गोकर्ण की पहाड़ियों में गुफा से मिली रूसी महिला, 2 बच्चे भी साथ, 8 साल पहले खत्म हो गया था वीजा
उत्तर कन्नड़ जिले के कुमटा तालुक की शांत लेकिन दुर्गम रामतीर्थ पहाड़ियों में स्थित एक सुदूर गुफा से रूस की एक महिला एवं उसके 2 छोटे बच्चों को बचाया गया है। पुलिस के एक अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी और कहा कि रूसी महिला आध्यात्मिक शांति की तलाश में वहां रह रही थी। मीडिया खबरों के अनुसार रूसी महिला और उसके बच्चों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के बाद उनको रूस वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जांच के दौरान पता चला है कि उसका वीजा 2017 में ही समाप्त हो गया था।
उन्होंने बताया कि महिला की पहचान 40 वर्षीय नीना कुटीना उर्फ मोही के रूप में हुई है। वह बिजनेस वीजा पर रूस से भारत आई थी। वह हिन्दू धर्म तथा भारत की आध्यात्मिक परंपराओं से बहुत ज्यादा प्रभावित हुई, इसलिए वह गोवा के रास्ते पवित्र तटीय शहर गोकर्ण पहुंची थी। अधिकारी ने बताया कि मोही के 2 बच्चे भी हैं, जिनका नाम प्रेया (6) और अमा (4) है। ये सभी लगभग दो सप्ताह से जंगल के बीचोंबीच और पूरी तरह से एकांत में रह रहे थे।
उन्होंने बताया कि इस छोटे से परिवार ने घने जंगल और खड़ी ढलानों से घिरी एक प्राकृतिक गुफा के अंदर एक साधारण सा घर बना लिया था। अधिकारी ने बताया कि मोही ने वहां रुद्र की प्रतिमा स्थापित की हुई थी। उन्होंने कहा कि वह प्रकृति के बीच आध्यात्मिक शांति की तलाश में पूजा और ध्यान में अपना दिन बिताया करती थी। उसके साथ केवल उसके दो छोटे बच्चे रहे।
उन्होंने बताया कि हाल ही में हुए भूस्खलन के बाद शुक्रवार को नियमित गश्त के दौरान पुलिस निरीक्षक श्रीधर और उनकी टीम ने गुफा के बाहर कपड़े लटके हुए देखे थे।
उत्तर कन्नड़ के पुलिस अधीक्षक एम नारायण ने शनिवार को पीटीआई-भाषा से बात करते हुए कहा कि हमारी गश्त टीम ने रामतीर्थ पहाड़ी में गुफा के बाहर सूखने के लिए साड़ी और अन्य कपड़े लटके हुए देखे थे। जब वे वहां गए तो उन्होंने मोही को उसके बच्चों प्रेया और अमा के साथ देखा।
उन्होंने कहा कि यह बहुत ही हैरानी की बात है कि वह और उसके बच्चे जंगल में कैसे जीवित रहे और क्या खाते-पीते रहे। शुक्र है कि जंगल में रहने के दौरान उनके या उनके बच्चों के साथ कोई अनहोनी नहीं हुई। उनके अनुसार, महिला संभवतः गोवा से यहां पहुंची है। अधिकारी ने बताया कि यह भी पता चला कि महिला का वीजा 2017 में ही समाप्त हो गया था। वह कितने समय से भारत में रह रही है, यह अभी स्पष्ट नहीं है।
नारायण ने कहा कि हमने एक साध्वी द्वारा संचालित आश्रम में उसके रहने की व्यवस्था की है। हमने उसे गोकर्ण से बेंगलुरु ले जाने और निर्वासन की प्रक्रिया शुरू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। एक स्थानीय एनजीओ की मदद से रूसी दूतावास से संपर्क किया गया और उसे निर्वासित करने की औपचारिकताएं शुरू की गईं।