शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
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Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला

तेलंगाना चुनाव में कड़े मुकाबले में फंसे मुख्‍यमंत्री के. चंद्रशेखर राव

क्या केसीआर तेलंगाना में खेल पाएंगे तीसरी पारी?

तेलंगाना चुनाव में कड़े मुकाबले में फंसे मुख्‍यमंत्री के. चंद्रशेखर राव - Will CM KCR be able to play third innings in Telangana
Telangana Election 2023: तेलंगाना के मुख्‍यमंत्री के. चंद्रशेखर राव तीसरी बार सत्ता में आने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। लेकिन, ज्योतिष में भरोसा रखने वाले केसीआर के 'सितारे' लगता है इस बार पूरी तरह उनके पक्ष में दिखाई नहीं दे रहे हैं। इस बार उन्हें कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल रही है। मुस्लिम आरक्षण और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उनके लिए मुश्किल का सबब बन सकते हैं। भाजपा भी इस बार तीसरी ताकत के रूप में उभर सकती है। साथ ही पिछली बार के मुकाबले उसकी सीटों में इजाफा भी हो सकता है। 
 
तेलंगाना की 119 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 60 सीटों की जरूरत है। केसीआर की बीआरएस पर पिछले वादे पूरे नहीं कर पाने का दबाव तो है ही साथ ही पार्टी एंटी-इनकम्बेंसी का सामना भी कर रहा है। जातिगत समीकरण भी इस बार बीआरएस के पक्ष में दिखाई नहीं दे रहे हैं। तेलंगाना में मडिगा जाति का हिस्सा एससी समुदाय में 50 फीसदी से ज्यादा है। केसीआर ने मडिगा जाति के राजैया को उपमुख्‍यमंत्री तो बनाया था, लेकिन जल्द ही उन्हें दरकिनार कर दिया गया। इसके चलते केसीआर को मडिगा जाति की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। 
 
कांग्रेस ने भी जातिगत जनगणना के नाम पर पिछड़े वर्ग को लुभाने की कोशिश की है, वहीं राज्य सरकार के भ्रष्टाचार के मामले को भी उठाया। प्रियंका और राहुल गांधी रैलियों में उमड़ी कहीं न कहीं कांग्रेस के बढ़े हुए आत्मविश्वास को ही दर्शा रही है। दूसरी ओर, भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत अन्य नेताओं ने ताबड़तोड़ रैलियां की हैं। 
 
अमित शाह ने राज्य के एसटी-एससी समुदाय को आकर्षित करने के लिए राज्य में मुस्लिम आरक्षण खत्म कर उसे इन समुदायों में बांटने की बात कही। मोदी ने भ्रष्टाचार, परिवारवाद जैसे मुद्दे उठाए। उन्होंने एक सभा में कहा था कि केसीआर ने भाजपा से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन जनता के हित में भाजपा ने ऐसा नहीं किया। 
 
जानकारों की मानें तो इस बार तेलंगाना में मुख्‍य मुकाबला बीआरएस और कांग्रेस के बीच है। भाजपा को यदि ज्यादा वोट मिलते हैं तो इसका कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में टीआरएस (अब बीआरएस) ने 88 सीटें जीतकर एकतरफा बहुमत हासिल किया था। ऐसे में उन्हें पूरी तरह नकारा तो नहीं जा सकता है, लेकिन यह भी सही है कि इस बार राज्य में कांग्रेस ताकतवर बनकर उभर रही है। लोकपाल के सर्वे के मुताबिक तेलंगाना में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत हासिल करने जा रही है। 
हैदराबाद के ‍एक हिन्दी अखबार के संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र प्रताप सिंह वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों बीआरएस और कांग्रेस का अच्छा प्रभाव है, जबकि भाजपा का कोई जनाधार नहीं है। हालांकि शहरी क्षेत्रों में जरूर उसका असर है। खासकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य हिन्दी भाषी राज्यों से आए 90 फीसदी लोगों का रुझान भाजपा की तरफ है। रोजगार, मुफ्त बिजली, जातिगत जनगणना जैसे मुद्दे कांग्रेस को फायदा पहुंचा सकते हैं। मुस्लिम वोटों का रुझान कुछ क्षेत्रों में एआईएमआईएम की तरफ रहेगा। बाकी जगह मुस्लिम वोट कांग्रेस या बीआरएस को मिल सकते हैं। 
 
सिंह कहते हैं कि चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मडिगा जाति के सम्मेलन में भाग लेकर उनके नेता को गले लगाया था। मडिगा रिजर्वेशन पोराटा समिति की रैली में समिति के संस्थापक मंदा कृष्णा मडिगा ने भाजपा को अपना समर्थन देने की घोषणा की थी। इसका थोड़ा फायदा पार्टी को मिल सकता है। 
 
पत्रकार धीरेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि पिछले चुनाव में भाजपा को एक ही सीट मिली थी। तब गोशामहल सीट से भाजपा के दिग्गज नेता टी. राजा सिंह चुनाव जीते थे। हालांकि राजा की क्षेत्र में व्यक्तिगत पकड़ भी काफी अच्छी है। तेलुगू के 'पॉवर स्टार' पवन कल्याण ने भी भाजपा के पक्ष में रैलियां की हैं, लेकिन उसका ज्यादा फायदा होता दिखाई नहीं देता। हालांकि सिंह मानते हैं कि मुकाबला कहीं भी एकतरफा नहीं है। बीआरएस और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर है। परिणाम किसी के पक्ष भी जा सकता है।
 
क्या है पिछले चुनाव का रिकॉर्ड : पिछले चुनाव में केसीआर की पार्टी को 88 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस 19 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही थी। बीआरएस की समर्थक एआईएमआईएम ने भी 7 सीटें जीती थीं। भाजपा मात्र 1 सीट जीत पाई थी, जबकि उसने 117 उम्मीदवार खड़े किए थे।