रविवार, 22 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Agreement with Dubai in Kashmir is a setback for Pakistan
Written By BBC Hindi
Last Updated : बुधवार, 20 अक्टूबर 2021 (12:28 IST)

कश्मीर में दुबई के साथ समझौता क्या पाकिस्तान के लिए झटका है?

कश्मीर में दुबई के साथ समझौता क्या पाकिस्तान के लिए झटका है? - Agreement with Dubai in Kashmir is a setback for Pakistan
दुबई की सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इंफ़्रास्ट्रक्चर को लेकर एक समझौते पर (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते को काफ़ी अहम इसलिए बताया जा रहा है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर हमेशा से एक विवादित क्षेत्र रहा है।
 
पाकिस्तान के राजनयिकों का कहना है कि यह पाकिस्तान के लिए झटका है। दुबई यूएई का है और यूएई एक इस्लामिक देश है। पाकिस्तान की कोशिश रही है कि वो कश्मीर के मामले में इस्लामिक कनेक्शन जोड़ते हुए भारत के ख़िलाफ़ समर्थन जुटाए। हालांकि पाकिस्तान को इसमें अब तक वैसी कामयाबी नहीं मिली है। पाकिस्तान के साथ कश्मीर मामले में तुर्की ही खुलकर आया लेकिन बाक़ियों से निराशा ही हाथ लगी है।
 
यूएई ने अनुच्छेद 370 ख़त्म करने के बाद भी पाकिस्तान की लाइन का समर्थन नहीं किया था। अब कहा जा रहा है कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दुबई का कश्मीर में समझौता करना केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर मान्यता देने की तरह है। इसे पाकिस्तान के लिए रणनीतिक झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
 
केंद्रीय एवं वाणिज्य उद्योग मंत्रालय ने सोमवार को एक प्रेस रिलीज़ जारी करके बताया था कि इस समझौते के तहत दुबई की सरकार जम्मू-कश्मीर में रियल एस्टेट में निवेश करेगी जिनमें इंडस्ट्रियल पार्क, आईटी टॉवर्स, मल्टीपर्पस टॉवर, लॉजिस्टिक्स, मेडिकल कॉलेज, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल शामिल हैं। हालांकि इस समझौते को लेकर साफ़तौर पर यह नहीं बताया गया है कि इसकी लागत क्या होगी।
 
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात के हिस्से दुबई ने यह समझौता किया है और जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा वापस लिए जाने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद किसी विदेशी सरकार का यह पहला निवेश समझौता है।

 
बयान में क्या कहा गया है?
 
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने एक बयान में कहा है कि दुबई सरकार के साथ समझौता ज्ञापन दिखाता है कि दुनिया यह मान रही है कि जम्मू-कश्मीर विकास की गति पर सवार हो रहा है। 'यह MoU एक मज़बूत संकेत पूरी दुनिया को देता है कि भारत एक वैश्विक ताक़त में बदल रहा है और जम्मू-कश्मीर की इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका है।'
 
पीयूष गोयल ने कहा कि MoU एक मील का मत्थर है, क्योंकि इसके बाद पूरी दुनिया से विकास आएगा और इसे एक बड़ा अवसर मिलेगा। दुबई के विभिन्न क्षेत्रों ने निवेश में रुचि दिखाई है और सभी ओर से विकास की उम्मीद है और हम सही रास्ते पर हैं।
 
गोयल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद देते हुए कहा कि वो जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के विकास को लेकर प्रतिबद्ध हैं और 28,400 करोड़ का हालिया औद्योगिक पैकेज विकास के प्रति एक प्रमाण की तरह है। जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी इसे केंद्र शासित प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण अवसर बताते हुए कहा है कि इससे जम्मू-कश्मीर को औद्योगीकरण और सतत विकास में नई ऊंचाइयों पर ले जाने में मदद मिलेगी।
 
हालांकि, रॉयटर्स समाचार एजेंसी लिखती है कि सेना की भारी तैनाती वाले इस क्षेत्र में निवेश भारी ख़तरों से भरा हुआ है, क्योंकि हाल के दिनों में आम लोगों पर कई चरमपंथी हमले हुए हैं और सुरक्षाबलों ने उनके ख़िलाफ़ अभियान छेड़ा है जिसके कारण कई लोगों की मौत हुई है। एक के बाद एक कई टार्गेटेड किलिंग की घटनाओं के बाद सोमवार को भारतीय प्रशासन ने हज़ारों प्रवासी मज़दूरों को कश्मीर में सुरक्षित जगहों पर भेजा था जबकि सैकड़ों मज़दूर कश्मीर छोड़कर जा चुके हैं।
 
पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक ने क्या कहा?
 
भारत सरकार जहां इसे एक बड़ी कामयाबी की तरह देख रही है, वहीं पाकिस्तान की भी नज़र इस घटना पर बनी हुई है, क्योंकि दोनों ही राष्ट्र कश्मीर पर अपना-अपना दावा करते आए हैं। इस समझौते की घोषणा के बाद पाकिस्तान की ओर से आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है लेकिन विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने एक बार फिर कश्मीर को लेकर ट्वीट कर दिया।
 
उन्होंने भारत प्रशासित कश्मीर में बेरोक-टोक एक्स्ट्रा-जुडिशियल किलिंग्स का आरोप लगाते हुए लिखा कि 'भारत प्रायोजित आतंकवाद और क्रूर सैन्य घेराबंदी कश्मीरी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए लड़ने की इच्छा को नहीं तोड़ पाएगा। पाकिस्तान उनके मक़सद का पुरज़ोर समर्थन करता है।'
 
दुबई के साथ समझौते को भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने इसे भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी बताया है। उन्होंने कहा कि भारत की हमेशा से कोशिश रही है कि वो दूसरे देशों को जम्मू-कश्मीर में अपने मिशन और उच्चायोग खोलने और वहां निवेश करने के लिए राज़ी करे ताकि OIC (ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक रिपब्लिक) के अंदर कश्मीर के मुद्दे को कमज़ोर किया जा सके।
 
अब्दुल बासित ने अपने एक यूट्यबू वीडियो में कहा, 'दुबई ने भारत में निवेश करने के लिए समझौता किया है लेकिन इस पर अभी अधिक जानकारियां सामने नहीं आई हैं, क्योंकि यह सिर्फ़ MoU है। जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के संदर्भ में यह भारत के लिए बड़ी कामयाबी है।'
 
'मुस्लिम देश और OIC के सदस्य देश हमेशा से पाकिस्तान और कश्मीरी भावनाओं को लेकर चिंतित रहे हैं और वो यह सोचते रहे हैं कि उनका कोई ऐसा काम न हो जो यह दिखाए कि वो पाकिस्तान के साथ नहीं खड़े हैं।' 'यह MoU दिखाता है कि मामला हमारे हाथ से निकलता जा रहा है। हम अंधेरे में अपने हाथ-पांव हिला रहे हैं और सच्ची बात यही है कि कश्मीर पर हमारी कोई नीति अब रही ही नहीं है। वर्तमान सरकार का कश्मीर को लेकर ढीलढाल रवैया रहा है जो उनको भविष्य में डराएगा लेकिन पिछली सरकारों ने भी हमारी कश्मीर नीतियों को कमज़ोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।'
 
अब्दुल बासित ने कहा कि यह भारत और पाकिस्तान दोनों के पक्ष में है कि कश्मीर मसले का हल हो लेकिन सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान एकतरफ़ा तौर पर सब भारत को दे देगा। 'MoU अभी साइन हुए हैं लेकिन यह भी हो सकता है कि कल यूएई, ईरान भी अपने कॉन्सुलेट कश्मीर में खोल ले। हमारी कूटनीति का अगर यही हाल रहा तो कल कुछ भी हो सकता है।'
 
इसके साथ ही बासित ने पाकिस्तान की अफ़ग़ानिस्तान को लेकर कूटनीति पर भी कई सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि एक समय अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान कामयाब दिख रहा था लेकिन अब वो ख़ुद ही दबाव में आ गया है। 'अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिकी दूत ज़ल्मय ख़लीलज़ाद ने इस्तीफ़ा दे दिया है और मॉस्को फ़ोरम में अमेरिका नहीं जा रहा है जबकि वहां पर तालिबान और भारत भी होगा। तालिबान को मान्यता दिलाने का मामला भी ठंडा पड़ चुका है और पाकिस्तान ने भी इस पर कुछ करना छोड़ दिया है।'
 
'पाकिस्तान किसी मुद्दे को जारी नहीं रख पाता है और वो नीति वहीं धरी-की-धरी रह जाती है। हमने जम्मू-कश्मीर को लेकर एक डोज़ियर पेश किया था लेकिन उसका क्या हुआ, उस पर सारी बातें सुनी-अनसुनी हो गई। उस पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। फ़ॉलोअप में हम बहुत कमज़ोर हैं और यही हमारा बुनियादी मसला है। वरना कोई वजह नहीं है कि हम कश्मीर, अफ़ग़ानिस्तान और चीन के मसले पर जो नतीजे चाहें उसको हासिल न कर पाएं।'
 
भारत-पाकिस्तान के बीच यूएई की भूमिका
 
कश्मीर के मुद्दे को OIC में मुस्लिम देश ज़रूर उठाते रहे हैं लेकिन हर मुस्लिम देश इसके शांतिपूर्ण हल की वकालत करते आए हैं। इस साल की शुरुआत में भारत और पाकिस्तान के बीच जब तनाव गहराया तो संयुक्त अरब अमीरात ने आगे बढ़कर इसको शांत करने की कोशिश की थी।
 
इस साल अप्रैल में अमेरिका में यूएई के राजदूत यूसुफ़ अल-ओतैबा ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे रिश्ते कायम करने को लेकर यूएई कोशिश कर रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, ओतैबा ने स्टेनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में एक वर्चुल डिस्कशन के दौरान कहा था कि जनवरी में दुबई में भारत और पाकिस्तान के शीर्ष ख़ुफ़िया अफ़सरों के बीच बातचीत हुई है।
 
उन्होंने कहा था कि यूएई 'कश्मीर में तनाव को कम करने और संघर्ष विराम लागू करने में भूमिका निभा रहा है, उम्मीद है कि राजनयिकों को बहाल किया जाएगा और संबंध वापस एक स्वस्थ स्तर पर पहुंचेंगे।' 'वे शायद सबसे अच्छे दोस्त न बन पाएं लेकिन कम से कम हम यह चाहते हैं कि संबंध चल सकें जहां पर दोनों एक-दूसरे से बात करें।'
ये भी पढ़ें
केरल और उत्तराखंड की बारिश कह रही है संभल जाओ वरना...