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ग़ज़लें : मोईन हसन जज़बी
1.
शरीके मेहफ़िले दारो ओ रसन कुछ और भी हैंसितमगरों, अभी एहले कफ़न कुछ और भी हैंरवाँ दवाँ यूँ हीं ऐ नन्ही बूँदियों के अब्र कि इस दयार में उजड़ चमन कुछ और भी हैंख़ुदा करे न थकें हश्र तक जुनूँ के पाँव अभी मनाज़िरे दश्त ओ दमन कुछ और भी हैंअभी समूम ने मानी कहाँ नसीम से हारअभी तो मआरकाहाए चमन कुछ और भी हैंअभी तो हैं दिले शायर में सैकड़ों नासूरअभी तो मोजज़ाहाए सुख़न कुछ और भी हैंदिले गुदाज़ ने आँखों को दे दिए आँसूये जानते हुए ग़म के चलन कुछ और भी हैं2.
मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करेये दुनिया हो या वो दुनिया, अब ख्वाहिश-ए-दुनिया कौन करेजब कश्ती साबित ओ सालिम थी, साहिल की तमन्ना किसको थीअब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर, साहिल की तमन्ना कौन करेजो आग लगाई थी तुमने, उसको तो बुझाया अश्कों नेजो अश्कों ने भड़काई है, उस आग को ठंडा कौन करे