1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Hindi poem on Ardhanarishwar
Last Updated : मंगलवार, 5 अगस्त 2025 (17:01 IST)

हिन्दी कविता: अर्द्धनारीश्वर

Shiva's silence
जब ब्रह्मांड ने पहली सांस ली,
वह अकेला नहीं था।
उसमें एक स्वर था
शिव का मौन,
और उसमें एक रंग था
शक्ति का स्पंदन।
 
दोनों अलग नहीं थे,
पर रूप में भिन्न दीखते थे।
एक सघन तप का धवल हिम,
दूसरा उष्ण करुणा का रक्तिम सिंदूर।
और उसी क्षण,
अर्द्धनारीश्वर प्रकट हुए।
 
दाएं भाग में शिव
भस्म से अलंकृत,
जटाओं में गंगा का प्रवाह,
नेत्रों में गहन ध्यान का सागर।
बाएं भाग में शक्ति
कुंतलों में कस्तूरी की गंध,
अक्षियों में करुणा की लहरें,
कण्ठ में रागिनी की अनुगूंज।
 
यह मिलन केवल रूप का नहीं,
यह ब्रह्मांड का संतुलन था।
जहाँ कठोरता को कोमलता ने थामा,
और तपस्या को ममता ने छुआ।
 
अर्द्धनारीश्वर 
मानव को यह स्मरण कराते हैं
कि आधा अस्तित्व बाहर का है,
आधा भीतर का।
आधा पुरुष की स्थिरता,
आधा स्त्री की सरसता।
एक के बिना दूसरा
अपूर्ण है।
 
यह वह सत्य है
जो यज्ञों के मंत्रों में नहीं,
बल्कि आत्मा की गहराई में गूंजता है।
 
जब साधक ध्यान में बैठता है,
वह पाता है
कि भीतर शिव हैं
और वहीं पार्वती भी।
और जब वह उन्हें एक मान लेता है,
तभी उसके भीतर
पूर्णता का उदय होता है।
 
शिव का अर्द्धनारीश्वर रूप
सिखाता है
कि जीवन कोई युद्ध नहीं
पुरुष और स्त्री का,
बल्कि एक महादेव का
अपना ही प्रतिबिंब
दो रूपों में देखना।
 
वह रूप कहता है
मैं आधा तुम हूं,
तुम आधी मैं।
हम मिलकर ही
अनंत हैं।
 
अर्द्धनारीश्वर 
प्रेम का सबसे गूढ़ दर्शन,
और अस्तित्व का सबसे बड़ा सत्य है।
 
 
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है।)