कुंजल क्रिया में पारंगत व्यक्ति के जीवन में कभी भी कोई रोग और शोक नहीं रह जाता। यह क्रिया वास्तव में बहुत ही शक्तिशाली है। पानी से पेट को साफ किए जाने की क्रिया को कुंजल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया से पेट व आहार नली साफ हो जाती है। मूलत: यह क्रिया वे लोग कर सकते हैं जो धौति क्रिया नहीं कर सकते हों। इस क्रिया को किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए।
विधि : शौचादि से फारिग होकर, हाथ-मुंह साफ करके पहले एक लीटर पानी गर्म करके रख लें। फिर जब पानी गुनगुना हो जाए तब कगासन की स्थिति में बैठकर जितना संभव हो वह गुनगुना पानी पी लें।
पानी पीने के बाद खड़े होकर थोड़ा सामने की ओर झुकें और तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुली को मिलाकर मुंह के अंदर जीभ के पिछले हिस्से पर घुमाएं। जब तक की उल्टी की इच्छा होकर पानी बाहर नहीं निकलने लगे तब तक घुमाएं। जब पानी निकलने लगे तो अंगुली को बाहर निकाल लें।
जब पानी निकलना बन्द होने लगे तो पुन: अंगुली को अन्दर डालकर उल्टी करें। इस क्रिया को तब तक करें जब तक पेट से सारा पानी बाहर न निकल जाए। फिर जब पानी खट्टा या कड़वा निकलने लगे तो फिर 2 गिलास पानी पीकर पहले की तरह ही अंगुली को जीभ पर घुमाकर उल्टी करें। जब एक लीटर का अभ्यास हो जाए तब पानी की मात्रा बढ़ाकर 2 लीटर पानी से इसका अभ्यास करें।
सावधानी : कुंजल करने के 2 घंटे बाद स्नान करें या कुंजल करने से पहले स्नान करें। कुंजल क्रिया को प्रात: काल शौचादि से निवृत्त होने के बाद करना चाहिए। कुंजल क्रिया के लिए पानी में नमक या सौंफ आदि कुछ भी न मिलाएं। हृदय एवं उच्च रक्तचाप के रोगी को यह क्रिया नहीं करना चाहिए। गले, फेंफड़े में किसी भी प्रकार का कोई गंभीर रोग हो तब भी यह क्रिया ना करें। किसी योग शिक्षक की सलाह अनुसार ही यह क्रिया करें और सप्ताह में दो बार यह क्रिया कर सकते हैं।
कुंजल क्रिया के बाद : क्रिया के बाद थोड़ा आराम करने के बाद ही भोजन करें। भोजन में ताजी हरी पत्तेदार सब्जियां, ताजे फल, दूध या दही और बटरमिल्क का सेवन करें। भोजन अच्छे से चबाकर खाएं। मसालेदार भोजन और जंक फूड से बचें। घर का बना हुआ ताजा खाना खाएं।
लाभ : इस क्रिया के अभ्यास से तीन अंगों को लाभ मिलता है- पहला जिगर (लिवर), दूसरा हृदय (हार्ट) और तीसरा पेट की आंते (इंटेस्टाइन)। इस क्रिया को करने से व्यक्ति शरीर और मन में बहुत ही अच्छा फिल करता है। व्यक्ति में हमेशा प्रसंन्न और स्फूति बनी रहती है।
इस क्रिया को करने से वात, पित्त व कफ से होने वाले सभी रोग दूर हो जाते हैं। बदहजमी, गैस विकार और कब्ज आदि पेट संबंधी रोग समाप्त होकर पेट साफ रहता है तथा पाचन शक्ति बढ़ती है।
यह सर्दी, जुकाम, नजला, खांसी, दमा, कफ आदि रोगों को दूर करता है। इस क्रिया से मुंह, जीभ और दांतों के रोग दूर होते हैं। कपोल दोष, रूधिर विकार, छाती के रोग, ग्रीवा, कण्ठमाला, रतोंधी, आदि रोगों में भी यह लाभदायी है।