इस बार 1992 जैसा कुछ नहीं होगा मेरा मन कहता है। कारण कि देश अब मानसिक रूप से पहले से अधिक मजबूत हुआ है। आज का युवा इन सब बातों को नहीं मानता। अगर फैसला मस्जिद के पक्ष में हुआ तो मंदिर वाले यानी हिन्दुओं के पास सुप्रीम कोर्ट का रास्ता खुला है और अगर ऐसा नहीं होता है दूसरे पक्ष को भी लड़ने-मरने और शहर की शांति नष्ट करने के बजाय समझौते की राह चुननी चाहिए।