• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. बजट 2021-22
  3. बजट न्यूज़ 2021
  4. farm market
Written By Author प्रकाश बियाणी
Last Updated : सोमवार, 25 जनवरी 2021 (12:29 IST)

कैसे होगा किसानों और उपभोक्ता के हित में कृषि मार्केट में सुधार?

कैसे होगा किसानों और उपभोक्ता के हित में कृषि मार्केट में सुधार? - farm market
1991 में डॉ. मनमोहनसिंह ने उद्योगपतियों के लिए इकॉनमी खोल दी पर किसानों को भूल गए। मोदी सरकार ने कृषि रिफार्म्स की जोखिम उठाई पर इसके जुड़े कृषि कानूनों का किसान विरोध कर रहे हैं। उनके अनुसार ये कानून फ़ूड प्रोसेसर्स और बड़े रिटेलर्स के हित में है। इन कानूनों  के समर्थक अर्थशास्त्री और किसान सन्गठन मानते हैं कि अब किसान उन्हें अपनी उपज बेच सकेगे जो ज्यादा मूल्य देगा। इस कथन में एक पेंच फंसा हुआ है। 

अर्थशास्त्र के आपूर्ति और मांग सिद्धांत का फायदा उन्हीं किसानोंं को मिलेगा जो अपनी फसल ऑफ़ सीजन में बेचेंगे? क्या देश के बहुसंख्यक छोटे किसानों की इतनी सामर्थ्य है कि वे ऑफ़ सीजन तक प्रतीक्षा करे?
 
कृषि कानूनों के विरोधी कह रहे हैं कि फ़ूड प्रोसेसर्स और बल्क यूजर्स सीजन में किसानों से फसल खरीदेंगे, वेयर हाउसेस में रखेंगे और ऑफ़ सीजन में बेचेंगे। किसानों को अधिकतम न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा पर उपभोक्ता मांग के आधार पर मूल्य चुकाएंगे। अभी जो मुनाफा अनाज आढतिए कमा रहे हैं वह फ़ूड प्रोसेसर्स और बल्क यूजर्स को मिलेगा।
 
किसान वस्तु विक्रय अधिनियम कानून निरस्तीकरण का भी विरोध कर रहे हैं। यह कानून 1930 में बना था। तब देश में फसलोत्पादन बहुत कम होता था।
 
देश की करीब 30 करोड़ आबादी को भुखमरी से बचाने के लिए तब कृषि उत्पादों के भंडारण पर प्रतिबन्ध लगाना उचित था। आज देश की आबादी 135 करोड़ से ज्यादा है पर देश अनाज के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं, निर्यातक है। यहीं नहीं, भंडारण की सुविधाओं की कमी के कारण 80 फीसदी अनाज महीनों खुले में रखा रहता है।
 
वस्तु अधिनियम कानून निरस्तीकरण के पीछे सरकार की मंशा है कि निजी क्षेत्र वेयर हाउसेस और कोल्ड स्टोरेज स्थापित करे और कृषि उत्पाद वेस्ट न हो। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने हडबडी में नए कृषि कानून बनाए हैं तो किसान भी बिना समझे इनका विरोध कर रहे हैं।
 
देश के सबसे बड़े थोक और रिटेल कृषि मार्केट की सचाई दोनों नकार रहे हैं। अन्य मार्केट से अलग है कृषि मार्केट। अन्य मार्केट में मैन्युफैक्चरर्स कम है ग्राहक ज्यादा। कृषि सेक्टर में फसलोत्पादन करने वाले किसान ज्यादा है जबकि उनके ग्राहक है केवल होलसेल विक्रेता। दुसरे, कृषि मार्केट सीजनल है। फसल आती है तब होलसेलर्स किसानों से सामान्य मूल्य पर कृषि उत्पाद खरीदते हैं और उपभोक्ता को दो गुणा से भी ज्यादा मूल्य पर बेचते है।
 
किसानों की एक और त्रासदी है। बम्फर फसल हो तो आपूर्ति बढने से उन्हें लागत नहीं मिलती। किसानों को मंडी तक फसल ले जाने का खर्च भी नहीं मिलता है और उन्हें अपनी उपज सड़कों पर फेंकना पडती है। पेरिशेबल उत्पाद जैसे फल सब्जी तो जो भी मूल्य मिले उस पर बेचना किसानों की विवशता है जबकि वेल्यु एडिशन करके प्रोसेसर्स कई गुना मूल्य पर इन्हें बेचते और मुनाफा कमाते हैं।
 
स्पष्ट है कि किसानों और उनकी उपज के होलसेल खरीददारों के मार्केट पॉवर के असुंतलन को घटाए बिना किसानों की आय नहीं बढ़ सकती। यह तब ही होगा जब किसान की कोऑपरेटिव कम्पनियां कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग करके वेल्यु एडेड कृषि उत्पाद बनाए और बेचेगी। मुनाफा इस कोआपरेटिव कम्पनी से जुड़े हर किसान को मिलेगा। यदि आईटीसी या रिलायंस पैक्ड आटा, दाल, चावल, सब्जी फल बेच सकते हैं तो किसानों की कोआपरेटिव कम्पनियां क्यों नहीं?
 
डेयरी सेक्टर में यह हुआ है। 1940 के दशक में गुजरात में डॉ, कुरियन वर्गीज ने गाँव स्तर पर दुग्ध उपादकों की सहकारी समितियां बनाई, जिला स्तर पर इन समितियों ने सीधे दूध बेचा, राज्य स्तर पर वेल्यु एडेड मिल्क प्रोडक्ट्स बनाए और उनकी राष्ट्रीय स्तर पर बिक्री की। आज अमूल 25 लाख से ज्यादा सदस्यों का ऐसा सहकारी संस्थान है जो मिलियन लीटर्स दूध हर रोज 10 हजार से ज्यादा गाँवों से सीधे एकत्रित करता है। दूध, दूध का पाउडर, मक्खन, घी, चीज़,पनीर, दही, चॉकलेट, श्रीखण्ड, आइसक्रीम, गुलाब जामुन, न्यूट्रामूल आदि बना और बेच रहा है। सरकार या कोई निजी कम्पनी नहीं, अमूल के मालिक है दुग्ध उत्पादक किसान।
 
अमूल की तरह बहुसंख्यक छोटे किसान फसलोत्पादन के साथ अपनी उपज के एंड प्रोडक्ट्स बनाएंगे और बेचेंगे तब ही भारतीय कृषि रुरल से ग्लोबल बनेगी। इसके लिए देश में पहले कोआपरेटिव खेती और फ़ूड प्रोसेसिंग होना चाहिए। यदि डेयरी सेक्टर की तरह किसान कोआपरेटिव आधार पर खेती करने लगे तो एग्री मार्केट रिफार्म्स खुद ही हो जाएंगे।
 
नरेंद्र मोदी विजनरी प्रधानमन्त्री है, इसलिए उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे किसानों से कोओपेरेटिव फसलोत्पादन और फ़ूड प्रोसेसिंग करवाए। यदि ऐसा हुआ तो बिना कोई कानून बनाए किसानों की आय दो गुना ही नहीं, कई गुना बढ़ जाएगी। दुर्भाग्य से आज सरकार और किसान कृषि कानूनों को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर एक दूसरे के विरूद्ध खड़े है जो न देश हित में है और न ही किसानों के हित में।
ये भी पढ़ें
एकता की मिसाल... हिन्‍दू भाई को 10 किमी कंधे पर ले जाकर मुस्‍लिम भाई ने किया अंतिम संस्‍कार