आजमगढ़ के चुनावों में जातिवाद का बोलबाला
आतंकी गतिविधियों में युवाओं की कथित संलिप्तता के लिए चर्चाओं में रहे आजमगढ़ जिले में 11 फरवरी को होने जा रहे चुनाव में धर्म की बजाय जाति एक बड़ा कारक है।लेकिन मुस्लिम समुदाय के धार्मिक नेताओं का कहना है कि आरोपियों पर तेज गति से मुकदमा चलाने की जरूरत सहित अपनी मांगों को उठाने के लिए चुनाव काफी मायने रखता है, ताकि समय पर न्याय मिल सके।विभिन्न मामलों में 12 से अधिक आरोपी अकेले संजरपुर गांव से ही ताल्लुक रखते हैं। इसी गांव के निवासी सामाजिक कार्यकर्ता मसीरुद्दीन संजारी का कहना है, ‘2010 में (कांग्रेस महासचिव) दिग्विजय सिंह ने सभी आतंकी मामलों में एनआईए जांच तथा आरोपियों पर तेज गति से मुकदमा चलाए जाने का आश्वासन दिया था।उन्होंने कहा था कि सभी मामले विभिन्न राज्यों की बजाय एक ही जगह पर चलाए जाएंगे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। संजारी ने कहा कि कम से कम मुम्बई हमलों में जीवित पकड़े गए एकमात्र आतंकवादी ‘आमिर अजमल कसाब की तर्ज पर’ त्वरित मुकदमा तो सुनिश्चित किया जा सकता था।जिले के मुसलमानों की मांगों को उठाने के लिए उलेमा काउंसिल समूचे उत्तर प्रदेश में 170 उम्मीदवार उतारकर चुनाव मैदान में कूद गई है।काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना आमिर रसदी ने भाजपा पर राजग शासनकाल के दौरान आतंकवाद को लेकर नरम रुख अपनाने का आरोप लगाया और कांग्रेस की यह कहकर निन्दा की कि वह राजनीतिक स्वार्थ के लिए ‘घड़ियाली आंसू’ बहा रही है। (भाषा)