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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 6 नवंबर 2021 (08:07 IST)

कोविड: वैज्ञानिकों ने कहा, दक्षिण एशियाई लोगों में अधिक मिलता है हाई-रिस्क जीन

कोविड: वैज्ञानिकों ने कहा, दक्षिण एशियाई लोगों में अधिक मिलता है हाई-रिस्क जीन - Corona risk is more in South asian people
स्मिता मुंदसद, बीबीसी स्वास्थ्य संवाददाता
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़र्ड के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन का पता लगाया है जो कोविड संक्रमण की वजह से फेफड़े खराब होने और मौत होने की संभावना को दोगुना कर देता है।
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि दक्षिण एशियाई पृष्ठभूमि के 60 प्रतिशत और यूरोपीय पृष्ठभूमि के 15 फ़ीसदी लोगों में इस जीन का अधिक ख़तरे वाला संस्करण होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना वैक्सीन अहम हैं, वो इस जीन के ख़तरे को काफ़ी कम कर देती हैं।
 
द नेचर जेनेटिक्स स्टडी में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि ब्रिटेन के कुछ समुदाय और दक्षिण एशियाई मूल के लोगों पर कोविड का ख़तरा अधिक क्यों हैं। हालांकि इस शोध में इसके कारणों को पूरी तरह स्पष्ट नहीं किया गया है।
 
इससे पहले किए गए शोध को आधार बना कर शोधकर्ताओं ने जेनेटिक शोध और आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस की मदद से इस ख़ास जीन की पहचान की है। इसका नाम एलज़ेडटीएफ़एल-1 (LZTFL 1) है और ये कोविड संक्रमण के दौरान ख़तरा बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार है।
 
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस जीन का अधिक ख़तरे वाला संस्करण अफ़्रीका-कैरिबियाई क्षेत्र की दो प्रतिशत और पूर्वी एशियाई क्षेत्र की 1।8 प्रतिशत आबादी में हैं।
 
रीसर्च के मुख्य शोधकर्ता जेम्स डेविस का कहना है कि सबसे अहम बात ये है कि ये जीन सभी तरह के लोगों को एक तरह से प्रभावित नहीं करता। हालांकि वो कहते हैं कि किसी व्यक्ति को इसके कारण कितना ख़तरा है ये कई कारकों पर निर्भर करता है, जिनमें से एक व्यक्ति की उम्र है।
 
वो कहते हैं कि कोरोना वायरस के कारण दूसरों के मुक़ाबले कुछ समुदायों के बुरी तरह प्रभावित होने के सामाजिक-आर्थिक कारण भी हो सकते हैं।
 
वो कहते हैं, "हम जीन तो नहीं बदल सकते हैं लेकिन हमारे नतीजे बताते हैं कि जिन लोगों में अधिक ख़तरे वाला ये जीन है उन्हें टीकाकरण से ख़ास फ़ायदा हो सकता है।"
 
शोधकर्ताओं का मानना है कि इस जीन की वजह से संक्रमितों के फेफड़े कोरोना संक्रमण के कारण अधिक कमज़ोर हो जाते हैं और इस कारण उनके लिए ख़तरा बढ़ जाता है।
 
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस हाई रिस्क जीन की वजह से इंसानों में फेफड़ों की सुरक्षा करने वाला कवच कमज़ोर हो जाता है।
 
जब फेफड़ों की बाहरी कोशिकाएं कोरोना वायरस के संपर्क में आते हैं तो वो एक रक्षात्मक तरीका अपनाते हैं। वो कम स्पेशलाइज़्ड कोशिका में बदल जाते हैं और कोरोना वायरस के प्रति कम रिसेप्टिव होते हैं।
 
ये प्रक्रिया कोशिका की सतह पर एक अहम प्रोटीन एसीई-2 (ACE-2) की मात्रा कम कर देती है। कोरोना वायरस इस प्रोटीन के ज़रिए ही कोशिका से चिपकता है।
 
लेकिन जिन लोगों में ख़तरे वाला ज़ीन यानी LZTFL 1 होता है उनमें ये प्रक्रिया अच्छी तरह काम नहीं करती है और ऐसे में फेफड़ों की कोशिकाएं कोरोना वायरस के प्रति कम रक्षात्मक होते हैं।
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि एक अहम बात ये भी है कि ये जीन फेफड़ों को तो प्रभावित करता है लेकिन शरीर की रोग प्रतिरक्षात्मक प्रणाली (इम्यून सिस्टम) पर कोई असर नहीं डालता है। इसका मतलब ये है कि इस हाई रिस्क जीन वाले लोग भी वैक्सीन से सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
 
वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि इस नई खोज से फेफड़ों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कोविड की दवा बनाने में मदद मिलेगी। फिलहाल अधितकर कोरोना वैक्सीन और दवाएं शरीर के इम्यून सिस्टम को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं।
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