गुरुवार, 5 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. उर्दू साहित्‍य
  3. मजमून
Written By अजीज अंसारी

मोमिन खाँ मोमिन

मोमिन खाँ मोमिन -
WDWD
बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद थे शायर ज़ौक़। जो शायर बादशाह का उस्ताद होगा उसमें कुछ तो ख़ूबियाँ ज़रूर होंगी लेकिन मिर्जा ग़ालिब अपने आपको ही अच्छा और बड़ा शायर समझते थे। कभी किसी दूसरे शायर को एहमियत नहीं देते थे- एक दिन दोस्तों के साथ शतरंज खेल रहे थे कि किसी ने एक शे'र पढ़ा - सुनकर गालिब चौंके - शे'र था

'अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे

ग़ालिब ने पूछा ये शे'र किसका है? जब पता चला के ये शे'र ज़ौक़ का है तो कहने लगे 'मैं तो समझता था कि ज़ौक़ अच्छा शे'र कहना जानते ही नहीं - हैरत है ये शे'र उन्होंने कैसे कह दिया -

मोमिन खाँ मोमिन भी उनके हमअसरों में से एक थे - मोमिन के पूरे दीवान में ग़ालिब को एक शेर पसंद आया था

तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होत

मोमिन की वफ़ात के बाद अपने और मोमिन के दोस्ताना रिश्तों का ज़िक्र करते हुए ग़ालिब ने बहुत कुछ लिखा है लेकिन मोमिन की शायरी के बारे में सिर्फ इतना लिखा है कि ये शख्स भी अपनी वज़ा का अच्छा कहने वाला था - तबीयत उसकी मानी आफ़रीन थी -

ग़ालिब का किसी शायर के बारे में इतना लिखना भी बहुत ज्यादा लिखने के बराबर है -

मोमिन खुशनसीब थे कि ग़ालिब के मुँह से उनकी शायरी के बारे में कम से कम दो जुमले तो अच्छे निकले -