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Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला
Last Updated : गुरुवार, 28 अप्रैल 2016 (10:47 IST)

जहां गरजी थीं बोफोर्स तोपें, वहां गूंजे वेदमंत्र-योगेश्वर दास

जहां गरजी थीं बोफोर्स तोपें, वहां गूंजे वेदमंत्र-योगेश्वर दास - Yajna for martyr by yogeshwar das
यज्ञ मंडप के शिखर पर लहराता भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा मानो आसमान को चुनौती दे रहा था। माइक पर लगातार गूंजते देशभक्ति के तराने... और चारों ओर लगे शहीदों के चित्र दिल पर एक अलग ही असर छोड़ रहे थे। सिंहस्थ नगरी उज्जैन में यह निराला अंदाज था संत बाल योगेश्वरदास के शिविर का। भगवा ध्वज और भगवाधारी साधुओं को देखने वाले श्रद्धालुओं के लिए भूखीमाता के सामने बना यह शिविर कौतूहल का विषय था।  
दरअसल, यहां भारतीय सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस के शहीदों की स्मृति में 100 कुंडीय अतिविष्णु महायज्ञ किया जा रहा है। इस महायज्ञ में सवा करोड़ से ज्यादा आहुतियां दी जाएंगी, जिसमें शहीद परिवार के करीब 400 परिजन भी शामिल हो रहे हैं। संत योगेश्वर दास से जब बातचीत का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा कि आखिर इस तरह के यज्ञ की प्रेरणा कहां से मिली? उन्होंने कहा कि मैं सैन्य परिवार से हूं। मेरे पिता, भाई और मित्र सेना में रहे हैं। देशभक्ति मुझे विरासत में मिली है। 
 
उन्होंने कहा कि भूमि, अन्न और वस्त्र आदि का दान तो सभी करते हैं, लेकिन प्राण दान तो हमारे जांबाज सैनिक ही करते हैं, जो देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। हमें उनकी शहादत को हमेशा याद रखना चाहिए। बस, यहीं से निश्चय किया कि शहीदों के लिए कुछ किया जाना चाहिए और अतिविष्णु यज्ञों का सिलसिला शुरू हो गया। मेरा विश्वास है कि यज्ञकुंड से उठता धुआं शहीदों तक जरूर पहुंचेगा। वे कहते हैं कि मुझे खुशी है कि ईश्वर ने धर्म के साथ ही देशभक्ति का रास्ता भी दिखाया। 
 
ज्यादातर यज्ञ सीमांत क्षेत्रों में : जम्मू के ब्राह्मण परिवार में जन्मे योगेश्वरदास बताते हैं कि पहला यज्ञ वर्ष 2003 में जम्मू तवी में हुआ था। इसके बाद रियासी, विशनाह, उधमपुर, रामनगर, सांबा, अखनूर, कठुआ, किंतर, राजपुरा, द्रास कारगिल, हरिद्वार, इलाहाबाद आदि स्थानों पर अब तक 25 महायज्ञ संपन्न हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि कारगिल में तो तोलोलिंग पहाड़ के नीचे उस स्थान पर 750 ब्राह्मणों ने वेद मंत्रों से यज्ञ संपन्न कराया था, जहां कारगिल युद्ध के दौरान बोफोर्स तोपें गरजी थीं। सबसे अहम बात यह है कि वहां एक भी हिन्दू नहीं था, मुस्लिम परिवारों ने खुशी-खुशी यज्ञ के लिए अपनी भूमि उपलब्ध करवाई थी। यह बहुत बड़ा संदेश है।
 
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सभी धर्मों का सम्मान करें : योगेश्वरदास कहते हैं कि आपस में भाईचारा रखें और सभी धर्मों का सम्मान करें। किसी भी धर्म अथवा मजहब की निंदा नहीं करनी चाहिए। सभी धर्म पूजनीय हैं। वे कहते हैं कि अपने धर्म के पेड़ को पकड़कर रखो। दूसरे के पेड़ को काटने जाओगे तो आपके धर्म के पास कौन रहेगा? वह वृक्ष आसानी से उखड़ जाएगा। 
 
उपेक्षित सैन्य परिवारों की मदद के संबंध में योगेश्वरदास कहते हैं कि मैं इतना सक्षम नहीं हूं कि उनको मदद कर सकूं, लेकिन जितना संभव हो पाता है उनके लिए मैं करता हूं। मैं शहीदों के परिजनों को तीर्थस्थलों पर ले जाता हूं। सरकार को चाहिए कि वह सैन्य परिवारों की शिक्षा और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखे। ... और फिर जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया हो, उन्हें कोई दे भी क्या सकता है।
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