Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि पर भांग पीने का प्रचलन कब से हुआ प्रारंभ?
भारत में होली, शिवरात्रि और महाशिवरात्रि पर भांग और ठंडाई पीने का प्रचलन है। अधिकतर जगहों पर ठंडाई में किंचित मात्र भांग मिलाकर पीते हैं। शिवरात्रि या महाशिवरात्रि पर लोग खूब भांग पीते हैं। शिवजी को भांग का लेप किया जाता है और भांग चढ़ाई भी जाती है। हालांकि भगवान शिव न तो भांग पीते हैं और न ही गांजा लेते हैं। शास्त्रों में इसका कहीं उल्लेख नहीं है। उन्हें भांग और धतूरा अर्पित जरूर किया जाता है। मान्यता अनुसार विष से उसका शरीर गर्म हो चला था इसके चलते ही उन्हें ठंडी वस्तुएं अर्पित किए जाने का प्रचलत हुआ।
शिवजी नहीं पीते हैं भांग: कहते हैं कि समुद्र मंथन से निकले विष की बूंद गिरने से भांग और धतूरे नाम के पौधे उत्पन्न हो गए। कोई कहने लगा कि यह तो शंकरजी की प्रिय परम बूटी है। फिर लोगों ने कथा बना ली कि यह पौधा गंगा किनारे उगा था। इसलिए इसे गंगा की बहन के रूप में भी जाना गया। तभी भांग को शिव की जटा पर बसी गंगा के बगल में जगह मिली है। फिर क्या था सभी लोग भांग घोट-घोट के शंकरजी को चढ़ाने लगे। जबकि शिव महापुराण में कहीं भी नहीं लिखा है कि शंकरजी को भांग प्रिय है। हकीकत यह है कि शिवजी का कंठ जलता है तो इस कंठ की जलन को 2 वस्तुओं से रोका जा सकता है एक गाय का दूध और दूसरा भांग का लेप, लेकिन शास्त्रों में कहीं भी शिवजी के भांग, गांजा या चीलम पीने का उल्लेख नहीं मिलता है। भांग को सिर्फ दो लोग ही इस्तेमाल करते हैं एक वे जो बीमार हैं और दूसरा वे जो नशा करना चाहते हैं। शिवजी न तो बीमार है और ना ही नशा के आदि हैं।
महाशिवरात्रि पर भांग पीने का प्रचलन कब से हुआ प्रारंभ?
महाशिवरात्रि पर भांग पीने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाशिवरात्रि पर भांग पीने का मुख्य उद्देश्य शिव की भक्ति में लीन होना और ध्यान की अवस्था को प्राप्त करना माना जाता है। भक्त इसे शिवजी का प्रसाद समझकर ग्रहण करते हैं। उत्तर भारत, विशेषकर वाराणसी, मथुरा, काशी और अन्य शिव तीर्थस्थलों पर यह परंपरा अधिक लोकप्रिय है। हालांकि महाशिवरात्रि पर इसे पीने का प्रचलन कब से प्रारंभ हुआ इसकी कोई सटीक तिथि नहीं है।
भांग का सेवन कम से कम 3000-4000 साल पुराना है और वैदिक काल से चला आ रहा है। कई लोग इसे सोमवल्ली नामक औषधि मानते हैं तो कुछ काम माना है कि इसी से सोमरस बनता था। हालांकि इसका कोई प्रमाण नहीं है क्योंकि सोम नाम की लता अलग प्रकार की होती थी। संस्कृत आयुर्वेद ग्रंथों में भांग का औषधीय उपयोग दर्ज है। प्राचीन काल में इसे दर्द निवारक, अनिद्रा दूर करने, भूख बढ़ाने और अन्य औषधीय प्रयोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
भांग की खेती का सबसे पहला पुरातात्विक साक्ष्य चीन में 8000 ईसा पूर्व का है, जहाँ भांग का उपयोग रस्सी, कपड़ा और कागज बनाने के लिए किया जाता था। भांग का सबसे पहला उल्लेख वेदों में मिलता है, जो पवित्र हिंदू ग्रंथ हैं और जिनकी तारीख 4000-3000 ईसा पूर्व है। वेदों में औषधीय और धार्मिक उद्देश्यों के लिए भांग के उपयोग और सेवन के कई संदर्भ हैं। इतिहासकार मानते हैं कि चीन से भारत में भांग की खेती का प्रचलन 2800 ईसा पूर्व हुआ था।