वैसे तो अष्टांग योग में योग के सभी आयामों का समावेश हो जाता है किंतु जो कोई योग के अन्य मार्ग से स्वस्थ, साधना या मोक्ष लाभ लेना चाहे तो ले सकता है। योग के मुख्यत: छह प्रकार माने गए है। छह प्रकार के अलग-अलग उपप्रकार भी हैं।
यह प्रकार हैं:- (1) राजयोग, (2) हठयोग, (3) लययोग, (4) ज्ञानयोग, (5) कर्मयोग और (6) भक्तियोग। इसके अलावा बहिरंग योग, मंत्र योग, कुंडलिनी योग और स्वर योग आदि योग के अनेक आयामों की चर्चा की जाती है, लेकिन मुख्यत: तो उपरोक्त छह योग ही माने गए हैं।
(1) राजयोग :- यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह पतंजलि के राजयोग के आठ अंग हैं। इन्हें अष्टांग योग भी कहा जाता है।
(2) हठयोग :- षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, ध्यान और समाधि- ये हठयोग के सात अंग है, लेकिन हठयोगी का जोर आसन एवं कुंडलिनी जागृति के लिए आसन, बंध, मुद्रा और प्राणायम पर अधिक रहता है। यही क्रिया योग है।
(3) लययोग :- यम, नियम, स्थूल क्रिया, सूक्ष्म क्रिया, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। उक्त आठ लययोग के अंग है।
(4) ज्ञानयोग :- साक्षीभाव द्वारा विशुद्ध आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना ही ज्ञान योग है। यही ध्यानयोग है।
(5) कर्मयोग :- कर्म करना ही कर्म योग है। इसका उद्येश्य है कर्मों में कुशलता लाना। यही सहज योग है।
(6) भक्तियोग :- भक्त श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन रूप- इन नौ अंगों को नवधा भक्ति कहा जाता है। भक्ति अपनी रुचि, प्रकृति, साधना की योग्यतानुसार इनका चयन कर सकता है। भक्ति योगानुसार व्यक्ति सालोक्य, सामीप्य, सारूप तथा सायुज्य-मुक्ति को प्राप्त होता है, जिसे क्रमबद्ध मुक्ति कहा जाता है।
इस तरह हम ऊपर योग के आयामों को संक्षिप्त रूप से लिख आएँ हैं। इसके अलावा, ध्यानयोग, कुंडलिनी योग, साधना योग, क्रिया योग, सहज योग, मुद्रायोग, मंत्रयोग और तंत्रयोग आदि अनेक योगों की भी चर्चा की जाती है, किंतु उक्त छह योगांग के अंतर्गत सभी तरह के योग का समावेश हो जाता है। इति।