अमरनाथ गुफा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। इसके बारे में बहुत भ्रम फैलाया जाता है। आजकल बाबा अमरनाथ को 'बर्फानी बाबा' कहकर प्रचारित करने का चलन भी चल रहा है। इसी तरह धर्म का बिगाड़ होता है। असल में यह अमरेश्वर महादेव का स्थान है। प्राचीनकाल में इसे 'अमरेश्वर' कहा जाता था। यह बहुत ही गलत धारणा फैलाई गई है कि इस गुफा को पहली बार किसी मुस्लिम ने 18वीं-19वीं शताब्दी में खोज निकाला था। वह गुज्जर समाज का एक गडरिया था, जिसे बूटा मलिक कहा जाता है। क्या गडरिया इतनी ऊंचाई पर, जहां ऑक्सीजन नहीं के बराबर रहती है, वहां अपनी बकरियों को चराने ले गया था?
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स्थानीय इतिहासकार मानते हैं कि 1869 के ग्रीष्मकाल में गुफा की फिर से खोज की गई और पवित्र गुफा की पहली औपचारिक तीर्थयात्रा 3 साल बाद 1872 में आयोजित की गई थी। इस तीर्थयात्रा में मलिक भी साथ थे।
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एक अंग्रेज लेखक लारेंस अपनी पुस्तक 'वैली ऑफ कश्मीर' में लिखते हैं कि पहले मट्टन के कश्मीरी ब्राह्मण अमरनाथ के तीर्थयात्रियों की यात्रा कराते थे। बाद में बटकुट में मलिकों ने यह जिम्मेदारी संभाल ली, क्योंकि मार्ग को बनाए रखना और गाइड के रूप में कार्य करना उनकी जिम्मेदारी थी। वे ही बीमारों, वृद्धों की सहायता करते और उन्हें अमरनाथ के दर्शन कराते थे इसलिए मलिकों ने यात्रा कराने की जिम्मेदारी संभाल ली। इन्हें मौसम की जानकारी भी होती थी। आज भी चौथाई चढ़ावा इस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है।
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दरअसल, मध्यकाल में कश्मीर घाटी पर विदेशी ईरानी और तुर्क आक्रमणों के चलते वहां अशांति और भय का वातावरण फैल गया जिसके चलते वहां से हिन्दुओं ने पलायन कर दिया। पहलगांव को विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने सबसे पहले इसलिए निशाना बनाया, क्योंकि इस गांव की ऐतिहासिकता और इसकी प्रसिद्धि इसराइल तक थी। भारतीय मान्यता अनुसार यहीं पर सर्वप्रथम यहूदियों का एक कबीला आकर बस गया था।
इस हिल स्टेशन पर हिन्दू और बौद्धों के कई मठ थे, जहां लोग ध्यान करते थे। ऐसा एक शोध हुआ है कि इसी पहलगांव में ही मूसा और ईसा ने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे। बाद में उनको श्रीनगर के पास रौजाबल में दफना दिया गया।
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पहलगांव का अर्थ होता है गड़रिए का गांव। ऐसे में जब आक्रमण हुआ तो 14वीं शताब्दी के मध्य से लगभग 300 वर्ष की अवधि के लिए अमरनाथ यात्रा बाधित रही। कश्मीर के शासकों में से एक था 'जैनुलबुद्दीन' (1420-70 ईस्वी), उसने अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। फिर 18वीं सदी में फिर से शुरू की गई। वर्ष 1991 से 95 के दौरान आतंकी हमलों की आशंका के चलते इसे इस यात्रा को स्थगित कर दिया गया था।
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यह भी जनश्रुति है कि मुगल काल में जब कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम किया जा रहा था तो पंडितों ने अमनाथ के यहां प्रार्थना की थी। उस दौरान वहां से आकाशवाणी हुई थी कि आप सभी लोग सिख गुरु से मदद मांगने के लिए जाएं। संभवत: वे हरगोविंद सिंहजी महाराज थे। उससे पहले अर्जुन देवजी थे। अर्जुन देवजी से लेकर गुरु गोविंद सिंहजी तक सभी गुरुओं ने मुगलिया आतंक से भारत की रक्षा की थी।
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पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई। उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। जगत के प्राणियों की रक्षा के उद्देश्य से ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया। उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और बर्फानी शिवलिंग को देखा। मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना का प्रमुख देवस्थान बन गया और अनगिनत तीर्थयात्री शिव के अद्भुत स्वरूप के दर्शन के लिए इस दुर्गम यात्रा की सभी कष्ट और पीड़ाओं को सहन कर लेते हैं। यहां आकर वह शाश्वत और अनंत अध्यात्मिक सुख को पाते हैं।
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कितनी प्राचीन गुफा? :
जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से करीब 141 किलोमीटर दूर 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा को पुरातत्व विभाग वाले 5 हजार वर्ष पुराना मानते हैं अर्थात महाभारत काल में यह गुफा थी। लेकिन उनका यह आकलन गलत हो सकता है, क्योंकि सवाल यह उठता है कि जब 5 हजार वर्ष पूर्व गुफा थी तो उसके पूर्व क्या गुफा नहीं थी?....हिमालय के प्राचीन पहाड़ों को लाखों वर्ष पुराना माना जाता है। उनमें कोई गुफा बनाई गई होगी तो वह हिमयुग के दौरान ही बनाई गई होगी अर्थात आज से 12 से 13 हजार वर्ष पूर्व।
पुराण के अनुसार काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। और कैलाश को जो जाता है, वह मोक्ष पाता है। पुराण कब लिखे गए? कुछ महाभारतकाल में और कुछ बौद्धकाल में। तब पुराणों में इस तीर्थ का जिक्र है। इसके बाद ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की 'राजतरंगिनी तरंग द्वितीय' में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वीं) शिव के भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा करने जाते थे। बर्फ का शिवलिंग कश्मीर को छोड़कर विश्व में कहीं भी नहीं मिलता।
इस उल्लेख से पता चलता है कि यह तीर्थ कितना पुराना है। पहले के तीर्थ में साधु-संत और कुछ विशिष्ट लोगों के अलावा घरबार छोड़कर तीर्थयात्रा पर निकले लोग ही जा पाते थे, क्योंकि यात्रा का कोई सुगम साधन नहीं था इसलिए कुछ ही लोग दुर्गम स्थानों की तीर्थयात्रा कर पाते थे।
बृंगेश संहिता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में अमरनाथ तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख है, जहां तीर्थयात्रियों को अमरनाथ गुफा की ओर जाते समय धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते थे। उनमें अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी (2,811 मीटर), सुशरामनगर (शेषनाग, 3454 मीटर), पंचतरंगिनी (पंचतरणी, 3,845 मीटर) और अमरावती शामिल हैं।