शनिवार, 26 अप्रैल 2025
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Written By WD

भोलेनाथ का प्रिय शिव चालीसा

श्रावण मास विशेष
ND

सावन मास में शिव चालीसा पढ़ने का अलही महत्व है। शिव चालीसा के माध्यम से आप अपने सारे दुखों को भूला कर भगवान शिव कअपार कृपा प्राप्त कर सकते हैं

।।दोहा।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगमूल सुजान
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभवरदान

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करसन्तन प्रतिपाला
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डनागफनी के
अंगौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देनाग मुनि मोहे
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंसोहत छवि न्यारी
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदशत्रुन क्षयकारी
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्कमल हैं जैसे
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि ककहि जात न काऊ
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुप्रभु आप निवारा
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महमारि गिरायउ
जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिकृपा कर लीन बचाई
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरप्रतिज्ञा तसु पुरारी
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवस्तुति करत सदाहीं
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेनहिं पाई
प्रगउदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तनाम कहाई
पूजरामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्परीक्षा तबहिं पुरारी
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयपूजन चहं सोई
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भयप्रसन्न दिए इच्छित वर
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सके घटवासी
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमरहे मोहि चैन न आवै
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट समोहि आन उबारो
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट मेपूछत नहिं कोई
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहअब संकट भारी
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोजांचे वो फल पाहीं
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारीक्षमहु नाथ अब चूक हमारी
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारविघ्न विनाशन
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारशारद शीश नवावैं
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुब्रह्मादिक पार न पाय
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत हशम्भु सहाई
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सपावन हारी
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिप्रसाद तेहि होई
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यापूर्वक होम करावे
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीताके रहे कलेशा
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुपाठ सुनावे
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवाशिवपुर में पावे
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकदुःख हरहु हमारी

॥दोहा
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौचालीसा
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करजगदीश
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसजान
अस्तुति चालीसशिवहि, पूर्ण कीकल्याण॥