क्या आपने कभी गौर से अपना कान देखा है। हो सकता है कि इसमें छेद हो। यह छेद इतना छोटा होता है कि संभव है कि आपका ध्यान कभी इस पर नहीं गया हो। अगर आपको विश्वास नहीं है तो किसी और से अपने कान दिखाएं। आप पाएंगे कि शायद आपके कान के ऊपरी हिस्से में एक छोटा सा छेद नुमा निशान हो।
इसे प्रीऑरीकुलर साइनस कहते हैं। अधिकतर लोगों में यह छेद धीरे-धीरे गायब हो जाता है। हालांकि कुछ नस्लों में यह दस फ़ीसदी लोगों के कानों में रह जाता है। यह छेद जन्मजात होता है, जो कान के बाहरी हिस्से में दिखाई देता है।
क्यों होता है यह छेद
कुछ अध्ययन के मुताबिक ये बाएं कान के मुकाबले दाएं कान में अधिक पाए जाते हैं। दरअसल मां के पेट में जब भ्रूण का विकास सही तरीके से नहीं होता है तो यह छेद रह जाता है।
जीव वैज्ञानिक नील शुबिन ने बिजनेस इनसाइडर को बताया, "वास्तव में ये छेद मछली के गलफड़े का अवशेष हो सकते हैं।" अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक यह भी संभव है कि यह छेद त्वचा और मांस के ठीक से ना जुड़ने के कारण हो।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में जेनेटिक्स एंड एनाटॉमी विभाग के प्रोफेसर विंसेट जे लिंच कहते हैं, "ये भी हो सकता है कि कान के उस हिस्से की संरचना मानव विकास के साथ बदली हो।"
"अधिकतर मामलों यह प्रक्रिया सामान्य होती है लेकिन कभी कभार भ्रूण में इसका सही विकास नहीं हो पाता है।" दक्षिण कोरिया के यूनिवर्सिटी ऑफ योनसेई में हुए एक अध्ययन के मुताबिक अमेरिका के 9 फ़ीसदी लोगों के कानों में यह छेद होते हैं।
वहीं एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में ये दस फ़ीसदी लोगों के कानों में होता है। अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि यह छेद पश्चिमी देशों के मुकाबले एशियाई लोगों में ज़्यादा होते हैं।
क्या है ख़तरनाक है
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक इस छेद से लोगों को कोई ख़तरा नहीं है, जब तक कि यह संक्रमित न हो। उस स्थिति में इसका इलाज किया जाना ज़रूरी है और इसे सर्जरी से निकाला भी जा सकता है। अगर आपके कान में भी यह छेद है तो परेशान न हों, लेकिन अगर आपको किसी तरह का शक है तो डॉक्टर से परामर्श लें।