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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 27 जून 2024 (07:51 IST)

असम बाढ़: जिंदा हैं या मर गए, किसी ने सुध नहीं ली- ग्राउंड रिपोर्ट

असम बाढ़: जिंदा हैं या मर गए, किसी ने सुध नहीं ली- ग्राउंड रिपोर्ट - assam flood ground report
लगातार तेज बारिश से हमारे चारों तरफ पानी भर गया था। कुछ ही घंटों में घर के सामने की गली पानी में डूब गई। पति घर पर नहीं थे। हर जगह पानी था। मैंने कई रातें दोनों बच्चों के साथ बिना सोये गुजारी है। पिछले 10 दिनों से हमें चारों तरफ से पानी ने घेर रखा था लेकिन हम जिंदा हैं या मर गए, किसी ने सुध तक नहीं ली। 37 साल की रोंजू बेगम अपनी तकलीफ और ग़ुस्सा कुछ इस कदर बयां करती हैं।
 
रोंजू बेगम भारत के उत्तरी पूर्वी राज्य असम के एक सुदूर गांव मादोईकाटा में रहती हैं, जहां बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है।
 
तामुलपुर जिला मुख्यालय से करीब 11 किलोमीटर दूर मादोईकाटा गांव में प्रवेश करते ही टूटी सड़कों पर बहता पानी, जगह-जगह जमा हुआ कीचड़, कई जगह पानी में आधे डूबे बिजली के खंभे बाढ़ की तबाही बयां करने लगते हैं।
 
गांव वाले बताते हैं कि यह पहली लहर की बाढ़ है जबकि आगे इस तरह की बाढ़ का कई बार और सामना करना पड़ेगा। क़रीब ढाई हज़ार आबादी वाला मुस्लिम बहुल मादोईकाटा गांव गोरेश्वर विधानसभा के अंतर्गत आता है जबकि संसदीय क्षेत्र दरंग-उदालगुरी है। इन दोनों ही सीटों पर ही बीजेपी लगातार जीतती रही है। भाबेश कलिता गोरेश्वर से विधायक होने के साथ ही असम प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष भी हैं।
 
लिहाजा बाढ़ के समय सरकार की तरफ़ से मिलने वाली मदद पर रोंजू कहती हैं, "बाढ़ में डूबने का भय किसे नहीं लगता? सरकार और प्रशासन को हमारी सुध लेनी चाहिए थी। पानी इतनी तेज़ी से बढ़ा कि हम दो-तीन दिन तक खाने पीने का सामान लेने बाहर नहीं जा सके। किसी ने हमसे पीने का पानी तक नहीं पूछा। बारिश का पानी ही पीना पड़ा।"
 
"हमें लगा कि कोई हमारी मदद के लिए आएगा लेकिन अब तक कोई नहीं आया है। जबकि पिछले महीने चुनाव के समय विधायक समेत कई बड़े नेता हमारे घर वोट मांगने आए थे।"
 
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क्या कह रहा है प्रशासन?
बाढ़ पीड़ितों के इन आरोपों पर बात करने के लिए बीबीसी की तरफ़ से स्थानीय विधायक भोबेश कलिता को फोन पर कई दफा संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी।
 
हालांकि इलाके में बारिश रुकने के कारण अब धीरे-धीरे बाढ़ का पानी कम हो रहा है। लेकिन रोंजू बेगम के घर तक जाने के लिए रस्सी के सहारे पानी के ऊपर बिछाए गए सुपारी के पेड़ पर चलना पड़ता है। अगर किसी कारण रस्सी छूट गई या पैर फिसल गया तो पानी में गिरने से गहरी चोट लग सकती है। उनके घर के ठीक पीछे क़रीब 20 और घर हैं और वहां तक जाने के लिए बीबीसी की टीम ने केले के पेड़ से बनी नाव की मदद ली।
 
इसी गांव में खेती करने वाले 30 साल के मजामिल हक़ कहते हैं, "बाढ़ में बहुत नुक़सान हो गया। बहुत परेशान हैं। मछली पालन और सब्जी की थोड़ी बहुत खेती कर जैसे तैसे गुजारा करते है लेकिन बाढ़ के पानी में सारी मछलियां चली गई। पिता बीमार है लेकिन उन्हें अस्पताल नहीं ले जा पा रहा हूं। किससे कहें। हमारी कौन सुनता है?"
 
हालांकि तामुलपुर के ज़िला उपायुक्त विद्युत विकास भागवती बाढ़ पीड़ितों की मदद करने में प्रशासन की तरफ़ से कोई कमी नहीं छोड़ने का दावा करते है।
 
मादोईकाटा बाढ़ पीड़ितों को मदद नहीं पहुंचने की शिकायत पर ज़िला उपायुक्त कहते हैं, "प्रशासन की तरफ़ से बाढ़ पीड़ितों तक सौ फीसदी राहत पहुंचाने का काम किया गया है। इस बार बाढ़ से गोरेश्वर शहर और तामुलपुर में ज्यादा लोग प्रभावित हुए है। अगर किसी इलाके से कोई शिकायत आ रही है तो अधिकारी को भेजकर जांच कराएंगे। लेकिन इस बार की बाढ़ लगातार हुई बारिश के कारण आई थी और अब कई इलाकों में पानी निकल चुका है।"
 
असम में आई बाढ़ और भूस्खलन से अब तक कम से कम 30 लोगों की मौत हो चुकी है।
 
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ताज़ा रिपोर्ट में राज्य में बाढ़ की स्थिति में थोड़ा सुधार होने के बात जरूर कही जा रही है लेकिन अधिकारियों ने बताया कि पिछले 24 घंटों में बाढ़ के कारण तीन लोगों की मौत हुई है।
 
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मंगलवार को एक ट्वीट कर बताया कि राज्य के 102 राहत शिविरों में 13 हज़ार से अधिक लोगों ने शरण ले रखी है।
 
आपदा विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के नौ ज़िलों में अब भी 556 गांव बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं। एक लाख 70 हज़ार से अधिक आबादी अब भी विस्थापित है।
 
असम में पहली लहर की इस बाढ़ से सबसे ज्यादा नुक़सान करीमगंज ज़िले में हुआ है। केवल करीमगंज ज़िले में 12 हज़ार से ज़्यादा बेघर लोग अपने छोटे बच्चों और बुजुर्गों के साथ राहत शिविरों में रह रहें है।
 
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करीमगंज ज़िले के गोपिका नगर की रहने वाली 45 साल की शांतना दास बाढ़ वाली रात को याद कर अब भी डर जाती हैं।
 
वो कहती हैं, "कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण सोन बील में तेज़ी से पानी बढ़ रहा था। बीते मंगलवार की शाम को हमने मवेशियों को मोटर वाली नाव से सुरक्षित जगह पहुंचाने की बात सोची थी। लेकिन महज आधे घंटे में पानी हमारे घर में कमर तक भर गया। जान बचाने के लिए सारा सामान छोड़कर बेटे के साथ मवेशियों वाली नाव में ही भागना पड़ा।"
 
बांग्लादेश की सीमा से सटे करीमगंज ज़िले के सोन बील में सर्दियों के दौरान मार्च तक किसान चावल की खेती करते हैं। और फिर यह जगह पानी से भर जाती है और झील बन जाती है। सोन बील का प्रवेश और निकास सिंगला नदी है जो मणिपुर से निकलती है।
 
अब शांतना अपने 14 साल के बेटे और पति के साथ कालीबाड़ी सुभाष हाई स्कूल में बने राहत शिविर में रह रही हैं।
 
वो कहती है,"मैंने अपने जीवन में इतनी बड़ी बाढ़ कभी नहीं देखी। दो साल पहले भी बाढ़ आई थी लेकिन इस बार बहुत भयंकर थी। अगर हमें घर से निकलने में थोड़ी देर और हो जाती तो कोई भी जीवित नहीं बचता।"
 
शांतना के इलाके से गुजरने वाली कुशियारा नदी अब भी अपने ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही है। इस साल हुई अप्रत्याशित बारिश और बाढ़ ने असम तथा अन्य राज्यों के साथ-साथ पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में विनाश के निशान छोड़े हैं।
 
पहली लहर की इस बाढ़ में असम के सैकड़ों गांव जलमग्न हो गए हैं, फसलें नष्ट हो गई हैं, तथा मकान और घरेलू संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचा है।
 
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से होने वाली मौसमी घटनाओं और पूर्वोत्तर राज्यों में बारिश के बदलते स्वरूप पर नज़र रख रहे जानकारों का कहना है कि इस क्षेत्र में साल दर साल बाढ़ को लेकर जो ट्रेंड देखा जा रहा है वो वाकई काफी गंभीर है।
 
जलवायु परिवर्तन से हालात गंभीर
क़रीब दो दशकों से पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े कई विषयों पर काम करने वाली अनीशा शर्मा कहती है, "पूर्वोत्तर राज्यों में होने वाली बारिश में कई तरह के बदलाव देखें जा रहे है। इस क्षेत्र में बाढ़ का आना आम बात है लेकिन जलवायु परिवर्तन के असर के कारण बाढ़ अधिक तीव्र और कम पूर्वानुमानित हो रही है, जिससे नागरिकों की सुरक्षा लगातार खतरे में पड़ रही है।"
 
इस तरह का ट्रेंड पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश के पूर्वोत्तर हिस्सों में भी सामने आया है। बांग्लादेश में कई सप्ताह तक भारी बारिश के कारण 18 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को न केवल अध्ययन के जरिए समझने की जरूरत है बल्कि सरकार को अब इस दिशा में प्रभावी उपाय करने की भी आवश्यकता है।