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मीर के अशआर
* न देखा मीरे-आवारा को लेकिन ग़ुबार इक नातवाँ सा कू-बकू था * जबके पहलू से यार उठता है दर्द बेइख़्तियार उठता है * हम हुए, तुम हुए, के मीर हुएउसकी ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए * नहीं आए कसू की आँखों में होके आशिक़ बहुत हक़ीर हुए * बू-ए-गुल या नवा-ए-बुलबुल थीउम्र अफ़सोस क्या शिताब गई * यूँ उठे आह! उस गली से हम जैसे कोई जहाँ से उठता है* इश्क़ इक मीर भारी पत्थर है कब ये मुझ नातवाँ से उठता है * मीर साहब को देखिए जो बने अब बहुत घर से कम निकलते हैं * ख़ुश रहा जब तलक रहा जीतामीर मालूम है क़लन्दर था* यारान-ए-देर-ओ-काबा दोनों बुला रहे हैं अब देखें मीर अपना जाना किधर बने है * मीर साहब ज़माना नाज़ुक है दोनों हाथों से थामिए दस्तार * जाए है जी निजात के ग़म में ऐसी जन्नत गई जहन्नम में * न मिल मीर अबके अमीरों से तूहुए हैं फ़क़ीर इनकी दौलत से हम * सब मज़े दरकिनार आलम के यार जब हमकिनार होता है * दूर बैठा ग़ुबार-ए-मीर उससे इश्क़ बिन ये अदब नहीं आता