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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 24 मई 2025 (17:44 IST)

वट सावित्री व्रत दो बार क्यों मनाया जाता है?

Vat Savitri Vrat 2025
Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं और वट वृक्ष/बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार वट सावित्री का व्रत साल में दो बार मनाया जाता है और इसके पीछे मुख्य कारण भारत में प्रचलित विभिन्न पंचांग/ कैलेंडर प्रणालियां हैं। भारत में मुख्य रूप से दो प्रमुख पंचांग प्रणालियां प्रचलित हैं, जिनके अनुसार....ALSO READ: वट सावित्री व्रत 2025 के नियम, जानिए क्या करें और क्या नहीं
 
1. पूर्णिमांत पंचांग: इस पंचांग में माह का अंत पूर्णिमा पर होता है। उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि में इसी पंचांग का अनुसरण किया जाता है। इस प्रणाली के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इसे 'वट सावित्री अमावस्या' कहते हैं।, जो कि इस बार 26 मई 2025, दिन सोमवार को मनाया जाएगा।
 
2. अमांत पंचांग: इस पंचांग में माह का अंत अमावस्या पर होता है। महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इस पंचांग का अनुसरण किया जाता है। इस प्रणाली के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे 'वट पूर्णिमा व्रत' कहते हैं। और यह वट पूर्णिमा व्रत पश्चिमी और दक्षिणी भारत में मंगलवार, 10 जून 2025 को मनाया जाएगा।
 
इसे हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि...
- उत्तरी भारत (पूर्णिमांत पंचांग) के हिसाब से वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है तथा पश्चिमी और दक्षिणी भारत (अमांत पंचांग) के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है। और इन दोनों ही व्रतों में पूजा की विधि, सत्यवान-सावित्री की कथा और महत्व समान होता है, बस तिथियों का अंतर होता है।ALSO READ: वट सावित्री पूजा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
 
वट सावित्री व्रत की तिथियां 2025:
- वट सावित्री अमावस्या (उत्तरी भारत): सोमवार, 26 मई 2025।
 
- वट पूर्णिमा व्रत (पश्चिमी और दक्षिणी भारत): मंगलवार, 10 जून 2025।
 
वट सावित्री व्रत का सबसे बड़ा उद्देश्य है अपने पतियों के सुख, शांति, समृद्धि और दीर्घायु की कामना करना। इस दिन विशेष रूप से वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि यह पेड़ शाश्वत जीवन का प्रतीक माना जाता है।

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