• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. श्रावण मास विशेष
  4. कावड़ यात्रा की 10 ऐसी बातें जो आपको पता होना चाहिए

कावड़ यात्रा की 10 ऐसी बातें जो आपको पता होना चाहिए

Kavad Yatra 2021
25 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो गया है और इसके साथ ही शिवभक्त कावड़िये कावड़ लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने निकल पड़े हैं। कई जगहों पर इन जत्थों पर प्रतिबंध है तो कहीं पर नहीं। आओ जानते हैं कावड़ यात्रा की 10 खास बातें।
 
 
1. परशुराम थे पहले कावड़िया: कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। एक अन्य मान्यता अनुसार भगवान राम ने की थी कावड़ यात्रा की शुरुआत। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कावड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
 
2. नीलकंठ : पुराणों के अनुसार कावड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया। इस ताप को शांत करने के लिए देवताओं ने पवित्र नदियों का जल लेकर शिवजी के उपर चढ़ाया।
 
3. रावण : एक अन्य मान्यता अनुसार शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया। तत्पश्चात कावड़ में जल भरकर रावण ने 'पुरा महादेव' स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
 
4. क्या होती है कावड़ : दो मटकियों में किसी नदी या सरोवर का जल भरा जाता है और फिर उसे आपस में बंधी हुई बांस की तीन स्टिक पर रखकर उसे बांस के एक लंबे डंडे पर बांधा जाता है। इस अवस्था में आकृति किसी तराजू की तरह हो जाती है। आजकल तांबे के लोटे में जल भरकर इसे कंधे पर लटकाकर यात्रा की जाती है। यात्रा करने वालों को कावड़िया कहते हैं। कावड़िये यह जल ले जाकर पास या दूर के किसी शिव मंदिर में शिवलिंग का उस जल से जलाभिषेक करते हैं।
 
'कावड़ के ये घट दोनों ब्रह्मा, विष्णु का रूप धरें।
बाँस की लंबी बल्ली में हैं, रुद्र देव साकार भरे।'
 
5. इस तरह निकलता है कावड़ियों का जत्था : कांधे पर कावड़ उठाए, गेरुआ वस्त्र पहने, कमर में अंगोछा और सिर पर पटका बाँधे, नंगे पैर चलने वाले ये लोग देवाधिदेव शिव के समर्पित भक्त होते हैं। 'हर-हर, बम-बम', 'बोल बम' के साथ भोले बाबा की जय-जयकार करता यह जनसमूह स्वतः स्फूर्त होकर सावन का महीना प्रारंभ होते ही ठाठें मारता चल पड़ता है।   
 
5. प्रमुख कावड़ यात्रा :  
* नर्मदा से महाकाल तक 
* गंगाजी से नीलकंठ महादेव तक 
* गंगा से बैजनाथ धाम (बिहार) तक 
* गोदावरी से त्र्यम्बक तक 
* गंगाजी से केदारेश्वर तक 
इन स्थानों के अतिरिक्त असंख्य यात्राएं स्थानीय स्तर से प्राचीन समय से की जाती रही हैं।
 
6. पैदल करते हैं यात्रा : यात्रा प्रारंभ करने से पूर्ण होने तक का सफर पैदल ही तय किया जाता है। इसके पूर्व व पश्चात का सफर वाहन आदि से किया जा सकता है। 
 
7. यात्रा का उद्येश्य : यात्रा से व्यक्ति के जीवन में सरलता आकर उसकी संपूर्ण कामनाओं की पूर्ति होती है। कावड़ यात्रा एक भाविक अनुष्ठान है जिसमें कर्मकांड के जटिल नियम के स्थान पर भावना की प्रधानता है जिसके फलस्वरूप इस श्रद्धा-कर्म के कारण महादेवजी की कृपा शीघ्र मिलने की स्थिति बनती है। यह प्रवास-कर्म व्यक्ति को स्वयं से, देश से व देशवासियों से परिचित करवाता है। यह महादेव के प्रति भक्ति प्रर्दशित करने का एक तरीका भी है।
 
8. यात्रियों की करें सेवा : यात्री को सुगमता रहे, इस तरह की मार्ग में व्यवस्था करना चाहिए। यात्राकर्ता को साधारण नहीं समझ करके विशेष भक्त समझकर उसके प्रति सम्मान व आस्था रखनी चाहिए। यात्री की सेवा करने का फल भी यात्रा करने के समान है इसलिए उसकी सेवा अवश्य करनी चाहिए। यात्री को व जल पात्र को पूजन या नमस्कार अवश्य करना चाहिए। ऐसा कोई कर्म नहीं करना चाहिए जिससे कावड़ यात्री को कष्ट या दुःख पहुंचे। 
 
9. कावड़ यात्रा के नियम : कावड़ यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा, तामसिक भोजन आदि का सेवन नहीं करते हैं। कावड़ को भूमि नहीं रखते हैं। रुकने के दौरना कावड़ को स्टैंड या पेड़ के ऊंचे स्थल पर लटकाकर रखते हैं। यात्रा मार्ग में कावड़ भूमि पर रखा है तो दोबारा जल लेकर यात्रा करते हैं।  कावड़ में किसी पवित्र नदी का जल ही भरकर चलते हैं। यात्रा को पैदल ही पूरा करते हैं। पहली बार यात्रा कर रहे हैं तो पहले वर्ष छोटी दूरी की यात्रा करते हैं फिर क्षमता अनुसार बड़ी दूरी की। 
 
10. शिवलिंग का करें जलाभिषेक : कावड़ के जल से शिवलिंग का विधिवत जलाभिषेक करना चाहिए। जलाभिषेक के पहले कावड़ को उचित स्थान पर रखकर पहले स्नानदि करके पवित्र होकर ही पूजा करें।
ये भी पढ़ें
कावड़ यात्रा : एक कावड़िए को कितने नियमों का पालन करना चाहिए