 10 साल से पश्चिम बंगाल की सत्ता में है।
 
इन दोनों पार्टियों की संसद के दोनों सदनों में मोटे तौर पर 8% सीटें हैं। अगर आगामी चुनावों में राज्य विधानसभाओं में उनकी स्थिति पर असर पड़ता है तो संसद में भी उनकी स्थिति कमज़ोर होगी।
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