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Written By भाषा

महिलाओं के लिए मिलाजुला रहा 2008

महिलाओं के लिए मिलाजुला रहा 2008 -
एक-एक दिन करके पूरा साल गुजरता चला गया और किसी को गम तो किसी को खुशी दे गया। महिलाओं के लिए यह साल मिलाजुला रहा। कहीं महिलाओं ने अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े तो कहीं वे अपराध और ज्यादती का शिकार हुईं।

वर्ष के शुरू में मालती राव को उनके उपन्यास डिस्आर्डरली वुमन के लिए 2007 का अंग्रेजी का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया तो साल का अंत आते-आते चंदा कोचर को आईसीआईसीआई बैंक का सीईओ बनाकर दुनिया की आधी आबादी की प्रतिभा को सलाम किया गया।

बीते बरस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को पहली महिला राष्ट्रपति मिली थीं। इस बरस दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्र अमेरिका को यह सौभाग्य मिलते-मिलते रह गया और लाख प्रयास के बावजूद हिलेरी क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति पद की होड़ में बनी नहीं रह सकीं। बहरहाल उन्हें विदेशमंत्री बनाए जाने की प्रबल संभावना है। नए राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी नई टीम में भारत की सोनल शाह को एडवाइजर के तौर पर चुना।

भारत की महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर एक बड़ा रुतबा उस समय हासिल हुआ जब केरल की कैथोलिक नन सिस्टर अल्फोंजा को पोप बेनेडिक्ट ने वेटिकन में एक समारोह में संत का दर्जा दिया। वे यह दर्जा हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

फिल्मों के क्षेत्र में यह बरस महिलाओं के लिए याद रखने वाला कहा जा सकता है। आमतौर पर फिल्म की सफलता का जिम्मा हीरो के सिर पर होता है, लेकिन इस वर्ष मधुर भंडारकर ने प्रियंका चोपड़ा और कंगना राणावत के साथ फैशन फिल्म बनाकर न सिर्फ इस भ्रम को तोड़ा बल्कि चकाचौंध से भरे फैशन जगत के कुछ स्याह पहलुओं को भी कैमरे में कैद किया। इस फिल्म को वर्ष की सफलतम फिल्मों में गिना गया।

राजनीति के मंच पर देखें तो शीला दीक्षित को छोड़कर महिलाओं को कुछ खास सफलता हासिल नहीं हुई। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में विजय दर्ज करके शीला दीक्षित सब पर भारी पड़ीं और तीसरी बार राजधानी की बागडोर संभाली जबकि राजस्थान में वसुंधरा राजे को सत्ता गँवानी पड़ी।

महिला विधायकों की बात करें तो तस्वीर और भी धुंधली है। राजनीतिक दलों में महिलाओं को उम्मीदवार बनाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई और ले-देकर दो-चार महिलाएँ ही विधानसभा की देहरी तक पहुँच पाईं। इसी उदासीनता के चलते महिला आरक्षण विधेयक भी मंजूरी की राह देखता रहा।

खेल के मैदान में भारतीय महिलाओं ने जब तब अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाया। टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा तो इस वर्ष बहुत कम नजर आईं लेकिन विश्व की शीर्षस्थ बैडमिंटन खिलाड़ियों में शामिल साइना नेहवाल को वर्ल्ड बैडमिंटन फेडरेशन ने मोस्ट प्रोमिसिंग प्लेयर ऑफ द ईयर के सम्मान के लिए चुना। साइना ने मलेशिया में वर्ल्ड सिरीज सुपर मास्टर्स प्रतियोगिता के सेमीफाइनल में पहुँचकर इतिहास रच डाला। इसी तरह एससी मैरीकाम ने मुक्केबाजी में देश का परचम बुलंद किया।

इस वर्ष महिलाओं के साथ सब अच्छा ही हुआ हो यह भी कहना सही नहीं होगा। मई का आरुषि हत्याकांड और सितंबर का सौम्या हत्याकांड पुलिस और जाँच एजेंसियों के लिए आज भी पहेली बना हुआ है। 14 बरस की आरुषि को जहाँ उसके घर में ही मौत के घाट उतार दिया गया वहीं एक न्यूज चैनल की युवा महिला प्रोड्यूसर सौम्या विश्वनाथन ड्यूटी खत्म करके घर जाते समय अपनी कार में ही गोली का शिकार बनीं। इन दोनों घटनाओं की टीस लंबे समय तक महसूस की जाती रहेगी।

कामकाजी महिलाओं को इस वर्ष सरकार ने एक बड़ा तोहफा देते हुए केन्द्र सरकार की महिला कर्मचारियों का प्रसव अवकाश 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन कर दिया और बच्चों के 18 वर्ष का होने तक महिलाओं को दो वर्ष की अतिरिक्त छुट्टियाँ देने का भी ऐलान किया।

महिलाओं के संदर्भ में उल्लेख की जाने वाली इन घटनाओं के अलावा उनकी सामाजिक स्थिति जस की तस बनी रही। कहीं महिलाओं को दहेज के लिए मार डाला गया तो कहीं वे बलात्कार के बाद मौत के घाट उतार दी गईं। कहीं लड़कियों पर तेजाब डाला गया तो कहीं गर्भ में ही उसकी जान लेकर मानवता को शर्मसार करने की घटनाएँ भी जब तब होती रहीं।

लेकिन इन तमाम दुष्वारियों के बावजूद हर मोर्चे पर बेहतर ढंग से अपनी मौजूदगी का एहसास करने की महिलाओं की ललक ने हर गुजरते बरस की तरह इस बरस भी उनके हौसलों को और बुलंद और उनकी उड़ान को और ऊँचा किया। (भाषा)