हिन्दू मंदिर की तर्ज पर बना है पुराना और नया संसद भवन, जानिए रहस्य
New Parliament House of India : हाल ही में भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन होने वाला है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन हिन्दू मंदिर की तर्ज पर बना है पुराना और नया संसद भवन। यानी उन दो मंदिरों की संरचना और स्थापत्य कला से प्रेरित होकर ही दोनों संसद भवन का निर्माण किया गया है। अब सवाल यह उठता है कि वह कौनसे मंदिर है और इसमें कितनी सचाई है?
पुराना संसद भवन : जानकारों का कहना है कि मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में मितावली नामक स्थान पर चौसठ योगिनी का प्राचीन मंदिर स्थित है। माना जाता है कि इसी मंदिर से प्रेरित होकर ही पुरान संसद भवन बनाया गया था। यह स्थान ग्वालियर से करीब 30 किलोमीटर दूर है। मध्यप्रदेश में एक मुरैना जिले के थाना थाना रिठौराकलां में ग्राम पंचायत मितावली में है। इसे 'इकंतेश्वर महादेव मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है।
वृत्ताकार बने इस मंदिर में 64 कक्ष है। हर कमरे में एक-एक शिवलिंग बना हुआ है। मंदिर के मध्य में एक खुला हुआ मण्डप है, जिसमें एक विशाल शिवलिंग है। करीब 200 सीढ़ियां चढ़ने के बाद चौसठ योगिनी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। 101 खंभों पर टिके इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है।
कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण क्षत्रिय राजाओं ने 1323 में किया गया था। इससे ही प्रेरित होकर 1920 में भारतीय संसद का निर्माण हुआ था। ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने इस मंदिर को देखने के बाद इसी को आधार बनाकर संसद भवन का निर्माण करवाया था। हालांकि इसकी चर्चा उन्होंने कभी नहीं की। मंदिर न केवल बहार से संसद भवन से मिलता जुलता है बल्कि अंदर भी खंभों का वैसा ही ढाँचा है। तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर में शिव की योगिनियों को जागृत किया जाता था। ये सभी चौसठ योगिनी माता आदिशक्ति काली का अवतार हैं।
नया संसद : पुराने संसद भवन की तरह ही नए संसद भवन का निर्माण भी एक हिन्दू मंदिर की तर्ज पर ही हुआ है। यह हिन्दू मंदिर भी मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में स्थित है। इस त्रिभुजाकार मंदिर का नाम है विजय मंदिर। इस मंदिर को चालुक्य वंश ने 11वीं सदी में बनाया। इसे भी राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
विजय मंदिर के आकार को ऊपर से देखने पर इसके और नए संसद की इमारत का आकार एक जैसा ही दिखाई देता है। कहते हैं कि चालुक्य वंश राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने अपनी विदिशा विजय को चिरस्थाई बनाने के लिए यह विजय मंदिर बनवाया था। नृपति के सूर्यवंशी होने के कारण इसे भेल्लिस्वामिन नाम दिया गया था जिसका अर्थ सूर्य का मंदिर होता है। इस भेल्लिस्वामिन नाम से ही इस स्थान का नाम पहले भेलसानी और कालांतर में भेलसा पड़ा।
परमार राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। परमार राजाओं के द्वारा कराए गए पुन: निर्माण के बाद इसकी प्रसिद्धि और भव्यता के कारण से इल्तुतमिश से लेकर मुगल शासक औरंगजेब तक ने इसे बार बार ध्वस्त किया। औरंगजेब की सेना ने मंदिर में बहुत तोड़फोड़ की और लुटपाट मचाई थी और इसके बाद तोपों से मंदिर को उड़ा दिया गया था। इसके बाद मराठा शासकों ने इसका जिर्णोद्धार कराया था।
उल्लेखनीय है कि सन् 1024 में महमूद गजनी के साथ आए इतिहासकार अलबरूनी ने सर्वप्रथम इसका उल्लेख किया था। कहते हैं कि यह मंदिर आधा मील लंबा और चौड़ा था तथा इसकी ऊंचाई करीब 105 गज थी। एक संस्कृत का अभिलेख अनुसार यह मंदिर चर्चिका देवी का था, जिसका दूसरा नाम विजया था, जिसके नाम से इसे विजय मंदिर के रूप से जाना जाता रहा। यह नाम बीजा मंडल के रूप में आज भी प्रसिद्ध है।