सिंहासन बत्तीसी : छब्बीसवीं पुतली मृगनयनी की कहानी
Sinhasan Battisi 26th Storyमृगनयनी नामक छब्बीसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य न सिर्फ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, बल्कि त्याग, दानवीरता, दया, वीरता इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणों के धनी थे। वे किसी तपस्वी की भांति अन्न-जल का त्याग कर लम्बे समय तक तपस्या में लीन रह सकते थे। ऐसा कठोर तप कर सकते थे कि इन्द्रासन डोल जाए।एक बार उनके दरबार में एक साधारण सी वेशभूषा वाले एक युवक को पकड़कर उनके सैनिक लाए। वह रात में बहुत सारे धन के साथ संदिग्ध अवस्था में कहीं जा रहा था। उसकी वेशभूषा से नहीं लग रहा था कि इस धन का वह मालिक होगा, इसलिए सिपाहियों को लगा शायद वह चोर हो और चोरी के धन के साथ कहीं चंपत होने की फिराक में हो।
राजा ने जब उस युवक से उसका परिचय पूछा और जानना चाहा कि यह धन उसके पास कैसे आया तो उस युवक ने बताया कि वह एक धनाढ्य स्त्री के यहां नौकर है और सारा धन उसी स्त्री का दिया हुआ है। अब राजा की जिज्ञासा बढ़ गई और उन्होंने जानना चाहा कि उस स्त्री ने उसे यह धन क्यों दिया और वह धन लेकर कहां जा रहा था? इस पर वह युवक बोला कि अमुक जगह रुककर स्त्री ने प्रतीक्षा करने को कहा था। दरअसल उस स्त्री के उससे अनैतिक सम्बन्ध हैं और वह उससे पति की हत्या करके आकर मिलने वाली थी।दोनों सारा धन लेकर कहीं दूर चले जाते और आराम से जीवन व्यतीत करते।