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Kashi Manikarnika Ghat: काशी (वाराणसी/बनारस) को मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है, जहाँ गंगा तट पर स्थित मणिकर्णिका घाट पर जीवन और मृत्यु का संगम सदियों से होता रहा है। यह महाश्मशान, जहाँ राजा हरिशचंद्र के समय से अंतिम संस्कार की अग्नि निरंतर धधक रही है, हाल ही में सोशल मीडिया पर एक रहस्यमय परंपरा के कारण चर्चा में आया है। Quora और Instagram पर लाखों यूजर्स यह सवाल पूछ रहे हैं: दाह संस्कार के बाद चिता की राख पर '94' क्यों लिखा जाता है?
चिता की राख पर 94 लिखने की परंपरा:
क्वेरा पर सवाल उठा है- राख पर '94' क्यों लिखा जाता है? इसका क्या अर्थ है?
एक इंस्टाग्राम पोस्ट ने इस बहस को और हवा दे दी है, जहां लाखों यूजर्स आश्चर्य और जिज्ञासा से भरे सवाल पूछ रहे हैं।
मणिकर्णिका घाट काशी का एक प्रमुख श्मशान घाट है, जहां दावे के अनुसार हिंदू मान्यताओं का हवाला देकर दाह संस्कार के बाद जब चिता ठंडी हो जाती है और राख को गंगा में विसर्जन के लिए तैयार किया जाता है, तब पुजारी या स्थानीय लोग इस राख पर बड़े ही सावधानी से संख्या '94' लिख देते हैं। यह परंपरा घाट के आसपास रहने वाले स्थानीय लोगों के लिए तो आम है, लेकिन बाहरी लोग अक्सर इसे नजरअंदाज कर देते हैं।
क्या है '94' का रहस्य?
स्थानीय लोगों ने प्राचीन परंपरा का हवाला देते हुए बताया कि गीता में कहा गया है कि मृत्यु के बाद मन पांच इंद्रियों को अपने साथ ले जाता है। इसका अर्थ है कि मन सहित यह संख्या कुल 6 हो जाती है। हिंदू दर्शन के अनुसार, मनुष्य के जीवन में कुल 100 कर्म होते हैं, जो उसके जीवन और परलोक को प्रभावित करते हैं। इनमें से 94 कर्म मानव के नियंत्रण में होते हैं- ये नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कार्य हैं, जो व्यक्ति की जिंदगी को परिभाषित करते हैं। बाकी 6 कर्म- जीवन, मृत्यु, यश, अपयश, लाभ और हानि- ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के हाथों में होते हैं, जो मानव के वश से बाहर हैं।
दाह संस्कार के दौरान चिता की ज्वाला इन 94 नियंत्रणीय कर्मों को जलाकर भस्म कर देती है, जो मोक्ष की ओर एक प्रतीकात्मक यात्रा का संकेत देता है। राख पर '94' लिखना इस प्रक्रिया का हिस्सा है, जो कहता है कि सांसारिक बंधनों से मुक्ति हो गई है। बाकी 6 कर्म ईश्वरीय इच्छा पर छोड़ दिए जाते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार, '94' स्वयं एक मुक्ति मंत्र है, जो मोक्ष की कामना करता है। इसके बाद पुजारी पानी से भरी मटकी तोड़कर विदाई देते हैं, जो दुनिया से संबंधों के अंत का प्रतीक है। काशी के स्थानीय लोग इसे एक मौन संदेश मानते हैं: "तुमने इस जन्म में जो कर सका, कर लिया। बाकी ईश्वर के हाथ में है।" भगवद्गीता जैसे ग्रंथों में भी मृत्यु के बाद मन और इंद्रियों की भूमिका का वर्णन है, जो इस परंपरा को और मजबूत बनाता है।
फैक्ट चेक: परंपरा बनाम शास्त्रार्थ प्रमाण
'94' लिखने की परंपरा:- (सत्य- प्रचलित): काशी के मणिकर्णिका घाट पर राख पर '94' लिखने की स्थानीय परंपरा निश्चित रूप से मौजूद है और कई सूत्रों द्वारा इसकी पुष्टि होती है।
'100 कर्म' का सिद्धांत:- (मान्यता-आधारित शास्त्रीय नहीं): मनुष्य के कर्मों को 94 और 6 के दो वर्गों में विभाजित करने का सिद्धांत किसी भी प्राथमिक हिंदू शास्त्र (जैसे वेद, उपनिषद, या भगवद्गीता) में सीधे तौर पर नहीं मिलता है। यह व्याख्या स्थानीय परंपरावादियों और विद्वानों द्वारा हिंदू कर्म सिद्धांत पर आधारित है।
गीता का 'मुक्ति मंत्र' (भ्रामक/मनगढ़ंत): भगवद्गीता जैसे ग्रंथों में कर्म (संचित, प्रारब्ध, क्रियमाण) और पुनर्जन्म के चक्र का वर्णन ज़रूर है, लेकिन किसी भी श्लोक में '94' संख्या का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इसे 'मुक्ति मंत्र' घोषित करने का दावा लोगों की अपनी धारणा है, जिसका कोई सीधा शास्त्रीय आधार नहीं है।
मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख पर '94' लिखने की परंपरा स्थानीय रूप से प्रचलित और सत्य है, लेकिन इस संख्या के पीछे का कारण ('100 कर्म' का गणित) एक स्थापित शास्त्रीय तथ्य नहीं होकर, स्थानीय धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है।