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Last Modified: रविवार, 17 जून 2018 (14:30 IST)

शादी का कार्ड है, पर उसमें दुल्हन का नाम नहीं

शादी का कार्ड है, पर उसमें दुल्हन का नाम नहीं - brides name is not there in Invitation cards
इज़्हार उल्लाह, पेशावर 
पाकिस्तान के खैबरपख्तूनख्वा इलाके के जिले चारसद्दा में रहने वाले रौफ खान एक निजी कंपनी में काम करते हैं। उनकी शादी को एक साल हो चुका है। उनकी पत्नी के पास दोहरी नागरिकता है और वो पाकिस्तान से बाहर रहती हैं। रौफ चाहते हैं कि वो देश से बाहर जा कर अपनी पत्नी के साथ रहें लेकिन इसके लिए जरूरी कागजी कार्रवाई में एक रुकावट आ गई है।
 
जरूरी वीजा के लिए डॉक्यूमेंट के तौर पर शादी का कार्ड पेश किया जा सकता है। लेकिन, जब रौफ ने शादी का कार्ड छपवाया था तो उसमें दुल्हन यानी उनकी पत्नी का नाम नहीं था और इस कारण रौफ को अब अपनी पत्नी के पास जाने में वक्त लगने वाला है।
 
रौफ और उनके परिवार ने साल भर पहले शादी के मौक़े पर नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों को निमंत्रण देने के लिए पांच सौ कार्ड छपवाए थे।
 
लेकिन शादी के इन कार्ड की खास बात ये थी कि इससे दूल्हे की पहचान तो पता चलती है लेकिन इस बात अंदाज़ा नहीं लगता कि दुल्हन कौन है। ऐसा इसलिए क्योंकि शादी के कार्ड में दूल्हे का नाम तो है, लेकिन दूल्हन का नाम छापा ही नहीं गया।
 
'समाज का डर'
 
रौफ की शादी के कार्ड में लिखा है, 'शादी के समारोह में हम तहे दिल से आपका स्वागत करते हैं। आपके आने से हमें बेहद खुशी होगी। हम आपके आभारी रहेंगे।'
 
कार्ड में ऊपर की तरफ दूल्हे यानी रौफ का नाम लिखा है जिसके बाद उनके पिता का नाम लिखा है। इसके नीचे दुल्हन के नाम की जगह पिता कुछ इस तरह लिखा है- 'अमुक की बेटी'।
 
जिसके पास भी ये कार्ड जाएगा उसे इसका पता तो चलेगा कि शादी रौफ की है लेकिन किसके साथ है यानी अमुक की बड़ी बेटी से, मंझली बेटी से या फिर छोटी बेटी से इसका पता उन्हें नहीं चलेगा।
 
जब हमने रौफ से पूछा कि उनकी होने वाली पत्नी का नाम कार्ड में क्यों नहीं था, तो वो थोड़ी देर सोचते रहे। फिर बोले ये हमारी संस्कृति में नहीं है।
 
लोगों को कैसे पता चलेगा कि कौन-सी बहन की शादी है? ये सवाल पूछने पर रौफ़ मुस्कुरा दिए। उन्होंने कहा, 'हमारे समाज में नाते-रिश्तेदार दुल्हन के नाम के बारे में जानें, ये अच्छा नहीं माना जाता। इसीलिए कार्ड में पिता के नाम के सिवा दुल्हन की पहचान से संबंधित कोई और बात नहीं लिखी जाती।'
 
उन्होंने कहा, 'कोई नहीं चाहता कि उसकी पत्नी का नाम बाहरवालों को पता हो और इसलिए कोई उनका नाम कार्ड पर प्रिंट नहीं करवाता।'
 
रौफ कहते हैं, 'मुझे पहले नहीं पता था, लेकिन अब मुझे लग रहा है कि मैंने अपनी पत्नी का नाम कार्ड पर लिखा होता को बेहतर होता। मैं अगर अपने वीज़ा के लिए कार्ड भी दे पाता को काम जल्दी हो जाता।'
 
पुरुषप्रधान व्यवस्था
पाकिस्तान में शादी के कार्ड पर पत्नी का नाम नहीं छापने वाले रौफ अकेले नहीं हैं।
 
पेशावर में प्रिंटिंग प्रेस चलाने वाले जावेद खान कहते हैं कि उनके पास शादी के जो कार्ड प्रिंट होने के लिए आते हैं उनमें से अस्सी फीसदी कार्डों पर दुल्हन का नाम नहीं होता।
 
जावेद कहते हैं कि 20 फीसदी कार्ड अंग्रेजी में होते हैं और इनमें दुल्हन के नाम छापने के लिए कहा जाता है। वो कहते हैं कि दुल्हन का नाम लिखने वाले परिवारों को आधुनिक और पढ़े-लिखे परिवार माना जाता है।
 
हालांकि रौफ इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते। वो कहते हैं कि वो कॉलेज गए हैं और पढ़े-लिखे हैं लेकिन उन्होंने समाज के डर शादी के कार्ड पर दुल्हन का नाम नहीं लिखवाया।
 
पेशावर के रहने वाली जीनत बीब एक टेलीविजन चैनल के लिए काम करती हैं। उनका कहना है कि दो साल पहले उनकी शादी हुई थी और उन्होंने शादी के कार्ड पर दुल्हा और दुल्हन दोनों के नाम लिखवाए थे।
 
जीनत कहती हैं कि देश में महिलाएं अपनी पहचान की बजाय अपने पिता या पति के नाम से ही पहचानी जाती हैं। यहां तक कि कहीं-कहीं पर महिला के पहचान पत्र में भी उसकी नहीं बल्कि पति या पिता का नाम होता है।
 
वो कहती हैं कि समाज में सभी व्यवस्थाएं पुरुषप्रधान हैं और यही कारण है कि महिला की पहचान वो खुद नहीं होती।
 
लिली शाह नवाज पेशावर में महिलाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था सिस्टर्स हाऊस के साथ मिल कर काम करती हैं। वो कहती हैं, 'हमारे समाज में घर की इज़्ज़त को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और लोगों को लगता है कि महिला के नाम से पहचान होने पर घर की इज़्ज़त कम हो जाती है।'
 
वो मानती हैं कि इस मानसिकता को बदलने की ज़रूरत है और इसके लिए लोगों को जागरूक करना होगा। वो कहती हैं, 'समाज को बदलने के लिए महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी आगे आना होगा।'
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