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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

प्राचीनकाल के ये 10 महान योद्धा क्या आज भी हैं सक्रिय?

प्राचीनकाल के ये 10 महान योद्धा क्या आज भी हैं सक्रिय? - Hindu Sanatan Dharma : top ten ancient warriors
इस धरती पर दो ही मार्ग है युद्ध (कृष्ण) या बुद्ध। बुद्ध का विचार भी बगैर युद्ध के स्थापित नहीं हो सकता। युद्ध एक ऐसा धर्म है जिसकी हर काल में जरूरत रही है। जिस कौम ने युद्ध करना छोड़ दिया उसका अस्तित्व भी धीरे-धीरे मिट ही गया है। अहिंसा नहीं युद्ध होता है परमो धरम। युद्ध में ही चेतना का विकास होता है। युद्ध के मार्ग पर चलकर ही अहिंसक हुआ जा सकता है। लादी गई या संस्कारजन्य अहिंसा कायरता है।
महाभारत में तो एक से एक योद्धा था। जैसे द्रोण, कर्ण, अर्जुन, भीष्म, प्रद्युम्न, कृपाचार्य, बलराम आदि और मायावी में बर्बरिक, घटोत्कच आदि। रामायण काल में भी कई सुर और असुर योद्धा था। जैसे रावण, मेघनाद आदि और मायावी में कुंभकर्ण, मारिच आदि। लेकिन हमने ऐसे योद्धाओं को छाटा है जिनके कारण भारत का इतिहास ही बदल गया। हालांकि एक दो अपवाद छोड़ दें तो इनको पराजित करने का साहस कभी किसी में नहीं रहा।
 
हम आपको बताना चाहते हैं प्राचीन भारत के ऐसे ही महान शक्ति से संपन्न योद्धाओं के बारे में जिन्होंने अपनी शक्ति के बल पर समाज को बदल कर रख दिया। इनमें से कुछ धर्म के मार्ग पर चले तो कुछ ने अधर्म का साथ दिया। तो आओं जानते हैं उल्टे क्रम में ऐसे ही शक्तिशाली योद्धाओं के संबंध में।
 
अगले पन्ने पर नंबर 10वां शक्तिशली योद्धा...
 

देवराज इंद्र : प्राचीन काल में देव और असुर नाम से जो जाति समूह होते थे। हम जिस इन्द्र की बात कर रहे हैं वह अदिति पुत्र और शचि के पति देवराज पुरंदर हैं। उनसे पहले पांच इन्द्र और हो चुके हैं। इन इन्द्र को सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर भी कहा जाता है। क्रमश: 14 इन्द्र हो चुके हैं:- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। इंद्र देवताओं के राजा थे।
 
इंद्र के पास कई तरह के अस्थ और शस्त्र थे, लेकिन उनमें से सबसे शक्तिशाली अस्त्र वज्र था। इन्द्र मेघ और बिजली के माध्यम से अपने शत्रुओं पर प्रहार करने की क्षमता रखते थे। वैदिक काल में युद्ध-विद्या अत्यंत विकसित थी। सैनिकगण घोड़े की सवारी करते थे और धनुष-बाण उन दिनों के सर्वाधिक प्रचलित अस्त्र थे। इन्द्र नाम से वेदों में कई युद्धों और कार्यों का वर्णन मिलता है। इन्द्र तत्कालीन आर्य सभ्यता की रक्षा करने वाला एक महत्वपूर्ण नेतृत्व था। शायद यही कारण है कि विजयादशमी के पावन पर्व पर भगवान राम के साथ ही हम इन्द्र का भी स्मरण करते हैं।
 
इंद्र के कार्य : इन्द्र ने कई युद्धों का संचालन किया। वृत्रासुर को मारने और दशराज्ञ के युद्ध में भरतों को जीताने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंद्र ने भगवान ब्रह्मा से आत्मज्ञान की शिक्षा लेकर खुद को शक्तिशाली और अजर अमर बना लिया था। इंद्र के साथ उस वक्त विरोचन ने भी शिक्षा ली थी। दोनों की शिक्षा का असर अलग अलग हुआ। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कथा पढ़ने के लिए आगे क्लिक करें.. कैसे इंद्र और विरोचन के कारण दो तरह की विचारधारा अस्तित्व में आई...
 
ऋग्वेद के दसवें मंडल के सत्ताईसवें सूक्त में इन्द्र ने अपने बल तथा पराक्रम का स्वयं वर्णन किया है। उस सूक्त में उन्होंने कहा है कि वह केवल यज्ञकर्म-शून्य व्यक्तियों का ही विनाश करते हैं। कोई भी यह नहीं कह सकता कि उन्होंने कभी किसी सात्विक पुरुष का वध किया है।
 
स्वयं इन्द्र के ही शब्दों में- ''मेरी वीरता की सभी प्रशंसा करते हैं और ऋषिगणों तक ने मेरी स्तुति की है। युद्ध में कोई मुझे निरुद्ध नहीं कर सकता, पर्वतों में भी इतनी शक्ति नहीं कि वह मेरा रास्ता अवरुद्ध करने में सफल हो सकें। जब मैं शब्द करता हूं तो बहरे लोग भी कांपना शुरू कर देते हैं। जो लोग मुझे नहीं मानते और मेरे लिए अर्पित सोमरस का पान करने की घृष्ठता करते हैं उनको अपने वज्र से मैं मृत्यु के घाट उतार देता हूं।''
 
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महान राजा बालि : राजा बलि (लगभग 9078 ईसा पूर्व)। असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। भारतीय और हिन्दू इतिहास में राजा बलि की कहानी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके बाद एक नए युग की शुरुआत हुई थी। हालांकि राजा बलि फिर भी महान और शक्तिमान है और आज भी वह महान और शक्तिमान बनकर घूम रहा है।
 
 
दरअसल, वृत्र (प्रथम मेघ) के वंशज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद था और प्रहलाद का पुत्र विरोचन था और विरोचन का पुत्र बाली था। मोटे तौर पर वृत्र या मेघ ऋषि के वंशजों को मेघवंशी कहा जाता है। राजा बलि की सहायता से ही देवराज इन्द्र ने समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन से प्राप्त जब अमृत पीकर देवता अमर हो गए, तब फिर से देवासुर संग्राम छिड़ा और इन्द्र द्वारा वज्राहत होने पर बलि की मृत्यु हो गई। ऐसे में तुरंत ही शुक्राचार्य के मंत्रबल से वह पुन: जीवित हो गया। लेकिन उसके हाथ से इन्द्रलोक का बहुत बड़ा क्षेत्र जाता रहा और फिर से देवताओं का साम्राज्य स्थापित हो गया। तब बाली ने ने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या और धरती का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गया। केरल में आज भी महाबली की याद में ओणम पर्व मनाया जाता है।
 
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परशुराम : परशुराम ने महादेव से शिक्षा ली थी। वहीं से उन्हें शस्त्रों में परशु (फरसा) और अस्त्रों में दिव्य धनुष मिला था। लगभग सभी दिव्यास्त्र सिवाय प्रस्वापास्त्र और पाशुपतास्त्र के उनके वश में थे। इसके अलावा उनके पास श्रीहरि का दिया हुआ सुदर्शन चक्र भी था।
उन्होंने अत्याचारी हैहयवंशियों के विरुद्ध 21 बार युद्ध लड़ा था। उनके इस युद्ध में सभी लगभग सभी क्षत्रियों ने हैययवंशियों का साथ दिया था। लेकिन उन्होंने सभी को मौत के घाट उतार दिया था। लेकिन प्रभु श्रीराम के समक्ष समर्पण और भीष्म के समक्ष प्रस्वपास्त्र के कारण उन्हें झुकना पड़ा था। परशुराम अत्यंत कठोर प्रवृत्ति के थे। वे अपने शत्रुओं का समूश नाश करके ही दम लेते थे, लेकिन कहते हैं कि पराजितों के प्रति उनका व्यवहार भी अत्यन्त कठोर हुआ करता था। कहते हैं कि भगवान परशुराम आज भी जिंदा है।
 
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वानरराज बाली  :  वानर राज बालि किष्किंधा का राजा और सुग्रीव का बड़ा भाई था। बालि का विवाह वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा के साथ संपन्न हुआ था। तारा एक अप्सरा थी। बालि को तारा किस्मत से ही मिली थी। बालि के आगे रावण की एक नहीं चली थी, तब रावण ने क्या किया था यह अगले पन्ने पर पढ़ें।
 
 
बालि के पिता का नाम वानरश्रेष्ठ 'ऋक्ष' था। बालि के धर्मपिता देवराज इन्द्र थे। बालि का एक पु‍त्र था जिसका नाम अंगद था। बालि गदा और मल्ल युद्ध में पारंगत था। उसमें उड़ने की शक्ति भी थी। धरती पर उसे सबसे शक्तिशाली माना जाता था, लेकिन उसमें साम्राज्य विस्तार की भावना नहीं थी। वह भगवान सूर्य का उपासक और धर्मपरायण था। हालांकि उसमें दूसरे कई दुर्गुण थे जिसके चलते उसको दुख झेलना पड़ा। 
 
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अश्वत्थामा : महाभारत में योद्धा तो एक से बड़कर एक थे लेकिन अश्वत्थामा का कोई तोड़ नहीं था। यदि दुर्योधन द्रोण या कर्ण की जगह अश्‍वत्थामा को सेनापति बना देता तो आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता या फिर स्वयं कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर उसे मारना होता।
 
 
अश्‍वत्थामा सभी तरह के अस्त्र और शस्त्र में पारंगत था। उसे कोई मार भी नहीं सकता था, क्योंकि वह स्ययं रुद्रांश था। महाभारत युद्ध के बाद जीवित बचे 18 योद्धाओं में से एक अश्‍वत्थामा भी थे। अश्‍वत्थामा को श्रीकृष्ण ने 3 हजार वर्षों तक जीवित रहकर दुखभोगते रहने का शाप दिया था। कहते हैं कि वह आज भी जीवित है। लेकिन 3 हजार वर्ष तो पूर्ण हो गए हैं।
 
अश्‍वत्थामा जीवन के संघर्ष की आग में तपकर सोना बना था। महान पिता द्रोणाचार्य से उन्होंने धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था। द्रोण ने अश्‍वत्थामा को धनुर्वेद के सारे रहस्य बता दिए थे। सारे दिव्यास्त्र, आग्नेय, वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र, वायव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, ब्रह्मशिर आदि सभी उसने सिद्ध कर लिए थे। वह भी द्रोण, भीष्म, परशुराम की कोटि का धनुर्धर बन गया। कृप, अर्जुन व कर्ण भी उससे अधिक श्रेष्ठ नहीं थे। नारायणास्त्र एक ऐसा अस्त्र था ‍जिसका ज्ञान द्रोण के अलावा माभारत के अन्य किसी योद्धा को नहीं था। यह बहु‍त ही भयंकर अस्त्र था।
 
अश्‍वत्थामा के ब्रह्मतेज, वीरता, धैर्य, तितिक्षा, शस्त्रज्ञान, नीतिज्ञान, बुद्धिमत्ता के विषय में किसी को संदेह नहीं था। दोनों पक्षों के महारथी उसकी शक्ति से परिचित थे। महाभारत काल के सभी प्रमुख व्यक्ति अश्‍वत्थामा के बल, बुद्धि व शील के प्रशंसक थे। भीष्मजी रथियों व अतिरथियों की गणना करते हुए राजा दुर्योधन से अश्‍वत्थामा के बारे में उनकी प्रशंसा करते हैं किंतु वे अश्‍वत्थामा के दुर्गुण भी बताते हैं। उनके जैसा निर्भीक योद्धा कौरव पक्ष में और कोई नहीं था।
 
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5.लक्ष्मण : प्रभु श्रीराम के भाई लक्ष्मण की गणना श्रेष्ठ धनुर्धरों में की जाती है। उन्होंने महान ऋषि वसिष्ठ और अगस्त्य से शिक्षा ग्रहण की थी। उनके पास उनके मुख्‍य अस्त्र-शस्त्र धनुष और खड्ग था। उन्हें समस्त दिव्यास्त्रों का ज्ञान था।
उल्लेखनी है कि उनके दिव्य बाण में इतनी शक्ति थी कि जिसके बल पर उन्होंने एक रेख खींचकर ही सीता माता को सुरक्षित जगह दे दी थी। ऐसी शक्ति किसी अन्य योद्धा में नहीं थी। उन्हें शेषनाग का अवतार माना जाता था।
 
 
छोटे-बड़े कई युद्धों में भाग लेकर उन्हों जीत हासिल की थी। उन्होंने परशुराम को चुनौती और मेघनाद जैसे उस युग के श्रेष्ठतम योद्धा को पराजित कर उसका वध कर दिया था। लेकिन वे लव और कुश के हाथों उन्होंने पराजय को स्वीकार कर लिया था। 
 
हालांकि मेघनाद ने भी साक्षात शुक्राचार्य और शिवजी से प्रशिक्षण प्राप्त किया और वह भी महान योद्धा था उसने इंद्र को भी हरा दिया था इसीलिए उसे 'इंद्रजीत' भी कहा जाता था। हालांकि उसकी कमजोरी यह थी कि वह अपने विशिष्ट रथ पर अत्यधिक निर्भरता, अगस्त्य द्वारा बनाए गए कुछ नए दिव्यास्त्रों जैसे सूर्यास्त्र, एन्द्रास्त्र आदि से अनिभिज्ञ होना उसकी उसकी पराजय और मृत्यु का कारण बना, जबकि श्रीलक्ष्मण को सभी अस्त्र शस्त्रों का ज्ञान था।
 
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4.कार्तिकेय : भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने कई युद्धों का संचालन किया। उनके साथ महावीर वीरभद्र और नंदी भी रहते थे। शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। उन्होंने मुख्यत: तारकासुर का वध किया था। 
कार्तिकेय की पूजा मुख्यत: दक्षिण भारत में होती है। अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं, ये उनके प्रमुख देवता हैं। उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षे‍त्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है।
 
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3.श्रीहनुमानजी:- हनुमानजी भगवान शिव का अंशावतार हैं। उन्होंने मरुद्गणों और विवस्वान अर्थात भगवान सूर्य से (आकाश के सूर्य नहीं बल्कि देव जाति के एक देव सूर्य द्वारा) प्रशिक्षण लिया था। 
गदा और परिघ विशेष प्रिय विवस्वान को अपनी बहुत कम आयु में पराजित कर बंदी बना लिया और यहां तक कि श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के समय एक विरोधी राजा के समर्थन में उतरे महादेव शिव को कार्तिकेय, गणेश और वीरभद्र आदि गणों सहित अकेले पराजित कर दिया था।
उन्होंने मेघनाद, कुंभकर्ण, रावण, इंद्र और यहां तक कि स्वयं श्रीराम का भी सफलता पूर्वक बराबरी से सामना किया था। उन्होंने हमेशा पराजितों के प्रति गरिमापूर्ण व्यवहार किया। उनमें किसी भी प्रकार की कोई कमजोरी नहीं है। वे दिव्यास्त्रों का प्रतिरोध करने में प्रवीण अर्थात उनसे बचाव के तरीकों में माहिर थे और उन्होंने कपीन्द्रास्त्र नाम के एक दिव्यास्त्र का विकास भी किया था।
 
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2. प्रभु श्रीराम : भगवान श्रीराम ने वसिष्ठ, विश्वामित्र और अगस्त्य से प्रशिक्षण लिया था। उन्हें समस्त दिव्यास्त्रों का ज्ञान और स्वयं भी एक नए दिव्यास्त्र 'रामास्त्र' का निर्माण किया था। उनका मुख्‍य आयुध धनुष और खड्ग है। गीता में श्रीकृष्ण ने इन्हें शस्त्र धारियों में सर्वश्रेष्ठ कहा है।
 
उन्होंन कई असुरों का वध किया और कई राजाओं से युद्ध लड़ा। कई युद्धों के विजेता रहे श्रीराम का विशेषतः रावण के विरुद्ध युद्ध सबसे महत्वपूर्ण था। हालांकि कहते हैं कि एक बार उनका युद्ध शिव और हनुमान से भी हुआ था। हनुमान के विरुद्ध यह युद्ध टाइ रहा।

अंत में पहला शक्तिशाली योद्धा...
 

1.प्रभु श्रीकृष्ण : उन्होंने प्ररम्भ में स्वयं ही प्रशिक्षण लिया और उन्होंने खुद ही एक विद्या का विकास किया जिसे कालारिप्टू कहते है जो बाद में मार्शल आर्ट और कुंगफू के रूप में विकसित हुई। उन्होंने गोपों को प्रशिक्षित कर नारायणी सेना का निर्माण किया था जो उस काल में दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना थी।
 
बाद में उन्होंने दिव्यास्त्रों का प्रशिक्षण क्रमशः सांदीपनि और परशुराम से लिया था। परशुराम ने उन्हें सुदर्शन चक्र दिया था। उन्हें ज्ञात विश्व के समस्त दिव्यास्त्रों का ज्ञान था। उनके पास मुख्‍य अस्त्र और शस्त्रों में चक्र, धनुष, खड़ग और गदा थी। विश्व में शिव के अतिरिक्त व्यक्ति जिन्हें 'वैष्णव ज्वर' (Bio-weapons) का भी ज्ञान था। वे सभी कलाओं और विद्याओं में पूर्ण थे। इसीलिए उन्हें पूर्णावतार भी कहा जाता है।
 
वे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर भी थे जैसा कि मद्र राजकुमारी लक्ष्मणा के स्वयंवर में प्रमाणित हुआ जहां अर्जुन भी फेल हो गए। उनका संपूर्ण जीव युद्ध युद्ध और सिर्फ युद्ध में ही व्यतीत हुआ। उन्होंने महादेव शिव तक को पराजित किया और अकेले ही इन्द्र सहित समस्त देव सेना को परास्त कर दिया था। जो उनके जीवन के को रासलीला की बात करते हैं उन्होंने कभी महाभारत पढ़ी ही नहीं और वे सभी श्रीकृष्ण के भक्त नहीं शत्रु हैं। श्रीकृष्ण जैसा योद्धा कभी इस धरती पर नहीं हुआ और न होगा।
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