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Written By WD Feature Desk
Last Modified: बुधवार, 21 मई 2025 (17:36 IST)

वट सावित्री व्रत के दिन नहीं मिले बरगद का पेड़ तो ऐसे करें पूजा

Vat Savitri Vrat
Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत, सुहागिन महिलाओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह व्रत पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस दिन वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि मान्यता है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास होता है और देवी सावित्री ने इसी वृक्ष के नीचे अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस पाए थे। लेकिन, क्या हो अगर आपके आस-पास बरगद का पेड़ उपलब्ध न हो? शहरी इलाकों या अपार्टमेंट में रहने वाली कई महिलाओं के लिए यह एक आम समस्या है। घबराइए नहीं, शास्त्रों और परंपराओं में ऐसे समाधान बताए गए हैं जिनसे आप बरगद के पेड़ के बिना भी पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से वट सावित्री व्रत की पूजा कर सकती हैं।
 
क्यों है वट वृक्ष का महत्व?
वट वृक्ष को 'अक्षय वट' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कभी न नष्ट होने वाला। यह दीर्घायु, दृढ़ता और अमरता का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार:
• वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और ऊपरी भाग में शिव का वास माना जाता है।
• इसी वृक्ष के नीचे देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को पुनर्जीवन दिलवाया था, इसलिए इसे सुहाग और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
• वट वृक्ष से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा और औषधीय गुण भी इसे विशेष बनाते हैं।


बरगद का पेड़ न हो तो ऐसे करें पूजा
अगर आपके पास बरगद का पेड़ नहीं है, तो भी आप पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से वट सावित्री व्रत की पूजा कर सकती हैं। यहाँ कुछ विकल्प दिए गए हैं:
1. बरगद की टहनी या पत्तियां:
• अगर पूरा पेड़ न मिले, तो एक दिन पहले किसी भी ऐसे स्थान से जहाँ बरगद का पेड़ हो, एक छोटी टहनी या कुछ पत्तियां ले आएं।
• इन्हें एक गमले में या घर के पूजा स्थान पर स्थापित करें।
• पूजा के दौरान इसी टहनी या पत्तियों को वट वृक्ष मानकर उसकी परिक्रमा करें और पूजा करें। ध्यान रखें कि टहनी जीवित हो और उसमें पत्तियां हों।

2. सुपारी या कलश में करें आह्वान:
• यह एक सरल और प्रभावी तरीका है। एक सुपारी या एक कलश लें।
• पूजा से पहले भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवी सावित्री का ध्यान करते हुए, सुपारी या कलश में वट वृक्ष का आह्वान करें।
• मंत्रों का जाप करते हुए संकल्प लें कि आप इस सुपारी/कलश को ही वट वृक्ष मानकर पूजा कर रही हैं।
• फिर, इसी सुपारी या कलश की सात या 108 बार परिक्रमा करें और सभी पूजन सामग्री अर्पित करें।

3. वट वृक्ष का चित्र या मूर्ति:
• यदि उपर्युक्त विकल्प संभव न हो, तो वट वृक्ष का एक चित्र या छोटी मूर्ति लें।
• इसे अपने पूजा स्थान पर स्थापित करें।
• चित्र या मूर्ति को ही वट वृक्ष मानकर श्रद्धापूर्वक पूजा करें। परिक्रमा के लिए आप इसके चारों ओर घूम सकती हैं या उसी स्थान पर खड़े होकर परिक्रमा का भाव कर सकती हैं।

4. आटे का वट वृक्ष:
• कुछ क्षेत्रों में आटे से वट वृक्ष की आकृति बनाकर भी पूजा करने की परंपरा है।
• आप शुद्ध आटे से एक छोटा बरगद का पेड़ बना सकती हैं।
• इसे पूजा स्थान पर स्थापित कर, पूरी विधि-विधान से पूजा करें।

पूजा की सामान्य विधि (बरगद के बिना भी):
पूजा की सामान्य विधि वही रहेगी, बस वट वृक्ष के स्थान पर आप अपनी चुनी हुई वैकल्पिक वस्तु का उपयोग करेंगी:
• सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
• पूरे सोलह श्रृंगार करें।
• पूजा स्थल को साफ करें और चौकी स्थापित करें।
• गंगाजल से छिड़काव कर शुद्ध करें।
• पूजा सामग्री (जैसे फल, फूल, मिठाई, पूरियां, भीगे चने, रोली, अक्षत, धूप, दीप, कच्चा सूत या मोली) तैयार रखें।
• अपनी चुनी हुई वैकल्पिक वस्तु (टहनी, सुपारी, चित्र आदि) को स्थापित करें।
• सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें।
• फिर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवी सावित्री का आह्वान करें।
• वट वृक्ष को जल चढ़ाएं और हल्दी-कुमकुम लगाएं।
• कच्चे सूत या मोली को 7 या 108 बार अपनी वैकल्पिक वस्तु के चारों ओर लपेटें।
• वट सावित्री व्रत की कथा सुनें या पढ़ें।
• आरती करें और सभी देवी-देवताओं से पति की लंबी आयु और परिवार के सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
• ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें।
याद रखें, पूजा का महत्व आपके मन की श्रद्धा और भावना में निहित है। यदि आप पूरी निष्ठा से पूजा करती हैं, तो बरगद का पेड़ न होने पर भी आपका व्रत सफल माना जाएगा और आपको उसका पूरा फल प्राप्त होगा।
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