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Last Modified: सोमवार, 29 अगस्त 2022 (12:48 IST)

1928 में भारतीय हॉकी को मिला था कोहिनूर, नाम था मेजर ध्यानचंद

1928 में भारतीय हॉकी को मिला था कोहिनूर, नाम था मेजर ध्यानचंद - Hockey veteran Major Dhyanchand shined in Olympics 1928
नई दिल्ली: यूं तो हॉकी 1908 और 1920 ओलंपिक में भी खेली गई थी लेकिन 1928 में एम्सटरडम में हुए खेलों में इसे ओलंपिक खेल का दर्जा मिला और इन्ही खेलों से दुनिया ने भारतीय हॉकी का लोहा माना और ध्यानचंद के रूप में भारतीय हॉकी के सबसे दैदीप्यमान सितारे ने पहली बार अपनी चमक बिखेरी।

ओलंपिक में सबसे ज्यादा आठ स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सफर की शुरूआत एम्सटरडम से ही हुई। इससे पहले भारत में हॉकी के इतिहास के नाम पर कलकत्ता में बेटन कप और बांबे (मुंबई) में आगा खान कप खेला जाता था। भारतीय हॉकी महासंघ का 1925 में गठन हुआ और 1928 ओलंपिक में जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में भारतीय टीम उतरी।

भारतीय टीम जब लंदन के रास्ते एम्सटरडम रवाना हो रही थी तो किसी को उसके पदक जीतने की उम्मीद नहीं थी और तीन लोग उसे विदाई देने आये थे। लेकिन स्वर्ण पदक के साथ लौटने पर बांबे पोर्ट पर हजारों की संख्या में लोग उसका स्वागत करने के लिये जमा थे। भारतीयों पर हॉकी का खुमार अब चढना शुरू हुआ था और इसके बाद लगातार छह ओलंपिक में स्वर्ण के साथ ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन का सबसे सुनहरा अध्याय हॉकी ने लिखा।

ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने भाषा से कहा ,‘‘ दरअसल ओलंपिक में हॉकी को शामिल करने की नींव 1926 में भारतीय सेना की टीम के न्यूजीलैंड दौरे से पड़ी। दर्शकों का उत्साह और भारतीयों के खेल की खबरें यूरोपीय देशों तक पहुंची और इसने अहम भूमिका निभाई।’’
 

ध्यानचंद ने एम्सटरडम ओलंपिक में सबसे ज्यादा 14 गोल किये जिनमें फाइनल में नीदरलैंड के खिलाफ दो गोल शामिल थे। भारत ने टूर्नामेंट में एक भी गोल नहीं गंवाया। ध्यानचंद के कौशल ने विरोधी टीमों को भी मुरीद बना लिया था और खेल खत्म होने के बाद हर किसी की जबां पर इस दुबले पतले भारतीय खिलाड़ी का नाम था।

अशोक ने कहा ,‘‘पहला मैच देखने महज 100-150 लोग जमा थे लेकिन फाइनल में 20000 से ज्यादा दर्शक स्टेडियम में थे। ध्यानचंद को हॉकी के जादूगर की संज्ञा, लोगों का उनकी हॉकी स्टिक को छूना और भारतीय हॉकी के दबदबे की शुरूआत वहीं से हुई।’’

नौ देशों ने 1928 ओलंपिक हॉकी स्पर्धा में भाग लिया था जिन्हें दो समूहों में बांटा गया था। समूह के विजेता को फाइनल और उपविजेता को कांस्य पदक के मुकाबले में जगह मिली । भारत ने ग्रुप चरण में सारे मैच जीते।

पहले मैच में भारत का सामना आस्ट्रिया से था जिसमें ध्यानचंद ने चार, शौकत अली ने एक और मौरिस गेटली ने एक गोल किया। भारत ने वह मैच 6 . 0 से जीता। इसके बाद बेल्जियम को 9-0 से मात दी जिसमें फिरोज खान ने पांच और ध्यानचंद ने एक गोल किया।

तीसरे मैच में सामना डेनमार्क से था और ध्यानचंद के चार गोल से भारत ने 5-0 से जीत दर्ज की।आखिरी मैच में स्विटजरलैंड को छह गोल से हराया जिसमें से आधे गोल ध्यानचंद के थे।

भारतीय टीम ने फाइनल में मेजबान नीदरलैंड को 3- 0 से शिकस्त दी जिनमें से दो गोल ध्यानचंद ने और एक जार्ज मार्टिंस ने किया।

भारतीय हॉकी के गौरवशाली इतिहास का पहला पन्ना लिखने वाली टीम :

जयपाल सिंह (कप्तान) , ब्रूम एरिक पिन्निंजेर (उपकप्तान), सैयद एम युसूफ, रिचर्ड जे एलेन, माइकल ई रोके, लेसली सी हैमंड, रेक्स ए नौरिस, विलियम जॉन गुडसर कुलेन, केहार सिंह गिल, मौरिस ए गेटली, शौकत अली, जॉर्ज ई मार्टिंस, ध्यानचंद, फिरोज खान, फ्रेडरिक एस सीमैन, संतोष मंगलानी, खेर सिंह गिल।(भाषा)
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