पुराणों के बारे में बहुत भ्रम फैला हुआ है और इसका कुछ लोग विरोध भी करते हैं। दरअसल अंग्रेजी के मिथ शब्द के कारण बहुत भ्रांतियां फैली और इसी शब्द के कारण पुराणों को अप्रमाणिक मान लिए जाने का प्रचलन चला। संपूर्ण पुराणों के पढ़े और उन्हें समझे बगैर उस पर कुछ कहना सही नहीं। यह सही है कि वक्त से साथ भाषा बदली तो पुराणों में कुछ बदलाव भी हुआ होगा।
18 है पुराण : पुराणों की संख्या मुख्यत: अट्ठारह बताई गई है:- विष्णु, पद्म, ब्रह्म, शिव, भागवत, नारद, मार्कंडेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़, ब्रह्मांड और भविष्य।
इसे इस तरह समझे: ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण (वायु पुराण), भागवत पुराण, (देवीभागवत पुराण), नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिङ्ग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण।
पुराणों के प्रकार उपपुराण : गणेश पुराण, नृसिंह पुराण, कल्कि पुराण, एकाम्र पुराण, कपिल पुराण, दत्त पुराण, श्रीविष्णुधर्मोत्तर पुराण, मुद्गगल पुराण, सनत्कुमार पुराण, शिवधर्म पुराण, आचार्य पुराण, मानव पुराण, उश्ना पुराण, वरुण पुराण, कालिका पुराण, महेश्वर पुराण, साम्ब पुराण, सौर पुराण, पराशर पुराण, मरीच पुराण और भार्गव पुराण। हरिवंश पुराण, सौरपुराण और प्रज्ञा पुराण भी शामिल हैं।
पुराणों की 10 खास बातें :
1. पुराण का अर्थ : पुराण शब्द 'पुरा' एवं 'अण शब्दों की संधि से बना है। पुरा का अथ है- 'पुराना' अथवा 'प्राचीन' और अण का अर्थ होता है कहना या बतलाना। पुराण का शाब्दिक अर्थ है- प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुराणों में दर्ज है प्राचीन भारत का इतिहास।
2. पुराण के पांच लक्षण :-
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वंतराणि च ।
वंशानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम् ॥
पुराणों के पांच लक्षण माने गए हैं:- 1.सर्ग (सृष्टि), 2.प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म), 2.वंश (देवता व ऋषि सूचियां), 3.मन्वन्तर (चौदह मनु के काल), और 5. वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित)।
3. स्मृति ग्रंथ है पुराण : वेद हिन्दुओं के एकमात्र धर्मग्रंथ हैं, जिन्हें श्रुति कहा गया है और पुराण हिन्दुओं के प्राचीन काल का इतिहास है, जिन्हें स्मृति ग्रंथ कहा गया है। सारे ही पुराण वेद व्यासजी ने नहीं लिखें हैं कुछ पुराण ऋषि पराशर सहित अन्य ऋषियों ने भी लिखे हैं।
4. भविष्य और कल्कि पुराण : उक्त दोनों की पुराणों में मध्यकाल से ही विवाद रहा है। भविष्य पुराण में कलिकाल के राजाओं में मगध के मौर्य राजाओं तथा गुप्तवंश के राजाओं के होने का उल्लेख मिलता है और आगे विक्टोरिया राज के होने तक की भविष्यवाणी मिलती है, तो इससे सिद्ध होता है कि या तो इन पुराणों में इनकी वंशावली जोड़ी गई या ये पुराण इसी काल में लिखे गए होंगे। विष्णु पुराण में भी 'भविष्य राजवंश' के अंतर्गत गुप्तवंश के राजाओं तक का उल्लेख है।
जावा के पास बाली टापू पर हिंदुओं के पास एक ब्रह्मांड पुराण मिला है। इन हिंदुओं के पूर्वज ईसा की पांचवी शताब्दी में भारतवर्ष में पूर्व के द्वीपों में जाकर बसे थे। बालीवाले ब्रह्मा़डपुराण में 'भविष्य राजवंश प्रकरण' नहीं है उसमें जनमेजय के प्रपौत्र अधिसीमकृष्ण तक का नाम पाया जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि विष्णु पुराण में बाद के राजवंशों की वंशावली को जोड़ा गया होगा, लेकिन यह तो तय हो गया ही उसका बाकी हिस्सा प्राचीन है अर्थात महाभारत काल का ही है।
5. सबसे प्राचीन पुराण : शोधकर्ता पुराणों में सबसे पुराने पुराण ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण को मानते हैं क्योंकि पुराण के पांचों लक्षण भी उस पर ठीक बैठते हैं। इन पुराणों के बाद मत्स्य पुराण, स्कंद और वराह पुराण की प्रतिष्ठा है। फिर शिव और देवीभागवत पुराण। कुछ लोगों का कहना है कि वायुपुराण ही शिवपुराण है।
6. पहले एक ही महापुराण था : मत्स्यपुराण में स्पष्ट लिखा है कि पहले पुराण एक ही था, उसी से 18 पुराण हुए (53/4)। शिवपुराण के अंतर्गत रेवा माहात्म्य में लिखा है कि अठारहों पुराणों के वक्ता मत्यवतीसुत व्यास हैं।
ब्राह्मांड पुराण में लिखा है कि वेदव्यास ने एक पुराणसंहिता का संकलन किया था। इसके आगे की बात का पता विष्णु पुराण से लगता है। उसमें लिखा है कि व्यास का एक रोम हर्षण नाम का शिष्य था जो सूति जाति का था। व्यासजी ने अपनी पुराण संहिता उसी के हाथ में दी। रोम हर्षण के छह शिष्य थे- सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णी। इनमें से अकृत- व्रण, सावर्णी और शांशपायन ने रोम हर्षण से पढ़ी हुई पुराणसंहिता के आधार पर और एक एक संहिता बनाई। वेदव्यास ने जिस प्रकार मंत्रों का संग्रहकर उनका संहिताओं में विभाग किया उसी प्रकार पुराण के नाम से चले आते हुए वृत्तों का संग्रह कर पुराणसंहिता का संकलन किया। उसी एक संहिता को लेकर सुत के चेलों के तीन और संहीताएं बनाई। इन्हीं संहिताओं के आधार पर अठारह पुराण बने होंगे।
हालांकि यह तो तथ्य सिद्ध है कि पुराणों की रचना महाभारत काल में पराशर मुनी, उनके पुत्र वेद व्यास और उनके शिष्यों पैल, जैमिन, वैशम्पायन, सुमन्तमुनि और रोम हर्षण ने मिलकर की थी। उसके बाद शिष्यों की परंपरा ने उस वेद और पुराण के ज्ञात के बौद्धकाल तक जिंदा बनाए रखा।
7. श्रीमद्भागवत पुराण का सबसे ज्यादा प्रचार : पुराणों में श्रीमद्भागवत पुराण का ही प्रचार सबसे अधिक है क्योंकि उसमें भक्ति के माहात्म्य और श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तृत वर्णन है। इसमें 12 स्कंधों के भीतर पुरातन सभी प्रसंगों को समेटा गया है।
8. पुराणों की कथा के केंद्र अलग अलग लेकिन कथा एक ही : शैव पंथियों ने शिव को आधार बनाकर, वैष्णव पंथियों ने विष्णु को आधार बनाकर, शाक्तों ने शक्ति को आधार बनाकर, एकेश्वरवादियों ने निराकार ईश्वर को आधार बनाकर और कृष्ण भक्तों ने कृष्ण को आधार बनाकर सृष्टि उत्पत्ति, मानव इतिहास, परम्परा, धर्म और दर्शन का विस्तार किया।
9. पुराणों में इतिहास के साथ-साथ ही आयुर्वेद, योग, पाककला सहित कई कलाओं, व्याकरण, रस, नृत्य, संगीत, अलंकार, शस्त्र- विद्या आदि अनेक विषयों का वर्णन भी मिलता है।
10. विष्णु पुराण में भगवान विष्णु के सभी अवतारों की कथा है तो शिव पुराण में शिव और उनके अवतारों की इसी तरह देवी भागवतत पुराण में भगवती के सभी अवतारों का वर्णन मिलेगा। श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण को ही आधार बनाकर संपूर्ण सृष्टि और उनकी लीलाओं का वर्णन मिलेगा। इसी तरह अन्य पुरणों में अन्य देवी और देवताओं का वर्णन मिलता है। दरअसल, यह भारत का प्रचीन इतिहास है। गरुड़ पुराण में जीवन, मृत्यु, ज्ञान, मोक्ष और सद्कर्म की बातें हैं तो भविष्य पुराण में भविष्य की बाते हैं। उसी तरह कल्कि पुराण में होने वाले कल्कि अवतार का संपूर्ण जीवन चरित लिखा हुआ है।