रविवार, 1 दिसंबर 2024
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Written By अवनीश कुमार

कानपुर से था गहरा नाता, साहबजादे के नाम से जाने जाते थे अटल

कानपुर से था गहरा नाता, साहबजादे के नाम से जाने जाते थे अटल - Atal bihari vajpai Kanpur
कानपुर। भारतीय राजनीति के पुरोधा रहे अटल बिहारी वाजपेयीजी का कानपुर से बहुत गहरा नाता था। उन्होंने राजनीति की एबीसीडी कानपुर से सीखी और फिर मुड़कर नहीं देखा। इसी के चलते वह रैलियों में तो अक्सर कानपुर की चर्चा करते ही थे साथ ही यहां से जाने वाले नेताओं से तन्मयता से कानपुर के विषय पर जानकारी लेते रहते थे।
 
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। अटलजी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) से बीए किया था। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे।
 
बीए करने के बाद अटल जी कानपुर आ गए और दयानंद एंग्लो वैदिक कालेज (डीएवी) से राजनीति शास्त्र में एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी के साथ कानपुर में ही इसी कॉलेज से एलएलबी में दाखिला लिया। हालांकि वह यहां से एलएलबी नहीं कर सके, लेकिन उनकी अंतिम शिक्षा यहीं से हुई।
 
अटल जी के विषय में करीब से जानने वाले प्रो. सुमन निगम बताते हैं कि जब वह छात्र जीवन में थे तभी से उनमें नेतृत्व करने की क्षमता बेमिसाल थी। अटल जी एक मजबूत और दृढ़ इच्छा शक्ति वाले इंसान थे, शांत और सौम्य स्वभाव के कारण उनके साथी और विरोधी दोनों उनके प्रशंसक थे।
 
एक बार का वाक्या व्यक्त करते हुए बताया कि कक्षा में गंदगी थी तो अटल जी के कहने पर सभी छात्र कक्षा में बैठने से मना कर दिया। कहा, अटल जी कानपुर से पढ़कर देश की सर्वोच्च सत्ता पर पहुंचे, लेकिन आज उनके निधन पर कानपुर सहित पूरा देश स्तब्ध है।
 
डीएवी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमित श्रीवास्तव ने बताया कि जिस समय अटल जी यहां पर शिक्षा ग्रहण की है। उस समय यह कॉलेज आगरा विश्विद्यालय से संबद्ध था। बताया कि वाजपेयी जी ने यहां लगभग चार साल तक शिक्षा ग्रहण की। सबसे पहले उन्होंने यहां से 1945-46, 1946-47 के सत्रों में राजनीति शास्त्र से परास्नातक किया। इसके बाद 1948 में अपने पिता कृष्ण बिहारी वाजपेई के साथ एलएलबी में प्रवेश लिया लेकिन 1949 में संघ के काम के चलते उन्हें लखनऊ जाना पड़ा और एलएलबी की पढ़ाई बीच में ही छूट गई। जबकि उनके पिता ने एलएलबी की पूरी पढ़ाई की।
 
कॉलेज में आज भी राजनीति शास्त्र विभाग में अटल की फोटो श्रेष्ठ छात्रों के रूप में लगी हुई है। अटलजी ने यहीं से राजनीति की एबीसीडी सीखी फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही नहीं सक्रिय राजनीति में आने के बाद जब भी उनका कानपुर दौरा लगता था जो अपनी पुरानी यादों को मंच से कहने में कोई गुरेज नहीं करते थे।
 
बीजेपी के प्रदेश महामंत्री सलिल विश्नोई ने बताया कि जब कभी हमारी मुलाकात पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से होती थी, वह कानपुर के विषय में जरूर चर्चा करते थे। खासकर डीएवी कॉलेज की स्थिति, छात्र राजनीति से जुड़े अपने करीबियों का हालचाल लेना नहीं भूलते थे।
 
साहबजादे के नाम से जाने जाते थे अटल : कॉलेज के प्राचार्य ने बताया कि अटल जी अपने पिता के साथ तो एलएलबी करते ही थे साथ ही एक कमरे में भी रहते थे। बताया कि कालेज में इस बात की सदैव चर्चा होती रहती है कि किस तरह प्रोफेसर उनको साहबजादे कहकर पुकारते थे। यही नहीं पिता-पुत्र की इस जोड़ी को साथी छात्र देखने आते थे। जो प्रोफेसर इन दोनों को पढ़ाते थे वह काफी मजाक भी किया करते थे। बताते हैं कि जब पिताजी देर से पहुंचते थे प्रोफेसर ठहाके लगाकर अटल जी से पूछते थे कि, आपके पिताजी कहां गायब हैं। ऐसा ही नजारा तब भी देखने को  मिलता था जब अटल जी देर से कक्षा में पहुंचते थे। तब प्रोफेसर पिता से पूछते कि आपके साहबजादे कहां नदारद हैं।
 
पिता के साथ पढ़ाते थे ट्यूशन : प्रो. सुमन निगम ने बताया कि अटल जी खुद पर ज्यादा विश्वास करते थे। इसीलिए कालेज से मिलने वाली 75 रुपए की स्कॉलरशिप को एक साल बाद यह कहकर मना कर दिया कि गरीब छात्रों को दिया जाय। क्योंकि इस दौरान हटिया स्थित सीएबी स्कूल में अपने पिता के साथ ट्यूशन पढ़ाने लगे थे। बताया कि पिता अंग्रेजी पढ़ाते थे और अटल जी भूगोल।
 
कॉलेज की यादों को पत्र के जरिये किया जिक्र : कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर सुमन निगम ने बताया कि जब वाजपेयी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो कॉलेज के नाम एक पत्र लिखा था जो साहित्य सेवी बद्रीनारायण तिवारी ने संस्थान को सौंप दिया। उस पत्र में उन्होंने अपनी यादगार कुछ रोचक और गौरवान्वित कर देने वाली घटनाओं का जिक्र किया है। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण कॉलेज में मनाया गया आजादी का जश्न था।
 
अटल जी ने लिखा कि 15 अगस्त 1947 को छात्रावास में जश्न मनाया जा रहा था। जिसमें अधूरी आजादी का दर्द उकेरते हुए मैंने एक कविता सुनाई। उस कविता को सुनकर समारोह की अध्यक्षता कर रहे आगरा विश्वविद्यालय के तत्कालीन उप कुलपति लाला दीवानचंद ने 10 रुपए इनाम दिया था। जिसको लेकर कॉलेज ही नहीं पूरे कानपुर में उस दौरान चर्चा का विषय बना रहा।
 
छह दिन पहले करीबी की हुई थी मौत : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीबी मित्रों में से एक कानपुर के पन्नालाल तांबे का छह दिन पूर्व शुक्रवार देर शाम निधन हो गया था जो 85 वर्ष के थे। पन्नालाल के बेटे कृष्णालाल तांबे ने बताया कि पिता ने डीएवी कॉलेज से बीएड किया। यहीं पर उनकी मुलाकात अटल बिहारी वाजपेयी जी से हुई और दोनों स्वभाव से मृदुभाषी होने के चलते उनकी अटल जी के साथ पटरी खाने लगी। दोनों की राजनीतिक करियर की शुरुआत यहीं से हुई थी।
 
बताया जब इंदिरा गांधी ने देश में आपात काल लागू किया उस समय पिता पन्नालाल तांबे और अटल जी साथ में ही जेल गए थे। जब दोनों जेल से छूटे तो जनसंघ से जुड़ गए। उस समय भाजपा का चुनावचिन्ह दीपक हुआ करता था।
 
बताते चलें जेल से छूटने के बाद व अटल जी के साथ पन्नालाल का नाम जुड़ने से उनकी दलित समाज में छवि और निखर कर सामने आई। भाजपा जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र मैथानी ने बताया कि पन्नालाल 1977 में पहली बार एमएलसी बने। इसके बाद जब 1998 में पूर्ण बहुमत से एनडीए की सरकार बनी तो अटल जी 1999 में पन्नालाल को राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था।