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सोमवार,दिसंबर 22, 2008
वक्त मुट्ठी में समेटी हुई रेत की तरह होता है, जो कब फिसल जाता है, पता ही नहीं चलता। मिनट, घंटे, दिन और महीने देखते ही देखते गुजर जाते हैं। दिसंबर का पहला पखवाड़ा गुजरते ही अहसास होता है कि अरे...साल गुजर गया, पता ही नहीं चला...