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Last Modified: गुरुवार, 30 दिसंबर 2021 (18:15 IST)

मथुरा में किसने तोड़ा था कृष्‍ण जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर, जानिए इतिहास 15 पॉइंट में

मथुरा में किसने तोड़ा था कृष्‍ण जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर, जानिए इतिहास 15 पॉइंट में - History of Krishna Janmabhoomi
अयोध्या में मंदिर निर्माण और काशी में कॉरिडोर के निर्माण के बाद अब मथुरा में कृष्‍ण जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण की बात चल रही है। प्राचीन काल में कृष्‍ण जन्मभूमि पर मंदिर कैसे और किसने बनाया था और बाद में किसने उसे तोड़ दिया जानिए संपूर्ण जानकारी 15 पॉइंट में।
 
 
1. व्रजनाभ ने बनाया सबसे पहले मंदिर : लोक कथाओं और जनश्रुतियों के अनुसार श्रीकृष्‍ण के प्रपौत्र व्रजनाभ ने ही सर्वप्रथम उनकी स्मृति में केशवदेव मंदिर की स्थापना की थी।
 
2. वसु ने बनाया पुन: मंदिर : इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के ब्राह्मी लिपि के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी 'वसु' नामक व्यक्ति ने 80-57 ईसा पूर्व इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
 
3. विक्रमादित्य ने कराया पुनर्निर्माण : काल के थपेड़ों ने मंदिर की स्थिति खराब बना दी थी। करीब 400 साल बाद गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उसी स्थान पर भव्य मंदिर बनवाया। इसका वर्णन भारत यात्रा पर आए चीनी यात्रियों फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी किया है।
 
4. महमूद गजनवी ने तुड़वा दिया मंदिर : विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गए इस मंदिर को ईस्वी सन् 1017-18 में महमूद गजनवी ने कृष्ण मंदिर सहित मथुरा के समस्त मंदिर तुड़वा दिए थे, लेकिन उसके लौटते ही मंदिर बन गए। गजनवी के मीर मुंशी अल उत्वी ने अपनी पुस्तक तारीखे यामिनी में लिखा है कि गनजवी ने मंदिर की भव्यता देखकर कहा था कि इस मंदिर के बारे में शब्दों या चित्रों से बखान करना नामुमकिन है। उसका अनुमान था कि वैसा भव्य मंदिर बनाने में दस करोड़ दीनार खर्च करने होंगे और इसमें दो सौ साल लगेंगे।
 
5. जज्ज नामक व्यक्ति ने फिर बनवाया मंदिर : ऐसा कहा जाता है कि गजनवी के द्वरा तुड़वाए गए मंदिर के बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। 
 
6. सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा दिया था मंदिर : जज्ज द्वरा बनवाया गया यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था, जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला।
 
7. अकबर की सेना पहुंची मथुरा को नष्‍ट करने : मथुरा के चौबे की हवेली के पास ही खंडहर था, भगवान कृष्ण की जन्मभूमि का। यह पूरा इलाका कटरा केशवदेव कहलाता था। हिन्दू तीर्थयात्री आते थे। श्रद्धालुओं को प्रतिदिन खंडहर की परिक्रमा-पूजा करते थे। बाद में बंगाल विजय करके मानसिंह जब लौटटा तो अकबर ने मानसिंह को मथुरा और वृंदावन का क्षेत्र सौंप दिया। जब चौबे ने जन्मभू‍मि पर एक चबूतरा बना दिया। लोग आने लगे और धीरे धीरे यह चौबे के समर्थक बढ़ गए। शहर काजी ने इसकी शिकायत अकबर से की। अकबर की सेना मथुरा पहुंच गई तो सभी गुर्जर, जाट, अहीर, गडरिये और राजपूत एक हो गए। कछवाहा सरदार ने संदेश भेजा की यदि एक भी हिन्दू को हाथ लगाया तो सभी की कब्रें यही बना देंगे। मुगल सेना लौट गई। बाद में अकबर ने चौबे का कत्ल करवा दिया।
 
8. ओरछा के राजा ने बनवाया पुन: भव्य मंदिर : ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जू देव बुन्देला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था।
Lord Krishna Worship
9. बहुत भव्य था बुन्देला का यह मंदिर : फ्रांसीसी यात्री टैबरनियर 17वीं सदी में भारत आया था और उसने अपने वृत्तांतों में मंदिर की भव्यता का जिक्र किया है। इतालवी सैलानी मनूची के अनुसार केशवदेव मंदिर का स्वर्णाच्छादित शिखर इतना ऊंचा था कि दीपावली की रात उस पर जले दीपकों का प्रकाश 18 कोस दूर स्थित आगरा में भी दिखता था।
 
10. औरंगजेब ने तुड़वाया यह भव्य मंदिर : सन् 1192 में पृथ्वीराज चौहान की पराजय के साथ भारत में मुसलमानी राज्य स्थाई रूप से जम गया। उत्तर भारत में मंदिर टूटने लगे और फिर बनवाए न जा सके। उनके स्थान पर मकबरे-मस्जिदें बना दी गईं। कई बार बने और टूटे इस मंदिर पर अंतिम प्रहार औरंगजेब ने किया। 
 
11. मंदिर को नष्ट कर बना दी ईदगाह : 1669 ईस्वी में इस भव्य मंदिर को नष्ट करके इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी गई, जो कि आज भी विद्यमान है।
 
12. पटनीमल राजा : ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने ईदगाह के पीछे की जगह को खरीद लिया। इसी जगह पर महामना मदनमोहन मालवीय 1940 में आए तो इस जगह को देखकर निराश हुए। इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए वे भी इसे देखकर निराश हुए।
 
13. बिड़लाजी: मालवीयजी की इच्छा के चलते बिड़लाजी ने 7 फरवरी 1944 को कटरा केशवदेव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया।  परंतु कुछ समय बाद ही मालवीय का देहांत हो गया। फिर बिड़लाजी ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। हाईकोर्ट के फैसले के बाद ट्रस्ट ने 1953 में मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया।
 
14. मंदिर का लोकार्पण : इसके बाद 1958 में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिर का लोकार्पण हुआ। इसके बाद यहां गर्भगृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ। बाद में ट्रस्ट ने औषधालय, विश्रामगृह तथा भागवत भवन का भी निर्माण कराया। कहते हैं कि अब जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर है। 
 
15. नमाज के विरोध में याचिका: हाल ही में उत्तर प्रदेश के मथुरा की अदालत में विवादित शाही ईदगाह मस्जिद में होने वाली नमाज के विरोध में याचिका दाखिल करते हुए उस पर रोक लगाने की मांग की गई गई है। ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के परिसर में स्थित है। इसके साथ ही ईदगाह मस्जिद के बगल से जाने वाली सड़क पर भी नमाज पढ़ने से रोकने की मांग की गई है। याचिका में वर्ष 1920 में चले एक मुकदमे का हवाला भी दिया गया है, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट रूप से ईदगाह की इस भूमि को हिन्दुओं की बताई गई है। याचिका के मुताबिक, “अभी भी ईदगाह मस्जिद की दिवारों पर ॐ, शेषनाग, स्वास्तिक जैसे हिंदुओं के धार्मिक चिह्न मौजूद हैं। साल 1669 में इसे क्रूर आक्रांता औरंगजेब ने उक्त संपत्ति पर बने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया था। 
 
(एजेंसी से इनपुट)