प्यार, इश्क, मोहब्बत : जानिए विद्वानों का मत
प्रस्तुति - स्मृति
प्यार एक विलक्षण अनुभूति है। सारे संसार में इसकी खूबसूरती और मधुरता की मिसालें दी जाती हैं। इस सुकोमल भाव पर सदियों से बहुत कुछ लिखा, पढ़ा और सुना जाता रहा है। बावजूद इसके इसे समझने में भूल होती रही है। मनोवैज्ञानिकों ने इस मीठे अहसास की भी गंभीर विवेचना कर डाली। फिर भी मानव मन ने इस शब्द की आड़ में छला जाना जारी रखा है। अलग-अलग विद्वानों, लेखकों और विचारकों ने प्यार को अपने-अपने नजरिए से देखा और बयां किया है। पेश है आपकी नजर कुछ ऐसे ही गहन-गंभीर विचार : महान विचारक लेमेन्नाइस के अनुसार - 'जो सचमुच प्रेम करता है उस मनुष्य का ह्रदय धरती पर साक्षात स्वर्ग है। ईश्वर उस मनुष्य में बसता है क्योंकि ईश्वर प्रेम है।' दार्शनिक लूथर के विचार हैं कि 'प्रेम ईश्वर की प्रतिमा है और निष्प्राण प्रतिमा नहीं, बल्कि दैवीय प्रकृति का जीवंत सार, जिससे कल्याण के गुण छलकते रहते हैं।' मनोवैज्ञानिक वेंकर्ट का मत है - 'प्यार में व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की कामना करता है, जो एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उसकी विशेषता को कबूल करे, स्वीकारे और समझे। उसकी यह इच्छा ही अक्सर पहले प्यार का कारण बनती है। जब ऐसा शख्स मिलता है तब उसका मन ऐसी भावनात्मक संपदा से समृद्ध हो जाता है जिसका उसे पहले कभी अहसास भी नहीं हुआ था।' मनोवैज्ञानिक युंग कहते हैं - प्रेम करने या किसी के प्रेम पात्र बनने से यदि किसी को अपनी कोई कमी से छुटकारा मिलता है तो संभवत: यह अच्छी बात होगी। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ऐसा होगा ही। या इस तरह से उसे मुक्ति मिल ही जाएगी। मनोवैज्ञानिक हॉर्नी स्वस्थ प्रेम को संयुक्त रूप से जिम्मेदारियां वहन करने और साथ-साथ कार्य करने का अवसर बताते हैं। उनके अनुसार प्रेम में निष्कपटता और दिल की गहराई बहुत जरूरी है।मैस्लो ने स्वस्थ प्रेम के जिन लक्षणों की चर्चा की है वे गंभीर और प्रभावी है। वे कहते हैं सच्चा प्यार करने वालों में ईमानदारी से पेश आने की प्रवृत्ति होती है। वे अपने को खुलकर प्रकट कर सकते हैं। वे बचाव, बहाना, छुपाना या ध्यानाकर्षण जैसे शब्दों से दूर रहते हैं। मैस्लो ने कहा है स्वस्थ प्रेम करने वाले एक-दूसरे की निजता स्वीकार करते हैं। आर्थिक या शैक्षणिक कमियों, शारीरिक या बाह्य कमियों की उन्हें चिन्ता नहीं होती जितनी व्यावहारिक गुणों की। सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम ने लिखा है - जिसके साथ होकर भी तुम अकेले रह सको, वही साथ करने योग्य है। जिसके साथ होकर भी तुम्हारा अकेलापन दूषित ना हो। तुम्हारी तन्हाई, तुम्हारा एकान्त शुद्ध रहे। जो अकारण तुम्हारी तन्हाई में प्रवेश ना करे। जो तुम्हारी सीमाओं का आदर करे। जो तुम्हारे एकान्त पर आक्रामक ना हो। तुम बुलाओ तो पास आए। इतना ही पास आए जितना तुम बुलाओ। और जब तुम अपने भीतर उतर जाओ तो तुम्हें अकेला छोड़ दे।
खलील जिब्रान ने प्रेम पर इतना खूबसूरत लिखा है कि जितना पढ़ो उतना कम ही लगता है। खलील हर बार एक नई व्याख्या और नए दर्शन के साथ प्रेम पर अभिव्यक्त होते हैं जैसे - 'प्रेम केवल खुद को ही देता है और खुद से ही पाता है। प्रेम किसी पर अधिकार नहीं जमाता, न ही किसी के अधिकार को स्वीकार करता है। प्रेम के लिए तो प्रेम का होना ही बहुत है।