जिस प्रकार मकान की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है उसी प्रकार किसी भी राष्ट्र की सुदृढ़ता वहां की नारियों पर निर्भर करती है। जिस प्रकार धुरी के बिना पहिया नहीं चल सकता उसी प्रकार नारी के बगैर कोई राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता।
प्राचीन काल में नारी की भूमिका प्राचीन काल में कोई भी कार्य या धार्मिक अनुष्ठान नारी के बिना पूरा नहीं होता था। उनके लिए कोई भी क्षेत्र वर्जित नहीं था। वे रणभूमि में अपने जौहर दिखाया करती थी। उनकी शिक्षा-दीक्षा की समुचित व्यवस्था थी। वर्तमान समय में जब संसार बारूद के ढेर पर बैठा प्रतीत होता है। इसमें नारी को परंपरा से प्राप्त गुणों के प्रचार की आवश्यकता है जिससे शांति स्थापित हो।
यदि आज का समाज कन्या भू्ण हत्या न करे, लड़की को जिंदा न जलाए, उसे घर की चारदीवारी की सामग्री न समझे तो वह दिन दूर नहीं जब फिर से राम राज्य आ जाएगा। नारी त्याग, शांति और ममता की देवी है।
कहा भी गया है - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र देवता: रमन्ते। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं। (फीचर डेस्क)