कई विशेषज्ञों का मानना है कि सीरिया के 60 फीसदी तेल क्षेत्र पर आईएसआईएस का कब्जा है। आईएसआईएस गैस, कृषि उत्पादों को बेचकर भी पैसे कमाता है। संगठन अपने कब्जे के इलाकों में बिजली और पानी पर कर लगाकर भी कमाई कर रहा है। आईएसआईएस की कमाई का एक जरिया फिरौती भी है। इसी वेबसाइट के मुताबिक, आईआईएस 12 मिलियन डॉलर (लगभग 7 अरब 33 करोड़ रुपए) महीने कमाता है।
2. कितना कमाता है तालिबान : अफगानिस्तान को पूर्णतः इस्लाम की नीतियों पर चलने वाला राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से 1990 में तालिबान का गठन किया गया था। तालिबान का मुखिया मोहम्मद उमर 1994 कंधार कांड से पहली बार चर्चा में आया था। तालिबान को 3 देशों पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई से संरक्षण मिला हुआ है और ये सभी कट्टर सुन्नी इस्लाम का पालन करते हैं। तालिबान की आर्थिक स्थिति की बात करें तो इसे भी अन्य आतंकी संगठनों की भांति विदेशों से मदद मिलती है लेकिन तालिबान की असली कमाई नशीले पदार्थों की तस्करी से ही होती है।
अफगानिस्तान में अफीम की खेती बहुतायत में की जाती है और तालिबान एक बड़ी मात्रा में इसका कारोबार करता है। तालिबान की सालाना इनकम 40 करोड़ डॉलर यानी करीब 2,400 करोड़ रुपए आंकी गई है।
3. दौलत के मामले में चौथे पायदान पर है अल कायदा : ओसामा बिन लादेन की मौत हो चुकी है, लेकिन अल कायदा का खौफ अब भी कायम है। संगठन के नए नेता अयमान-अल-जवाहिरी ने भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ने का आह्वान कर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को भी चौकन्ना कर दिया। वैसे तो यह संगठन 80 के दशक से अस्तित्व में था लेकिन 11 सितंबर 2001 में अमेरिका में ट्विन टॉवर पर किए गए हमलों के बाद यह संगठन अधिक चर्चित हो गया।
अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए के मुताबिक कुछ सालों पहले तक अल कायदा की कमाई लगभग 30 मिलियन डॉलर सालाना थी। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक अब यह बढ़कर लगभग 100 मिलियन डॉलर हो गई है। अल कायदा की आमदनी का स्रोत भी चंदा ही बताया जाता है। 'दी रिचेस्ट डॉट कॉम' ने इसे अमीर आतंकी संगठनों की सूची में चौथे पायदान पर रखा है।
ओसामा बिन लादेन और अब्दुल अज्जाम समेत कई नेताओं ने अल कायदा की स्थापना 1988 और 1989 के बीच की थी। संगठन को अफगानिस्तान-सोवियत युद्घ में सोवियत यूनियन के खिलाफ लड़ने के लिए बनाया गया था।
4. बोको हराम की कमाई का जरिया फिरौती : बोको हराम नाइजीरिया का आतंकी संगठन है। यह आतंकी संगठन वैसे तो धमाकों आदि के लिए लंबे समय से चर्चा में रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में पिछली गर्मियों में तब आया, जब उसने 250 से ज्यादा लड़कियों को अगवा कर लिया।
ये लड़कियां एक आवासीय स्कूल की छात्राएं थीं। पश्चिमी शिक्षा का विरोधी यह संगठन नाइजीरिया में 2009 के बाद से अधिक सक्रिय है। आईएसआईएस की तरह ही बोको हराम भी नाइजीरिया में इस्लामिक मुल्क की स्थापना करना चाहता है।
अल कायदा ने बोको हराम के आतंकियों को प्रशिक्षण दिया है। बोको हराम को अल कायदा फंड भी देता रहा है। 'गार्जियन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक बोको हराम ने 2009 से 2014 के बीच 5,000 से अधिक नागरिकों की हत्या की है।
'दी रिचेस्ट डॉट कॉम' ने दौलतमंद आतंकी संगठनों की सूची में बोको हराम को 7वें पायदान पर रखा है। वेबसाइट के मुताबिक, 2006 से 2011 के बीच इस संगठन ने 70 मिलियन डॉलर (लगभग 4 अरब 27 करोड़ रुपए) कमाए थे। संगठन की कमाई का स्रोत अपहरण और फिरौती है।
5. अरबों में है भारत विरोधी लश्कर की कमाई : भारत में लश्कर-ए-तैयबा जाना-पहचाना नाम है। बीते 2 दशकों में भारत में हुईं कई आतंकी वारदातों में शामिल होने के आरोप इस संगठन पर लगे। भारत सरकार के अनुसार 2001 में संसद पर हमले और 26 नंवबर 2008 के मुंबई हमलों में भी इसी संगठन का हाथ था।
आरोप है कि लश्कर-ए-तैयबा पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकी प्रशिक्षण शिविर भी चलाता है। लश्कर-ए-तैयबा का लक्ष्य दक्षिण-पूर्व एशिया में इस्लामिक राज्य की स्थापना करना और कश्मीर को आजाद कराना है।
'दी रिचेस्ट डॉट कॉम' ने इस संगठन की सालाना कमाई करीब 100 मिलियन डॉलर (लगभग 61 अरब रुपए) के आसपास आंकी है। वेबसाइट ने अमीर आतंकी संगठनों की सूची में उसे 6ठे स्थान पर रखा है। लश्कर-ए-तैयबा की आमदनी का अधिकांश हिस्सा चंदों से आता है। संगठन ने पाकिस्तान में अस्पताल और स्कूल भी खोल रखे हैं।
6. हमास की कमाई 5 अरब रुपए महीना : फिलीस्तीन के वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी क्षेत्र में अपना प्रभाव कायम करने वाले आतंकी संगठन हमास ने भी दौलतमंद होने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वैसे अपनी आय के स्रोत के बारे में आतंकी संगठन किसी को जानकारी नहीं देते लेकिन कुछ अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों का मानना है कि हथियारों की तस्करी और विदेशी चंदों से हमास धन इकट्ठा करता है। वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट डॉट ओआरजी के अनुसार हमास की सालाना कमाई 800 मिलियन डॉलर यानी करीब 53 अरब रुपए है।
7. कमाई में 5वें नंबर पर है एफएआरसी : रिवॉल्यूशनरी आर्म्ड फोर्सेज ऑफ कोलंबिया (एफएआरसी) 1960 से ही कोलंबिया में सक्रिय है। यह संगठन खुद को मार्क्सवादी विचारों पर आधारित गुरिल्ला संगठन मानता है। अपने सैन्य दस्ते को इसने जनसेना का नाम दे रखा है।
हालांकि कोलंबियाई सरकार के लिए इसे अहम खतरा माना जाता है। संगठन पर कोलंबिया में साम्राज्यवाद के विरोध के नाम पर नागरिकों की हत्या, अपहरण और बम धमाकों के आरोप हैं। संगठन की सालाना आमदनी तकरीबन 100 से 350 मिलियन डॉलर है।
'दी रिचेस्ट डॉट कॉम' ने अमीर आतंकी संगठनों की सूची में इसे 5वें पायदान पर रखा है। संगठन की आमदनी का मुख्य स्रोत फिरौती और नशीली दवाओं का कारोबार है। 1964 में एफएआरसी की स्थापना कोलंबियन कम्युनिस्ट पार्टी के सैन्य दस्ते के रूप में हुई थी।
8. अल-शबाब की कमाई का जरिया लूटपाट : दुनिया के अमीर आतंकी संगठनों में सोमालिया के अल-शबाब का भी नाम आता है। अल-शबाब की सालाना इंकम 600 करोड़ रुपए बताई जा रही है। अल-शबाब की आय का मुख्य साधन फिरौती, अपहरण, अवैध कारोबार, तस्करी, उगाही और विदेशों से मिलने वाली आर्थिक मदद है।
अल-शबाब के पास वर्तमान में 7,000 से 9,000 के पास लड़ाके हैं, जो जितने जमीन पर सक्रिय रहते हैं उससे कहीं ज्यादा समुद्री जहाजों की लूटमार करते हैं।