Ideal use of Brahmasthan: संसार में मानव की नैसर्गिक आवश्यकताओं की यदि बात करें तो उनमें रोटी, कपड़ा और मकान अग्रणी होते हैं। इन सबमें गृह-निर्माण एक अति महत्वपूर्ण आवश्यकता है। जिसकी पूर्ति के लिए मनुष्य सदैव चिंतित रहता है। जब भी गृह-निर्माण की बात आती है तो यह अधिकांश व्यक्तियों के जीवन में एक बार किया जाने वाला बड़ा निवेश होता है। जिसके करते समय अत्यधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है।
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गृह निर्माण में वास्तु का बहुत महत्व होता है। हमारे सनातन धर्म में गृह-निर्माण के लिए सभी आवश्यक दिशा-निर्देश 'वास्तु शास्त्र' में निहित हैं, क्योंकि वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुरूप निर्मित भवन निवास के लिए सर्वोत्तम होता है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत अनुसार निर्मित आवास में रहने वाले व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, ऐसे भवन में निवासरत व्यक्ति संपन्नता और समृद्धि प्राप्त करता है। उसके यहां धन, धान्य, श्री, पुत्र-पुत्री एवं आरोग्य का वास होता है।
वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण को लेकर अनेकानेक नियम व सिद्धांत बताए गए हैं, जिनका पालन यथोचित रूप से भवन निर्माण करते समय अवश्य करना चाहिए किंतु 'वास्तु शास्त्र' में कुछ नियम व सिद्धांत ऐसे भी हैं जिनका उल्लंघन करना गृहस्वामी के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
आज हम 'वेबदुनिया' के पाठकों को ऐसे ही एक अति-महत्वपूर्ण तथ्य से अवगत कराने जा रहे हैं जिसका नाम है- 'ब्रह्म स्थान'। गृह स्वामी को चाहिए कि गृह निर्माण करते समय 'ब्रह्म स्थान' से जुड़े सभी नियमों व सिद्धांतों का अक्षरश: पालन करें। गृह निर्माण में 'ब्रह्म स्थान' का अत्यधिक महत्व होता है।
आइए जानते हैं कि वास्तु शास्त्र में 'ब्रह्म स्थान' से संबंधित क्या नियम हैंल जिनका पालन करना गृहस्वामी के लिए अतिआवश्यक है-
1. वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन के 'ब्रह्म स्थान' पर किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। 'ब्रह्म स्थान' पर कोई छत या दीवार का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए।
2. वास्तु शास्त्र के अनुसार 'ब्रह्म स्थान' को रिक्त छोड़ना आवश्यक है। वास्तु शास्त्र में ब्रह्म स्थल को मुक्ताकाश (जहां से आकाश दिखाई दे) रखने का विधान है।
3. वास्तु शास्त्र के अनुसार 'ब्रह्म स्थान' के ऊपर शयन कक्ष, रसोई घर या शौचालय का निर्माण कतई नहीं किया जाना चाहिए।
4. वास्तु शास्त्र के अनुसार 'ब्रह्म स्थान' के नीचे तलघर का निर्माण भी नहीं किया जाना चाहिए।
5. वास्तु शास्त्र के अनुसार 'ब्रह्म स्थान' पर पानी की टंकी, भूमिगत पानी का स्थान, सेप्टिक टैंक, कुंआ इत्यादि का निर्माण करना भी वर्जित है।
कहां होता है 'ब्रह्म स्थान' : वास्तु शास्त्र के अनुसार भूखंड को लंबाई और चौड़ाई में बराबर तीन भागों में विभक्त करने के उपरांत जो भाग मध्य में आता है उसे 'ब्रह्म स्थान' कहा जाता है। सटीक 'ब्रह्म स्थान' की गणना के लिए आवश्यक है कि अपने भूखंड को तीन बराबर भागों में विभक्त करें।
उदाहरण के लिए आपका भूखंड यदि 30 फीट चौड़ा और 60 फीट लंबा है, तो आपके भूखंड के मध्य का 10*20 का स्थान 'ब्रह्म स्थान' कहलाएगा। यह स्थल आपके भवन का सर्वाधिक पवित्र स्थल होता है इस पर किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं किया जाना चाहिए, किंतु वर्तमान परिदृश्य में जहां भूमि के दाम आसमान छू रहे हैं और मेट्रो-नगरों में फ्लैट संस्कृति अपने चरम पर है, इतना बड़ा हिस्सा रिक्त रखना संभव नहीं है, ऐसी स्थिति में निम्न उपाय करना अतिआवश्यक है जिससे गृह स्वामी पर 'ब्रह्म स्थान' के नियम का उल्लघंन करने संबंधी दोष का कम से कम प्रभाव पड़े।
करें यह आवश्यक उपाय-
जहां तक संभव हो 'ब्रह्म स्थान पर किसी दीवार का निर्माण ना करें। गृह निर्माण पूर्ण होने पर अपने भवन की पूर्ण वैदिक विधि-विधान से वास्तु शांति पूजन अवश्य कराएं। पूर्ण विधि-विधान से वैदिक वास्तु शांति पूजन कर्म करने से गृह-निर्माण में हुए अनेकानेक दोषों का शमन हो जाता है एवं वृहद् दोषों का प्रभाव अत्यंत अल्प हो जाता है। अत: भवन निर्माण के उपरांत निवास से पूर्व पूर्ण विधि-विधान से वैदिक वास्तु शांति पूजन कर्म करवाना आवश्यक है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र