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Written By संदीप श्रीवास्तव
Last Modified: शनिवार, 11 फ़रवरी 2017 (21:34 IST)

विरासत के रूप में चुनाव में उतरे ये दो प्रत्याशी विरोधियों को देंगे कड़ी चुनौती

विरासत के रूप में चुनाव में उतरे ये दो प्रत्याशी विरोधियों को देंगे कड़ी चुनौती - Uttar Pradesh assembly elections 2017, Samajwadi Party
अम्बेडकर नगर। जिले की विधानसभा क्षेत्र जलालपुर में इस बार काफी दिलचस्प मुकाबला दिखाई पड़ रहा है। यहां से वर्तमान विधायक शेरबहादुर सिंह चुनाव से काफी पहले ही सपा को टाटा बोलकर भाजपा की कश्ती में सवार हो गए थे, लेकिन तबीयत खराब होने और अवस्था अधिक होने के कारण इस बार चुनाव में खुद उतरने की बजाय अपने पुत्र डॉ. राजेशसिंह को भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। 
डॉ. राजेश एक महाविद्यालय में प्रोफेसर हैं और पहली बार किसी राजनीतिक चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं। इसी प्रकार बसपा की तरफ से जलालपुर विधानसभा क्षेत्र से बिलकुल युवा चेहरा रितेश पांडेय के रूप में इस बार चुनाव मैदान में है। रितेश पांडेय के पिता बसपा के पूर्व सांसद और जिले के प्रमुख व्यवसायी राकेश पाण्डेय के पुत्र हैं जबकि समाजवादी पार्टी ने कटेहरी के सपा विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री शंखलाल मांझी को इस बार जलालपुर से चुनाव मैदान में उतारा है।
 
इस तरह से जलालपुर विधानसभा चुनाव में सपा, बसपा और भाजपा तीनों पार्टियों की तरफ से काफी मजबूत दावेदारी दिखाई पड़ रही है। सपा के शंखलाल मांझी जहां इस क्षेत्र से पहली बार विधानसभा चुनाव में मैदान में हैं और मुख्य रूप से दलित और पिछड़े वोट बैंकों में सेंधमारी हासिल करके जी जान से जुटे हुए हैं, तो वहीं बसपा की तरफ से पूर्व सांसद राकेश पांडेय के पुत्र रितेश पांडेय युवा चेहरा होने के नाते युवाओं में काफी लोकप्रिय होने के साथ-साथ सवर्ण, दलित, पिछड़ा और मुस्लिम समाज को अपने साथ जोड़ने का दावा कर रहे हैं।
 
जलालपुर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में भीष्म पितामह कहे जाने वाले नेता शेर बहादुरसिंह की अवस्था इस समय 80 साल से ऊपर की है, और शायद इसी वजह से इस बार वे खुद चुनाव लड़ने की बजाय अपने पुत्र डॉ. राजेश को चुनाव मैदान में उतारा है। शेर बहादुर सिंह इस क्षेत्र के ऐसे नेता हैं जो अपनी लगभग 50 साल की राजनीति में कांग्रेस से लेकर निर्दलीय, सपा और बसपा से कई बार विधायक रह चुके हैं। 
 
वर्तमान में सपा विधायक रहते हुए ही उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। माना यह जाता है कि शेर बहादुरसिंह की इस क्षेत्र में अच्छी छवि है और उनकी पकड़ अगड़ी, पिछड़ी और दलित जातियों के साथ-साथ मुसलामानों पर भी अच्छी है, लेकिन इस बार यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि वे अपने पुत्र को जीत दिलाने में जातीय समीकरण को किस तरह से तोड़ पाते हैं, क्योंकि इस बार भाजपा से टिकट पर चुनाव लड़ रहे उनके पुत्र को मुस्लिम और दलित मतदाता कितना सपोर्ट करेंगे यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा।
 
सभी कर रहे हैं जीत के दावे : जलालपुर विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख मुद्दे हैं, बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और रोजगार। इस क्षेत्र की अगर बात करें तो सिवाय कृषि और कपड़ा व्यवसाय के अलावा इस क्षेत्र में रोजगार के कोई पर्याप्त अवसर नहीं हैं। कृषि कार्य से किसी भी किसान के परिवार की जरूरतें पूरी नहीं हो सकती और कपड़ा व्यवसाय से जुड़े बुनकर भी बिजली और मंदी की समस्या से जूझ रहे हैं। सरकार चाहे जिसकी रही हो लेकिन सबने सिर्फ वादों का ही झुनझुना लोगों को पकड़ाया है। 
 
एक बार फिर वोट लेने के लिए वादे और दावे किए जा रहे हैं। भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायकी का चुनाव लड़ रहे डॉ. राजेश सिंह की सबसे बड़ी चुनौती है अपने पिता और मौजूदा विधायक शेर बहादुर सिंह की विरासत को बचाना। उनका दावा है कि पिता की ईमानदार छवि और उनके 50 साल के अनुभव के कारण क्षेत्र की जनता भाजपा के पक्ष में मतदान करेगी। डॉ. राजेश का मानना है कि उनके क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती कानून-व्यवस्था और बेरोजगारी की है। जिसके लिए क्षेत्र की जनता इस बार परिवर्तन लाकर भाजपा की सरकार बनवाएगी।
 
बसपा के युवा प्रत्याशी रितेश पांडेय का दावा है कि जिला बनाने से लेकर इस जिले के विकास में बसपा ने जो किया है वह किसी भी पार्टी ने नहीं किया। उनका कहना है कि पिछले पांच सालों में सपा की सरकार ने जिले के विकास को ठप कर दिया। इस वजह से इस बार लोग बसपा के पक्ष में मतदान करेंगे और इस बार बसपा की सरकार बनेगी। रितेश का कहना है कि उनकी लड़ाई भाजपा से है और सपा जलालपुर खेत्र से तीसरे नंबर पर रहेगी, वहीं जलालपुर विधानसभा के ही मूल निवासी सपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री अहमद हसन का दावा है कि प्रदेश में साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए और अखिलेश के विकास कार्यों को देखते हुए लोग एक बार फिर से सपा को पूर्ण बहुमत से जिताएंगे।
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