इतिहास में स्वर्ण अंकित प्रेमकथा
पृथ्वीराज संयोगिता
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेमकथा राजस्थान के इतिहास में स्वर्ण से अंकित है। वीर राजपूत जवान पृथ्वीराज चौहान को उनके नाना सा. ने गोद लिया था। वर्षों दिल्ली का शासन सुचारु रूप से चलाने वाले पृथ्वीराज को कन्नौज के महाराज जयचंद की पुत्री संयोगिता भा गई। पहली ही नजर में संयोगिता ने भी अपना सर्वस्व पृथ्वीराज को दे दिया, परन्तु दोनों का मिलन इतना सहज न था। महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में कट्टर दुश्मनी थी। राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया गया, जिसमें पृथ्वीराज चौहान को नहीं बुलाया गया तथा उनका अपमान करने हेतु दरबान के स्थान पर उनकी प्रतिमा लगाई गई। ठीक वक्त पर पहुँचकर संयोगिता की सहमति से महाराज पृथ्वीराज उसका अपहरण करते हैं और मीलों का सफर एक ही घोड़े पर तय कर दोनों अपनी राजधानी पहुँचकर विवाह करते हैं। जयचंद के सिपाही बाल भी बाँका नहीं कर पाते।इस अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद ने मुहम्मद गोरी से हाथ मिलाया तथा उसे पृथ्वीराज पर आक्रमण का न्योता दिया। पृथ्वीराज ने १७ बार मुहम्मद गोरी को परास्त किया तथा दरियादिल होकर छोड़ दिया।१८वीं बार धोखे से मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को कैद कर लिया तथा अपने मुल्क ले गया। वहाँ पृथ्वीराज के साथ अत्यन्त ही बुरा सलूक किया गया। उसकी आँखें गरम सलाखों से जला दी गईं। अंत में पृथ्वीराज के अभिन्न सखा चंद बरदाई ने योजना बनाई। पृथ्वीराज शब्द भेदी बाण छोड़ने में माहिर सूरमा था। चंद बरदाई ने गोरी तक इसकी इस कला के प्रदर्शन की बात पहुँचाई। गोरी ने मंजूरी दे दी। प्रदर्शन के दौरान गोरी के शाबास लफ्ज के उद्घोष के साथ ही भरी महफिल में अंधे पृथ्वीराज ने गोरी को शब्दभेदी बाण से मार गिराया तथा इसके पश्चात दुश्मन के हाथ दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक-दूसरे का वध कर दिया।अमर प्रेमिका संयोगिता को जब इसकी जानकारी मिली तो वह भी वीरांगना की भाँति सती हो गई। दोनों की दास्तान प्रेमग्रंथ में अमिट अक्षरों से लिखी गई।