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Written By WD

मनमोहन की सफलता में गुरशरण का हाथ

मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर

गुरशरण कौर
- विनोद अग्निहोत्री

ND
SUNDAY MAGAZINE
वीआईपी पति के पद की गरिमा के साथ पति की सेहत, परिवार की देखभाल, सार्वजनिक जीवन में खुद को सहज व मर्यादित दिखाने, जनसंपर्क एवं पति के हर तनाव को दूर करने में वीआईपी पत्नियों की भूमिका अहम होती है।

पुरानी कहावत है कि हर सफल पुरुष के पीछे कोई न कोई स्त्री जरूर होती है। पुरुष तो सफलता के शिखर पर पहुँचकर वीआईपी (वेरी इंपॉर्टेंट पर्सन) हो जाता है लेकिन उसकी सफलता की नींव रखने वाली महिला कितनी वीआईपी हो पाती है, इसे देखना-समझना बेहद दिलचस्प है।

देश की चुनींदा वीआईपी पत्नियों में सबसे पहला नाम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर का है। बेहद सहज और सरल स्वभाव वाली गुरशरण कौर का जन्म 1937 में पंजाब के जालंधर शहर में हुआ था। उनके पिता की आर्थिक स्थिति साधारण थी। उनके नौकरीपेशा पिता पेशावर के निकट नौशेरा में तैनात थे।

गुरशरण दस साल की थीं जब 1947 में उनके पिता का तबादला अमृतसर हो गया। यह सौभाग्य था कि भारत विभाजन के कुछ समय पहले ही वह अमृतसर आ गए और विभाजन के वक्त हुई भयानक सांप्रदायिक हिंसा से बच गए। गुरशरण की बचपन की पढ़ाई सिंह सभा कन्या विद्यालय में हुई। उन्होंने पटियाला के गुरु नानक कन्या पाठशाला से मैट्रिक और राजकीय महिला कॉलेज से स्नातक की शिक्षा ली।

शिक्षक बनने के इरादे से उन्होंने खालसा कॉलेज अमृतसर से बैचलर ऑफ टीचिंग (बीटी) की डिग्री ली। 1958 में उनकी शादी मनमोहन सिंह से हुई। शादी तय होने से पहले दोनों एक-दूसरे से मिले भी नहीं थे लेकिन सगाई के बाद उन्हें एक-दूसरे से बात करने की छूट जरूर दी गई।

पारिवारिक जीवन की शुरुआत के बाद तीन बेटियों की माँ गुरशरण ने अपना ज्यादा समय बेटियों के लालन-पालन में लगाया। पति मनमोहन सिंह उच्चशिक्षा के बाद ज्यादातर विदेश की नौकरी में रहे इसलिए बेटियों की पूरी जिम्मेदारी गुरशरण ने ही संभाली।

सरल स्वभाव वाली गुरशरण को संगीत का शौक है। बचपन से ही वह संगीत में समय देती रहीं। उन्हें गुरुबानी का लयबद्ध पाठ करना भाता है। धार्मिक स्वभाव की गरुशरण को गुरुद्वारे और शबद कीर्तन में जाना बहुत अच्छा लगता है। दिल्ली के सिख समाज में उनकी पहचान एक बेहतरीन कीर्तन गायिका के रूप में रही है। मौका लगने पर अब भी वह गुरुबानी और कीर्तन के लिए वक्त निकाल लेती हैं। परिवार के करीबी लोगों के मुताबिक मनमोहन सिंह और गुरशरण दोनों ही बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के है।

शायद मनमोहन सिंह को भी ज्यादा धार्मिक बनाने में गुरशरण की भूमिका है। जाने-माने लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह ने एक बार गुरशरण से पूछा कि क्या कभी उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाया है तो हैरान गुरशरण ने जवाब दिया 'ऐसा कोई कैसे कर सकता है? हमारे गुरुओं ने यही शिक्षा दी है कि ईश्वर पर विश्वास करो और उसकी भक्ति करो।'

पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक मनमोहन सिंह भले ही देश को संभाल रहे हों लेकिन उनके घर को हमेशा गुरशरण ने ही संभाला है। एक पारिवारिक मित्र का कहना है, डॉक्टर साहब (मनमोहन सिंह) को कभी यह पता नहीं रहा कि घर में सब्जी और चीनी भी है कि नहीं। रसोई के सामान से लेकर बच्चों की किताबे तक गुरशरण कौर ही खरीदती रही हैं। आज भी जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं तब भी घर चलाने की जिम्मेदारी गुरशरण की ही है।'

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि गुरशरण केवल घर ही चलाती है। वह बेहद सामाजिक और मिलनसार महिला हैं। उनके स्वभाव की सहजता यह है कि पिछले छह साल से रेसकोर्स में रहने के बावजूद वह अमृतसर, चंडीगढ़, मुंबई, अशोक विहार और जहाँ भी रहीं, वहाँ के अपने पड़ोसियों और पारिवारिक मित्रों को जरा भी नहीं भूली हैं। रिश्तेदारों को भी जोड़े रखना उन्हें आता है।

पंजाबी, हिंदी व अंग्रेजी तीनों भाषाएँ समान रूप से बोलने वाली गुरशरण जब अपने पति मनमोहन सिंह के साथ न्यूयार्क और अन्य देशों में रहीं तो वहाँ भी उन्होंने ज्यादा समय घर में बच्चों और रिश्तेदारों की देखभाल में बिताया। उनकी बनाई चपाती, दाल और सब्जी मनमोहन आज भी बड़े चाव से खाते हैं। प्रधानमंत्री निवास के कर्मचारी भी गुरशरण कौर के स्वभाव के मुरीद हैं। किसी से भी जोर से न बोलना, हमेशा प्यार से सबको संबोधित करना, बड़ों का सम्मान और छोटों को प्यार देना जैसे उनकी आदत है।

कुल मिलाकर मनमोहन सिंह को उन्होंने देश के लिए पूरी तरह घरेलू और पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त किया हुआ है। बेटियाँ भी जितना संवाद अपनी माँ से कर लेती है उतना पिता से नहीं कर पातीं क्योंकि प्रधानमंत्री बनने के बाद और उसके पहले भी मनमोहन सिंह का ज्यादा वक्त अपने विभागीय और सरकारी कामकाज में बीतता रहा है। परिवार के अलावा गुरशरण ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के साथ भी अच्छा संवाद कायम किया हुआ है।

सूत्रों के मुताबिक प्राय: सोनिया की उनसे बातचीत होती है और दोनों राजनीति से इतर पारिवारिक बातें भी साझा करती हैं। मनमोहन सिंह के सार्वजनिक जीवन को सँवारने में गुरशरण ने किस तरह भूमिका निभाई है इसका जिक्र करते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के एक सिख नेता जो परिवार के बेहद करीब हैं, बताते हैं कि जब दक्षिण दिल्ली से मनमोहन सिंह कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े थे तब उनकी जिम्मेदारी सिर्फ लोगों से मिलना और चुनाव सभाएँ संबोधित करना था।

बाकी चुनाव प्रबंधन का काम घर से खुद गुरशरण कौर ने ही संभाला था। कार्यकर्ताओं को चाय, पानी, खाना मिला कि नहीं, कब कौन कहाँ जाएगा, कब मनमोहन सिंह को कहाँ जाना है किससे मिलना है और चुनावी चंदे के हिसाब जैसी तमाम जरूरी जिम्मेदारियाँ गुरशरण ने ही निभाई थी। कहा जा सकता है कि मनमोहन की सफलता की कुंजी गुरशरण कौर के पास रही है।