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Happy Women's Day : किरण बेदी बता रही हैं महिला दिवस के असली मायने

Happy Women's Day : किरण बेदी बता रही हैं महिला दिवस के असली मायने - Happy Women's Day 2020
इस वर्ष आठ मार्च को होने वाले महिला दिवस के मौके पर क्या हमें लीक से हटकर कुछ नहीं करना चाहिए? आठ मार्च से पहले और बाद में हफ्ते भर तक विचार विमर्श और गोष्ठियां होंगी जिनमें महिलाओं से जुड़े मामलों जैसे महिलाओं की स्थिति, कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों की तुलना में लड़कों की बढ़ती संख्या, बोर्ड रूम में कम महिलाओं की मौजूदगी, संसद में अटका पड़ा महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण संबंधी विधेयक, गांवों में महिला सरपंचों का काम, महिलाओं की सुरक्षा और विशेष रूप से उनके खिलाफ होने वाले अपराध को विभिन्न सम्मेलनों, कार्यशालाओं, रैलियों, नाटकों, प्रतिज्ञाओं और ज्ञापनों के जरिए प्रचारित किया जाएगा।
 
लेकिन मैं सोचती हूं कि इन सब बातों के अलावा इस बात की जरूरत है कि महिलाएं इस वर्ष एकजुट प्रयास के जरिए अपनी सामूहिक ताकत को साकार करें और इसे उपयोगी कामों में लगाएं। इनमें से एक काम भ्रष्टाचार के खिलाफ अनथक लड़ाई भी हो सकती है। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार चाहे नौकरशाही से जुड़ा हो या राजनीतिक हो, छोटा हो या बड़ा, यह हमारे देश में सभी बुराइयों की जड़ है और महिलाएं किसी न किसी तरह से इसका प्रमुख शिकार होती हैं।
 
भ्रष्टाचार आम आदमी से उसके सीमित संसाधनों को छीन लेता है और सभी सेवाओं को ऊपर से लेकर नीचे तक दूषित बना देता है। इसके कारण सरकारी नौकर अपने बुनियादी कर्तव्य से दूर हो जाते हैं। वे लोगों की सेवा करने की बजाय उनके पैसों को हथियाने का काम करते हैं और एक वोट बैंक के रूप में महिलाओं के लिए अनिवार्य जरूरत है कि वे लोगों की ताकत बन जाएँ।
 
उन्हें सामाजिक बदलाव के लिए सभी मामलों के केन्द्र में आना होगा जिससे सभी को लाभ हो और इस देश में प्रशासन सुधरे। देश की सामाजिक सत्ता को मजबूत करने के लिए नैतिक मू्‌ल्यों वाली एक नई पीढ़ी को पैदा करना उनके हाथ में हैं। इसलिए इस वर्ष महिलाओं को निश्चय करना होगा कि वे अपनी जागरूकता को बढ़ाएंगीं। इस वर्ष प्रत्येक महिला प्रशासन और सत्ता से जुड़े मुद्दों को लेकर अपनी जागरूकता बढ़ाए। 
 
इसके लिए उन्हें नियमित तौर पर समाचारों और विचारों को सुनना होगा, समाचार-पत्र, पत्रिकाओं को पढ़ना होगा, टीवी पर बुद्धिमानी बढ़ाने वाले कार्यक्रम देखने होंगे और ऐसे भाषणों को सुनना होगा जो कि महिलाओं को राजनीतिक, आर्थिक और कानून से जुड़े राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति सजग और सचेत बनाएं। महिलाओं को राजनीतिक प्रवृत्तियों, कोर्ट के फैसलों, कानूनी प्रक्रियाओं और मुद्दों को लेकर चल रहे आंदोलनों को समझना होगा और राजनीतिक तथा सामाजिक चिंतक गुटों के विचारों पर ध्यान देना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को समझना होगा कि उनके लिए कौनसी नई योजनाएं हैं ताकि वे इनसे अपने लाभ हासिल कर सकें और अपने अधिकारों को ले सकें।
 
जो महिलाएं नौकरी नहीं करती हैं उन्हें विशेष प्रयास कर पेशेवर क्षमताओं को हासिल करना होगा ताकि वे स्वरोजगार प्राप्त कर सकें। उन्हें कारोबार करना सीखना होगा और इस बात का पता लगाना होगा कि यह काम उन्हें कहां मिल सकता है यह सब उन्हें खुद करना होगा और इसके लिए उन्हें किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई उनके अधिकारों को धोखाधड़ी से हथिया नहीं सके। स्वयंसेवी गुटों का गठन या महिला मंडलों के निर्माण और अपने संगठन शहरी क्षेत्रों में उन्हें सामाजिक तौर पर शक्तिशाली बनाएंगे और वे अपने इलाके में शहरी सत्ता से खुद को जोड़ सकेंगी।
 
उन्हें यह जानना होगा कि उनके क्षेत्र का निर्वाचित प्रतिनिधि कौन है और उनके क्षेत्र में किस चीज की जरूरत है। यह जरूरत एक स्कूल की हो सकती है, एक उपकरणयुक्त डिस्पेंसरी हो सकती है, सफाई स्टाफ हो सकती है। नियमित जल और बिजली आपूर्ति का मामला हो, सार्वजनिक यातायात हो, पुलिस चौकी की जरूरत हो, पेशेवर प्रशिक्षण संस्थान हो, परिवार और मध्यस्थता सलाहकार केंद्र हो, उन्हें इन सबके बारे में जानना होगा।
 
सभी महिलाओं को निश्चित तौर पर दो कानूनों को अवश्य जानना चाहिए। इनमें पहला है सूचना के अधिकार का कानून और दूसरा घरेलू हिंसा रोकथाम कानून। ये दोनों कानून सामाजिक तौर पर महिलाओं को अधिकार देते हैं। सभी महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे इन कानूनों के बारे में जानें। कहने का अर्थ है कानून की सीधी सरल जानकारी और इसके लिए किसी समीक्षा की जरूरत नहीं है। इससे उन्हें कानूनों के बुनियादी प्रावधानों को जानने में मदद मिलेगी और वे इस जानकारी के भरोसे आत्मनिर्भर बनेंगी।
 
महिलाओं के लिए यह भी जरूरी होगा कि वे दृढ़ निश्चय करें कि वे उनके बच्चों में नैतिक मूल्यों पर ध्यान देंगी और आगे बढ़ने के उदाहरण कायम करेंगी। सबसे युवा या युवा भारत पारिवारिक देखभाल की उपज है और यह बताती है कि उन्हें स्कूली स्तर पर कैसी शिक्षा मिलती है। परवरिश और स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता इस वर्ष तय करेगी कि उनमें सही गुणों का बीजारोपण किया जाता है या नहीं। इस स्तर पर ज्यादातर शिक्षक महिलाएं होती हैं। इस वर्ष महिलाएं अपनी क्षमताओं को साकार करने पर भी ध्यान दे सकती हैं और इसके लिए उन्हें उद्यमी बनना होगा। 
 
जो महिलाएं नौकरी नहीं करती हैं उन्हें विशेष प्रयास कर पेशेवर क्षमताओं को हासिल करना होगा ताकि वे स्वरोजगार प्राप्त कर सकें। उन्हें कारोबार करना सीखना होगा और इस बात का पता लगाना होगा कि यह काम उन्हें कहां मिल सकता है। अच्छा कारोबार करने के लिए उन्हें विपणन और बैंकिंग क्षमताओं को विकसित करना होगा। इस मामले में स्व-सहायता गुट गठित करना एक सही तरीका हो सकता है क्योंकि इस देश में सभी महिलाएं एक जैसी स्थिति में नहीं हैं। कुछ महिलाओं को अवसर मिलना सरल होता है, जबकि कुछ के लिए यह कठिन है। इसलिए महिलाओं के सामने चुनौती यह होगी कि उनके नजदीक जो अवसर हैं उनका वे कैसे उपयोग करती हैं।
 
जिन महिलाओं के सामने अवसर आसानी से उपलब्ध होते हैं वे इनका अधिकाधिक इस्तेमाल भी करती हैं और आगे बढ़कर आत्मनिर्भर बन जाती हैं। पर जिनके लिए अवसर मिलना सरल नहीं होता है उन्हें अवसरों को खोजना पड़ता है और अपनी पहुंच बनानी पड़ती है। महिलाएं अपनी मदद के लिए नेटवर्क बना सकती हैं, लेकिन ये सभी के लिए संभव नहीं है। पर यह सभी महिलाओं के मध्य दृढ़ निश्चय की आम भावना उनकी वर्तमान स्थिति को सुधारने में सहायक सिद्ध होगी और इसके बाद वे दूसरी महिलाओं की भी मदद कर सकती हैं। 
 
ये महिलाएं किसी भी तरीके से चाहें वे अपने करीबी वातावरण, परिवार, पड़ोस, गांव अथवा गुट से यह काम शुरू कर सकती हैं। महिलाओं को निजी तौर पर अपने जीवन को अपने हाथ में लेना चाहिए और वे सामूहिक रूप से भी ऐसा करें क्योंकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य और सम्पदा उनके दृढ़ निश्चय की ताकत और समाज में उनकी समान भूमिका पर निर्भर करेगी। 
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