Dev Diwali 2024: देव दिवाली का महापर्व 15 नवंबर 2024 शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस त्योहार को खासकर नदी के तट पर मनाया जाता है, क्योंकि देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन वाराणसी में गंगा के तट पर एकत्रित होकर शिवजी द्वारा त्रिपुरासुर के वध की खुशी में देव दिवाली मनाई थी। यही कारण है कि वाराणसी, हरिद्वार और प्रयाग में देव दिवाली का उत्सव धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन नदी में जलते हुए दीयों को प्रदोषकारल में प्रवाहित करने की परंपरा है।
देव दिवाली पर दीपदान का समय: वाराणसी शहर में इस भव्य दीपोत्सव में भाग लेने के लिए अभी से ही तीर्थयात्रियों का तांता लगा रहा है जो प्रसिद्ध दीपदान समारोह सहित उत्सवों में भाग लेंगे। भक्त हजारों दीये जलाएंगे और उन्हें नदी में प्रवाहित करेंगे, जिससे पानी पर रोशनी की झलक का एक मनमोहक दृश्य बनेगा। 15 नवंबर को शाम 5:10 बजे से 7:47 बजे तक प्रदोष काल देव दीपावली मुहूर्त, प्रार्थना और अनुष्ठान करने के लिए सबसे शुभ समय माना जाता है, खासकर उन लोगों के लिए जो व्रत रखते हैं और दीपदान में भाग लेते हैं।
मणिकर्णिका घाट पर स्नान और दीपदान का महत्व: काशी को वाराणसी और बनारस भी कहते हैं। यहां के घाट बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध हैं। यहां पर मणिकर्णिका घाट के साथ ही गंगा घाट, दशाश्वमेघ घाट, अस्सी घाट सहित कई ऐतिहासिक घाट देखने लायक हैं। अस्सी घाट की गंगा आरती को देखने दूर दूर से लोग आते हैं। यहां पर कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी अर्थात बैकुंठ चतुर्दशी, कार्तिक और वैशाख माह में स्नान करने का खासा महत्व है। इस दिन घाट पर स्नान करने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती। गंगा नदी या अन्य नदी में स्नान का समय प्रात: काल 04:58 से 06:44 के बीच रहेगा।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव पूजा विधि:
1. प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
3. उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित कर उनका जलाभिषेक करें।
4. फिर शिवलिंग पर दूध, फूल, धतूरा आदि चढ़ाएं। मंत्रोच्चार सहित शिव को सुपारी, पंच अमृत, नारियल एवं बेल की पत्तियां चढ़ाएं। माता पार्वती जी को सोलह श्रृंगार की चीजें चढ़ाएं।
5. इसके बाद उनके समक्ष धूप, तिल के तेल का दीप और अगरबत्ती जलाएं।
6. इसके बाद ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।
7. पूजा के अंत में शिव चालीसा और शिव आरती का पाठ करें।
8. पूजा समाप्त होते ही प्रसाद का वितरण करें।
9. शिव पूजा के बाद त्रिपुरासुर वध की कथा सुननी आवश्यक है।
10. व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए।
11. दिन में दो बार (सुबह और सायं) भगवान शिव की प्रार्थना करें।
12. संध्याकाल में पूजा समाप्ति के बाद व्रत खोलें और सामान्य भोजन करें।