शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By Author अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

धारणा योग एक खतरनाक योग है, जरा...

dharana yoga | धारणा से जरा बच के
।।देशबंधश्चितस्य धारणा।।-पतंजलि
चित्त का देश विशेष में बँध जाना धारणा है।

यम, नियम, आसन, प्राणायम और प्रत्याहार को क्रमश: धारणा के समुद्र में छलाँग लगाने की तैयारी मात्र माना गया है। धारणा से ही कठिन परीक्षा और सावधानी की शुरुआत होती है। जिसे धारणा सिद्ध हो जाती है, कहते हैं कि ऐसा योगी अपनी सोच या संकल्प मात्र से सब कुछ बदल सकता है। ऐसे ही योगी के आशीर्वाद या शाप फलित होते हैं।

निगाहें स्थिर : इस अवस्था में मन पूरी तरह स्थिर तथा शांत रहता है। जैसे क‍ि बाण के कमान से छूटने के पूर्व लक्ष्य पर कुछ देर के लिए निगाहें स्थिर हो जाती हैं, जैसे क‍ि तूफान के आने से पूर्व कुछ देर हवाएँ स्थिर हो जाती हैं, जैसे कि दो भीमकाय बादलों के टकराने के पूर्व दोनों चुपचाप नजदीक आते रहते हैं। ठीक उसी तरह योगी के मन की अवस्था हो चलती है, जबकि उसके एक तरफ संसार होता है तो दूसरी तरफ रहस्य का सागर। यह मन से मुक्ति की शुरुआत भी है। धारणा सिद्व्यक्ति पहचाि उसकनिगाहें स्थिर रहतहै।

दृड़ निश्चियी : धारणा के संबंध में भगवान महावीर ने बहुत कुछ कहा है। श्वास-प्रश्वास के मंद व शांत होने पर, इंद्रियों के विषयों से हटने पर, मन अपने आप स्थिर होकर शरीर के अंतर्गत किसी स्थान विशेष में स्थिर हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव भी एक ही दिशा में होता है। ऐसे चित्त की शक्ति बढ़ जाती है, फिर वह जो भी सोचता है वह घटित होने लगता है। जो लोग दृड़ निश्चिय होते हैं, अनजाने में ही उनकी भी धारणा पुष्ट होने लगती है।

योगभ्रष्ट : हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म अनुसार धारणा सिद्ध व्यक्ति को योगी, अवधूत, सिद्ध, संबुद्ध कहते हैं। यहीं से धर्म मार्ग का कठिन रास्ता शुरू होता है, जबकि साधक को हिम्मत करके और आगे रहस्य के संसार में कदम रखना होता है। कहते हैं कि यहाँ तक पहुँचने के बाद पुन: संसार में पड़ जाने से दुर्गति हो जाती है। ऐसे व्यक्ति को योगभ्रष्ट कहा जाता है, इसलिए ऐसे साधक या योगी को समाज जंगल का रास्ता दिखा देता है।

वन-वे ट्रैफिक : इसे ऐसा समझ लीजिए क‍ि अब आप वन-वे ट्रैफिक में फँस गए हैं, अब पीछे लौटना याने जान को जोखिम में डालना ही होगा। कहते हैं कि छोटी-मोटी जगह से गिरने पर छोटी चोट ही लगती है, लेकिन पहाड़ पर से गिरोगे तो भाग्य या भगवान भरोसे ही समझो।

जरा बच के : इसलिए 'जरा बच के'। यह बात उनके लिए भी जो योग की साधना कर रहे हैं और यह बात उनके लिए भी जो जाने-अनजाने किसी 'धारणा सिद्ध योगी' का उपहास उड़ाते रहते हैं। कहीं उसकी टेढ़ी नजर आप पर न पड़ जाए।