नए वातावरण में वे पहले की अपेक्षा अधिक आरामतलब जिंदगी में दाखिल हो जाते हैं। यह भी उनके रिस्क फैक्टर में इजाफा करता है। यहाँ वे अधिक कैलोरी आहार के रूप में लेते हैं। तंबाकू और शराबखोरी के चक्कर में पड़ते हैं। अधिक नमक खाने लगते हैं। अब समय आ गया है जब भारतीय युवाओं के रिस्क फैक्टर का मूल्याकंन 30 वर्ष की आयु से ही शुरू कर देना चाहिए।और भी पढ़ें : |