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Last Updated : रविवार, 2 मई 2021 (11:11 IST)

आखि‍र क्‍या है बंगाल के सबसे अहम ‘नंदीग्राम’ का चुनावी इतिहास?

आखि‍र क्‍या है बंगाल के सबसे अहम ‘नंदीग्राम’ का चुनावी इतिहास? - nandigram history election
पश्चिम बंगाल में सत्ता किसकी होगी यह 2 मई की शाम तक पता चल जाएगा। इस बार टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने अपनी मौजूदा सीट भवानीपुर को छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया था। नंदीग्राम इससे पहले भी राज्य की हाइप्रोफाइल सीटों में शुमार होती रही है, लेकिन इस बार ममता के वहां से लड़ने के ऐलान के बाद नंदीग्राम का सियासी पारा अपने चरम पर था।

इसका प्रमुख कारण यह भी है कि इस बार उनके सामने उन्‍हीं की पार्टी के शुभेंदू अधि‍कारी हैं जो टीएमसी छोडकर भाजपा में शामिल हुए थे।

उनके खास सुवेंदु अधिकारी 2016 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से जीते थे। अब सुवेंदु बीजेपी के साथ हैं और ममता के खिलाफ इसी सीट से चुनावी मैदान में हैं। नंदीग्राम विधानसभा सीट पूर्वी मेदिनीपुर जिले में पड़ती है, जहां अधिकारी परिवार का दबदबा माना जाता। ऐसे में ममता का अधिकारी परिवार के गढ़ में उतरने के फैसले ने सभी को हैरान किया था।

2016 के विधानसभा चुनाव में सुवेंदु ने अधिकारी ने इस सीट पर CPI के अब्दुल कबीर शेख को 81 हजार 230 वोटों से मात दी थी। उस वक्त सुवेंदु को यहां कुल 1 लाख 34 हजार 623 वोट मिले थे।

नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में 70 फीसदी आबादी हिंदुओं की है जबकि शेष आबादी मुस्लिमों की है। मुस्लिम वोटर यहां निर्णायक साबित होते आए हैं। नंदीग्राम सीट पर पिछले तीन चुनावों के नतीजे को देखें तो 2006 में पहले और दूसरे नंबर पर रहने वाले दोनों ही प्रत्याशी मुसलमान थे। 2011 में भी यहां मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत मिली थी। और सबसे बड़ी बात कि जीत-हार का अंतर 26 फीसदी था। वहीं, 2016 में यहां सुवेंदु जीते थे, लेकिन अंतर महज 7 प्रतिशत था।

एक रिपोर्ट के अनुसार, नंदीग्राम में 53 फीसदी महिष्य समुदाय की आबादी है। ये मुख्य तौर पर खेती-किसानी करने वाली जाति है। माना जाता है कि इनकी वजह से ही नंदीग्राम का आंदोलन सफल हुआ। बीजेपी की इसी समुदाय पर नजरें है। राजनीतिक पंडितों की माने तो नंदीग्राम सीट पर दलित मतदाताओं का वोट बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला है। साथ ही यहां अधिकारी बंधुओं के प्रभाव को कोई भी इनकार नहीं कर सकता।

साल 2016 में इस सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर सुवेंदु अधिकारी विजयी हुए। इस सीट पर उन्हें 66 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले। 2011 में नंदीग्राम सीट से फिरोजा बीबी को टीएमसी के टिकट पर जीत मिली थी। उन्हें 61.21 प्रतिशत वोट मिले थे। 2009 के उपचुनाव में इस सीट पर टीएमसी की फिरोजा बीबी विजयी हुईं।

2006 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाकपा के इलियास मोहम्मद विजयी हुए। उन्हें 69,376 वोट मिले थे। इलियास ने टीएमसी के एसके सुपियान को हराया था।

1996 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के देबिशंकर पांडा विजयी हुए। पांडा को 61,885 वोट मिले थे।

1967 से 1972 तक भाकपा के भूपल चंद्र पांडा इस सीट पर विजयी होते रहे।

इससे पहले नंदीग्राम दो सीटों नंदीग्राम उत्तर और नंदीग्राम दक्षिण में विभाजित था। 1951 से 1962 तक नंदीग्राम उत्तर सीट पर कांग्रेस के सुबोध चंद्र मैती विजयी होते रहे। नंदीग्राम दक्षिण सीट पर 1962 में कांग्रेस के प्रबीर चंद्र जना विजयी हुए। साल 1957 के चुनाव में इस सीट पर भाकपा के भूपल चंद्र पांडा विजयी हुए। 1951 के चुनाव में कांग्रेस के प्रबीर चंद्र जना ने जीत हासिल की।

नंदीग्राम अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र है और यहां उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला अल्पसंख्यक मतदाता ही करते हैं। इसलिए ममता बनर्जी ने इस सीट को चुना है। वैसे भी वाममोर्चा के शासन को उखाड़ फेंकने में नंदीग्राम आंदोलन की अहम भूमिका रही है।