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Written By भाषा

नरम-गरम रही साल 2008 की 'सेहत'

नरम-गरम रही साल 2008 की ''सेहत'' -
वैश्विक आर्थिक मंदी की मार से स्वास्थ्य क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। कई आवश्यक और जीवनदायी दवाओं के दामों में भारी वृद्धि हुई।

साल की शुरुआत पश्चिम बंगाल के मालदा जिले और उसके आसपास के इलाकों में बर्ड फ्लू फैलने के साथ हुई, जिस पर आज तक नियंत्रण नहीं हो पाया। इसके साथ ही पोलियो का दानव भी रह रहकर दाँत दिखाता रहा।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का गाँवों में कुछ प्रभाव दिखाई दिया और सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में धूम्रपान पर प्रतिबंध एक बड़ी उपलब्धि रही। ह्रदय रोग, मधुमेह और आघात के बचाव एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय योजना की शुरुआत हुई। कुल मिलाकर स्वास्थ्य की दृष्टि से वर्ष 2008 मिला-जुला रहा।

दो महीने में बर्ड फ्लू को नियंत्रित करने का दावा किया गया, लेकिन पिछले एक महीने से असम के कुछ जिले और मालदा जिला फिर बर्ड फ्लू की चपेट में हैं, लेकिन अभी इसके किसी मानव से मानव में फैलने की सूचना नहीं मिली है।

वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण आम लोगों विशेषकर गरीब वर्ग के लोगों को आवश्यक और जीवनदायी दवाओं के मूल्यों में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ा, जिसके चलते निजी अस्पतालों में इलाज और महँगा हो गया। कुछ ही दिन पहले सरकार ने कुछ दवाओं के मूल्यों में कमी करने संबंधी नोटिस जारी कर कुछ राहत दी।

इस साल सरकार द्वारा चलाया गया धूम्रपान निषेध अभियान कुछ सफल रहा। सरकार ने सार्वजनिक और निजी भवनों में धूम्रपान पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया, जिससे धूम्रपान की प्रवृत्ति में कुछ कमी अवश्य आई है। इधर, केंद्र सरकार इस बात का प्रयास कर रही है कि वर्ष 2010 में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों तक मेजबान दिल्ली को धूम्रपान मुक्त कर दिया जाए।

संविधान की धारा-377 हटाने संबंधी विवाद अभी जारी है। इसे लेकर गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच मतभेद जारी है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. अंबूमणि रामदास का कहना है कि एचआईवी-एड्स नियंत्रण के उपायों में यह धारा बाधक बन रही है।

इसी प्रकार के समलैंगिक कानून बनाने को लेकर केंद्र और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. रामदास के बीच विवाद चल रहा है और इसमें जल्द कोई फैसला होने की उम्मीद नहीं है। इसी प्रकार से सिगरेट के पैकेटों में अनिवार्य रूप से सचित्र चेतावनी प्रकाशित करने का मामला अभी लटका हुआ है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक के पद को लेकर चल रहा विवाद समाप्त अवश्य हो गया, लेकिन गत जुलाई के बाद से आज तक कोई भी स्थायी निदेशक इस पद पर नहीं आया है। आरक्षण संबंधी विवाद आज भी जारी है, जिसके कारण संस्थान की व्यवस्था और छवि दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही है।

देश में मधुमेह, ह्रदय रोग और पक्षाघात जैसे रोगों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय ने इनके नियंत्रण और बचाव के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की है, ताकि समय रहते इनको नियंत्रित किया जा सके।

सरकार ने पारंपरिक चिकित्सा में वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती दिलचस्पी के मद्देनजर पारंपरिक चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में गुणवत्ता नियंत्रण के लिए अनेक ठोस कदम उठाए हैं, जिनके परिणाम सामने आने लगे हैं।

आयूष की सचिव अनीता दास का कहना है कि चाहे आयुर्वेदिक उत्पाद हों या प्रशिक्षण एवं शिक्षास्तर हो, गुणवत्ता इन सभी के लिए नया मंत्र है। आयूष उत्पादों के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय ध्यान तथा इनकी माँग के उभरने से गुणवत्ता के सर्वोच्च मानक जरूरी हो गए हैं।

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के अच्छे परिणाम सामने आने लगे हैं और यह अंतरराष्ट्रीय जगत में भी धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रही है। सबसे अच्छी बात यह रही कि देश के जिन दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में आज तक कोई भी स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं थीं, वहाँ अब ये पहुँच रही है।

इस योजना के तहत इस समय देश में विभिन्न ग्रामीण इलाकों में 5 लाख 40 हजार मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य कार्यकर्ता आशा कार्यरत हैं, जो 11 हजार 135 अतिरिक्त प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में कार्य कर रहे हैं।

इसी योजना के तहत चल रही जननी सुरक्षा योजना में देश के विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की एक करोड़ से अधिक महिलाओं को लाया जा चुका है। 212 मोबाइल मेडिकल यूनिटें चल रही हैं।

इस योजना की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि जब से यह शुरू हुई है, तब से देश में मातृत्व मृत्यु दर और नवजात शिशु मृत्यु दर में लगातार कमी आ रही है। (भाषा)