समुद्र मंथन के समय देव- दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई। जिनमें आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ। प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं। देव शंख, चक्र शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, पंचमुखी शंख, वालमपुरी शंख, बुद्ध शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख, शेर शंख, कुबार गदा शंख, सुदर्शन शंख आदि।
इनके 3 प्रमुख प्रकार हैं- वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख या मध्यवर्ती शंख। इसी के अंतर्गत, गणेश शंख, पाञ्चजन्य, देवदत्त, महालक्ष्मी शंख, पौण्ड्र, कौरी शंख, हीरा शंख, मोती शंख, अनंतविजय शंख, मणि पुष्पक और सुघोषमणि शंख, वीणा शंख, अन्नपूर्णा शंख, ऐरावत शंख, विष्णु शंख, गरूड़ शंख और कामधेनु शंख।
कामधेनु शंख : यह शंख वैसे बहुत दुर्लभ है। ये शंख भी प्रमुख रूप से दो प्रकार के हैं। एक गोमुखी शंख और दूसरा कामधेनु शंख। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी कामधेनु शंख के नाम से जाना जाता है।
5 फायदे :
1. कहते हैं कि कामधेनु शंख की पूजा-अर्चना करने से तर्कशक्ति प्रबल होती है। इस शंख के घर में रहसे से चित्त में प्रसन्नता है।
2. महर्षि पुलस्त्य और ऋषि वशिष्ठ ने लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस शंख का उपयोग किया था।
3. पौराणिक शास्त्रों में इसके प्रयोग द्वारा धन और समृद्धि स्थायी रूप से बढ़ाई जा सकती है।
4. इसके घर में रहने से सभी तरह की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। कलियुग में मानव की मनोकामना पूर्ति का एकमात्र साधन है। इस शंख को कल्पना पूरी करने वाला भी कहा गया है।
5. कामधेनु शंख मंत्र इस प्रकार हैः ऊँ नमः गोमुखी कामधेनु शंखाय मम् सर्व कार्य सिद्धि कुरु-कुरु नमः।