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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 31 अक्टूबर 2021 (13:17 IST)

अखिलेश यादव के साथ दूसरी पार्टियों के विधायक क्यों आ रहे?

अखिलेश यादव के साथ दूसरी पार्टियों के विधायक क्यों आ रहे? - Why MLA of other parties joining Akhilesh Yadav
अनंत झणाणे, लखनऊ से बीबीसी हिंदी के लिए
पिछले एक हफ़्ते में समाजवादी पार्टी को बसपा के आठ बाग़ी विधायक, चार विधायकों वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, कांग्रेस के एक पूर्व विधायक और पूर्व सांसद के अलावा बीजेपी के एक विधायक का समर्थन मिला।
 
इससे पहले सोमवार को बसपा के कद्दावर नेता और कटेहरी से विधायक लालजी वर्मा और अकबरपुर से बसपा विधायक राम अचल राजभर ने भी अखिलेश यादव की मौजूदगी में समाजवादी पार्टी में शामिल होने का ऐलान किया।
 
सात नवंबर को दोनों नेता आंबेडकर नगर ज़िले के अकबरपुर में अपने समर्थकों के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे।
 
28 अक्टूबर को एक बड़ी जनसभा में विधान सभा के चार विधायकों वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव को राजभर समाज का वोट दिलाने की क़सम खाई और पश्चिम बंगाल की तर्ज़ पर "खेला होबे" के नारे से मिलता हुआ "खदेड़ा होबे" का नारा दिया।
 
अखिलेश यादव ने कहा की योगी सरकार के पूर्व मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने पूर्वांचल में, "भाजपा के लिए दरवाज़ा बंद कर दिया है और सपा ने उस पर छिटकनी लगा दी है।" पूर्वांचल में कई सीटों पर भाजपा को इस गठबंधन से नुक़सान पहुँचने की बात कही जा रही है।
 
शनिवार को, बसपा के 6 बाग़ी विधायक समाजवादी से जुड़े। असलम राइनी (भिनगा-श्रावस्ती), असलम अली चौधरी (धौलाना-हापुड़), मुजतबा सिद्दीक़ी (प्रतापपुर-इलाहाबाद), हाकिम लाल बिंद (हंडिया-प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर), और सुषमा पटेल (मुंगरा-बादशाहपुर) अब बसपा छोड़ समाजवादी पार्टी में अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं।
 
साथ में भारतीय जनता पार्टी के सीतापुर से विधायक राजेश राठौड़ ने भी सपा की सदस्यता ली। सपा से जुड़ रहे नेताओं ने हाल ही में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा के उपसभापति के चुनाव में सपा के प्रत्याशी नरेंद्र वर्मा को वोट दिया था।
 
वहीं बसपा के प्रदेश प्रवक्ता धर्मवीर चौधरी का कहना है कि पार्टी के लिए यह राजनीतिक सदमा नहीं है क्योंकि, "यह विधायक अब बसपा के नहीं हैं। मायावती ने इन सब को निष्कासित कर दिया था। वो हमारी पार्टी के नहीं हैं। आप उनको बसपा विधायक ना कहें। पार्टी से यह नाराज़ नहीं हैं, जनता इनसे नाराज़ है, इसीलिए बहनजी ने इन्हें पार्टी से निकाला।"
 
"इनके पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण, जनता के रोष के कारण पार्टी इनसे नाराज़ थी, इसीलिए पार्टी ने इन्हें निकाला। पार्टी समय-समय पर ऐसे लोगों को निकालती रही है। इनमे से मुझे एक नेता दिखा दीजिए जो अपने दस हज़ार समर्थकों के साथ रैली करके यह कह रहा हो की मैं पार्टी छोड़ रहा हूँ।"
 
क्यों हुए इतने सारे विधायक सपा में शामिल?
शनिवार को शामिल होने वाले सभी छह विधायक अक्टूबर 2020 से बसपा से निलंबित थे। इन सभी पर 2020 में हुए राज्यसभा चुनावों में बसपा समर्थित प्रत्याशी रामजी गौतम के चुनाव के दौरान पार्टी के व्हिप के ख़िलाफ जाने का आरोप है। तब सभी ने सार्वजिनक रूप से मायावती पर भाजपा को मज़बूत करने का आरोप लगाया था।
 
हापुड़ के धौलाना से बसपा के विधायक असलम अली ने कहा, "हम लोग बहनजी की नीतियों से नाराज़ होकर यहाँ आए हैं। जिस तरह से मान्यवर कांशीराम ने इस प्लेटफॉर्म को बनाया था, उसको बहनजी की नीतियां ने बिगाड़ दिया। मैं इसी बात से नाराज़ हूँ।
 
बसपा प्रमुख मायावती भाजपा को मज़बूत करने वाले राजनीतिक कदम उठाती रही हैं? इस पर असलम ने कहा, "पहले भी देखा था आपने और राज्यसभा चुनाव में भी कि वो बीजेपी को मज़बूत कर रही हैं। उनसे गठबंधन करने में जुटी हैं। उनकी नीतियां, मान्यवर कांशी राम जी और मान्यवर आंबेडकर जी के विपरीत हैं। पूरे पश्चिम में बीजेपी का सूपड़ा साफ़ है।"
 
उत्तर प्रदेश से वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता के मुताबिक, "बसपा के लोग अब पार्टी को पहले की तरह मज़बूत नहीं समझ रहे हैं क्योंकि बीएसपी का जो मूल आधार था, कैडर का, उसमे कुछ कांग्रेस सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, कुछ भाजपा 2014, 2017 ओर 2019 में लगा चुकी है। लोग सोच रहे हैं की अगर बीजेपी से लड़ना है तो सपा के अलावा कोई राजनीतिक विकल्प नहीं है।"
 
भाजपा के राकेश भी हुए सपा में शामिल
शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लखनऊ में भाजपा के सदस्यता अभियान की शुरुआत करते हुए नारा दिया "मेरा परिवार, भाजपा परिवार।" ठीक दूसरे ही दिन उस परिवार के एक सदस्य और भाजपा के सीतापुर सदर से विधायक राकेश राठौड़ समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा को अपना नारा बदल कर, "भाजपा परिवार भागता परिवार" कर लेना चाहिए।
 
राकेश राठौड़ भी अखिलेश यादव से पहले "शिष्टाचार मुलाक़ात" कर चुके थे और तभी से उनके सपा में शामिल होने की अटकलें लग रही थीं।
 
राकेश राठौड़ के सपा में शामिल होने के बारे में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव का कहना कि, "अखिलेश यादव कह रहे हैं भाजपा परिवार भागता परिवार है। 2016 में लोगों ने मुख्यमंत्री आवास से उनका भागता परिवार देखा था। किस तरह चाचा भतीजे के बीच परिवार में भगदड़ मची थी। अखिलेश जी दूसरों को सम्मान देना सीखें, अपना परिवार मज़बूत करें।"
 
उत्तर प्रदेश में टिकटों के बँटवारे की अटकलों का बाज़ार गर्म है और अमित शाह के लखनऊ दौरे के बाद राजनीतिक फ़िज़ा में यह बात चल रही है कि भाजपा अपने विधायकों के टिकट काटने जा रही है।
 
इसके बारे में नवीन श्रीवास्तव कहते हैं, "देखिये इसकी संख्या कोई बता नहीं सकता है, लेकिन निश्चित रूप से पार्टी अपने कई स्तरों पर सर्वेक्षण करती हैं और जो हमारी पार्टी की नीतियों के हिसाब से नहीं चले रहे हैं, जो जनता के सुख दुःख में शामिल नहीं हुए हैं, निश्चित रूप से हम उनको दोबारा प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर विचार करेंगे।"
 
क्या सपा सभी को टिकट देगी?
चुनाव के पहले नाराज़ या टिकट काटे जाने के डर से परेशान विधायक अक्सर दल बदला करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता कहती हैं, "जब भी चुनाव होते हैं तो लोग देखते हैं कि सत्ता के ख़िलाफ़ कौन सी पार्टी खड़ी है। यह एक तरह का ध्रुवीकरण है कि जो सरकार के ख़िलाफ़ है, वो सपा के साथ हो गया है। उसमे इनका अपना हित भी है और समाजवादी पार्टी का हित भी।"
 
सपा में शामिल हुए सीतापुर के सिधौली से विधायक हरगोविंद भार्गव के समाजवादी पार्टी कार्यालय के सामने बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं जो उनके पार्टी में शामिल होने का जश्न मना रहे हैं। हरगोविंद का कहना है कि, "पहले 2500 वोटों से जीता था, लेकिन अब सपा की तरफ़ से 25 हज़ार वोटों से जीत कर आऊंगा"
 
लेकिन अभी तय नहीं हैं कि इनमे से कितने विधायकों को सपा टिकट देगी। ज़ाहिर है, समाजवादी पार्टी ने चुनाव के पहले अपना कद ऊँचा करने की मंशा से इन विधायकों को जोड़ा होगा।
 
टिकट मिलने के सवाल पर प्रयागराज के हंडिया क्षेत्र से बसपा विधायक हाकिम लाल बिन्द का कहना है, "यह अखिलेश जी के ऊपर निर्भर करता है, वो जो आदेश देंगे, उनका आदेश हमे मान्य रहेगा। "
 
क्या है अखिलेश यादव और सपा का आकर्षण?
बसपा से सपा में शामिल होने वाले विधायक एक साल से समाजवादी पार्टी के नेताओं से और अखिलेश यादव से बातचीत के नाम पर शिष्टाचार मुलाक़ातें कर रहे हैं। यह शायद इस बात को दर्शाता है कि काफ़ी लंबे समय से यह लोग पार्टी में शामिल होने की कोशिश कर रहे थे।
 
पत्रकार रतन मानी कल इस फ़ैक्टर को समझते हुए कहते हैं, "अब मुझे यह भी लगता है कि अखिलेश और समाजवादी पार्टी की तरफ़ से किसी को पार्टी में लाने की कोशिश नहीं हो रही है, लोग ख़ुद ही आकर्षित हो रहे हैं। यह एक बहुत बड़ा फ़ैक्टर है। लोग ख़ुद ही आ रहे होंगे उनके पास।"
 
सवाल यह भी उठता है की बाग़ी हुए यह नेता भाजपा या कांग्रेस में शामिल क्यों नहीं हो रहे हैं? बीबीसी ने जब यह सवाल जौनपुर के बादशाहपुर से विधायक सुषमा पटेल से पूछा तो उन्होंने कहा, "पिछले विधानसभा के चुनावों में पार्टी ने हम विधायकों को निलंबित कर दिया था और जनता की इच्छा पर मैं समाजवादी पार्टी में शामिल हुई हूँ।''
 
''यह फ़ैसला मैंने व्यापक विचार विमर्श के बाद लिया है। मेरे क्षेत्र की जनता की इच्छा है की एक बेहतर, शिक्षित और विज़नरी नेतृत्व मिले। इस प्रदेश ने और इस प्रदेश की जनता ने अखिलेश यादव के कार्य को देखा है और इसका हमे फ़ायदा मिलेगा।"
 
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार रतन मणि लाल के मुताबिक़, "अखिलेश आज भी अपने शासनकाल के दौरान हुए कार्यों को ही गिनाते हैं। यह अखिलेश के कैंपेन का प्लस पॉइंट है।''
 
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफ़ीज़ गांधी बताते हैं, "भाजपा सरकार अपने संकल्प पत्र के वादे पूरे नहीं कर पाई है, इसलिए लोगों में निराशा है। जनता के दवाब में क्षेत्रीय लीडर सबसे मजबूत विपक्षी विकल्प के रूप में समाजवादी पार्टी को चुन रहे हैं। सभी दलों के नेता अखिलेश यादव जी के नेतृत्व में विश्वास जता रहे हैं।''
 
अब्दुल हफ़ीज़ गांधी यह दावा करते हैं, "उत्तर प्रदेश की जनता जब समाजवादी पार्टी की सरकार और योगी जी की सरकार के विकास के कामों का आकलन करती है तो अखिलेश यादव जी के किए कामों को सराहती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जनता प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनाना चाहती है।''
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